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जौ (Barley) की खेती कैसे की जाती है, जानिए पूरी जानकारी

राजस्थान और बिहार के साथ उत्तर प्रदेश जौं का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड जौं का मुख्य उत्पादक क्षेत्र है। जौं की सूखे के प्रति अच्छी प्रतिरोधक क्षमता होती है। जौं का मनुष्यों के साथ-साथ पशुओं द्वारा भी उपभोग किया जाता है। जौं का प्रयोग शराब बनाने और आयुर्वेदिक दवाइयों आदि में भी किया जाता है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार :-

  • रत्ना : यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह नमक वाली और क्षारीय मिट्टी को सहनेयोग्य है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • आजाद : यह किस्म C.S.A कानपुर द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म पीली कुंगी रोग के प्रतिरोधक है। सिंचित हालातों में खेती करने पर यह अधिक उपज देती है। यह किस्म चारे और दाने लेने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह 115-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। सिंचित हालातों में, इसकी औसतन पैदावार 14-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • विजया : यह किस्म C.S.A कानपुर द्वारा विकसित की गई है। यह 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • डोलमा : यह किस्म उत्तर प्रदेश के बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 140-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।  यह पीली कुंगी के प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 12-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • हिमानी : यह किस्म शिमला में विकसित की गई है। यह यू पी के मध्यम और निचली पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 12.8-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • LSB 2 : यह किस्म उत्तर प्रदेश के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 145-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • अम्बर : यह किस्म C.S.A कानपुर द्वारा विकसित की गई है। यह 130-133 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म यू पी के बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसका प्रयोग बीयर बनाने के लिए किया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • ज्योति : यह किस्म C.S.A  कानपुर द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • C 164 : यह लंबी प्रकार की किस्म है, इसकी बालियां सघन होती है। इसके दाने मोटे और सुनहरी होते हैं। यह पीली कुंगी के प्रतिरोधक किस्म है। यह सिंचित क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्म है।
  • BG 108 : यह किस्म HAU, हिसार द्वारा विकसित की गई है। यह पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है। यह किस्म 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • केदार : यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है। यह पीली कुंगी के प्रतिरोधक किस्म है।
  • नीलम : यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसके दाने छिल्के वाले और सुनहरी रंग के होते हैं। यह किस्म सिंचित और बारानी दोनों क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। 

खेत की तैयारी –

खेत को 2-3 बार जोतना चाहिए ताकि खेत में से नदीनों को अच्छी तरह नष्ट किया जा सके।

खेत की तैयारी के लिए तवियों का प्रयोग करें और फिर 2-3 बार सुहागा फेर दें ताकि फसल अच्छी तरह जम जाए। पहले बोयी गई फसल की पराली को हाथों से उठाकर नष्ट कर दें ताकि दीमक का हमला ना हो सके।

मिट्टी –

यह फसल हल्की ज़मीनों जैसे कि रेतली और कल्लर वाली ज़मीनों में भी कामयाबी से उगाई जा सकती है। इसलिए उपजाऊ ज़मीनों और भारी से दरमियानी मिट्टी इसकी अच्छी पैदावार के लिए सहायक होती हैं। तेजाबी मिट्टी में इसकी पैदावार नहीं की जा सकती।

बिजाई :-

बिजाई का समय –

अच्छी उपज के लिए, 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक बिजाई पूरी कर लें। सिंचित क्षेत्रों के लिए, 15 से 25 नवंबर तक बिजाई पूरी कर लें। बारानी क्षेत्रों में, बिजाई के लिए 15 अक्तूबर से 10 नवंबर का समय उपयुक्त होता है। यदि बिजाई देरी से की जाए तो दानों की उपज और गुणवत्ता कम हो जाती है और उपज बीयर बनाने के लिए उपयुक्त नहीं होती। 

फासला –

बिजाई के लिए पंक्ति से पंक्ति का फासला 22.5 सैं.मी. होना चाहिए। यदि बिजाई देरी से की गई हो तो 18-20 सैं.मी. फासला रखें।

बीज की गहराई – 

सिंचाई वाले क्षेत्रों में गहराई 3-5 सैं.मी. रखें और बारिश वाले क्षेत्रों में 5-8 सैं.मी. रखें।

बिजाई का ढंग – 

इसकी बिजाई छींटे द्वारा और मशीन द्वारा की जाती है।

बीज :-

बीज की मात्रा –

बीज की मात्रा अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग होती है। उत्तर प्रदेश के लिए 30-40 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें। बारानी और नमक वाली मिट्टी में ज्यादा बीजों का प्रयोग किया जाता है।

बीज का उपचार –

अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए बाविस्टिन 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इससे कांगियारी रोग नहीं लगता। बंद कांगियारी के रोग  से बचाने के लिए बीजने से पहले वीटावैक्स 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। दीमक से बचाने के लिए बीज को 250 मि.ली. फॉर्माथियोन को 5.3 लीटर पानी में डालकर बीज का उपचार करें।

खरपतवार नियंत्रण –

अच्छी फसल और अच्छी पैदावार के लिए शुरू में ही नदीनों की रोकथाम बहुत जरूरी है। चौड़े और तंग पत्तों वाले नदीन इस फसल के गंभीर कीट हैं। चौड़े पत्तों वाले नदीनों की रोकथाम के लिए नदीनों के अंकुरण के बाद 2,4-D @ 250 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 30-35 दिनों के बाद डालें।

बारीक पत्तों जैसे नदीनों की रोकथाम के लिए आइसोप्रोटिउरॉन 75 प्रतिशत डब्लयु पी 500 ग्राम को  प्रति 100 लीटर पानी या पैंडीमैथालीन 30 प्रतिशत ई सी 1.4 लीटर को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

खाद –

खादें हमेशा मिट्टी की जांच के आधार पर दें। बारानी क्षेत्रों में नाइट्रोजन 8-16 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें, जबकि सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन 16-24 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें। यदि खेती सूखी भूमि पर करनी हो तो नाइट्रोजन 8 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें। सिंचित और समय पर बिजाई के लिए फासफोरस 8 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

बारानी क्षेत्रों के लिए, बिजाई के समय नाइट्रोजन की पूरी मात्रा डालें।  सिंचित क्षेत्रों में, नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। बाकी की नाइट्रोजन को पहली सिंचाई के समय टॉप ड्रेसिंग के तौर पर डालें।  

फसल की कटाई –

फसल किस्म के अनुसार मार्च के आखिर और अप्रैल में पक जाती है। फसल को ज्यादा पकने से बचाने के लिए समय के अनुसार कटाई करें। फसल में 25-30 प्रतिशत नमी होने पर फसल की कटाई करें। कटाई के लिए दांतों वाली दरांती का प्रयाग करें। कटाई के बाद बीजों को सूखे स्थान पर स्टोर करें।

कटाई के बाद –

जौं सिरका और शराब बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

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