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आलू विटामिन, मिनरल्स एवं एंटी अक्सीडेंट को बनाए ऱखने के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। आलू की खेती मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और बिहार आदि राज्यों में होती है। इन राज्यों की जलवायु आलू की फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यदि आलू के उत्पादन की बात करें तो आलू उत्पादन में चीन व रूस के बाद भारत तीसरे नंबर पर आता है।
आलू की खेती पर कब होता है पाले का असर
सर्दियों के मौसम में वैसे तो कई फसलों पर पाले का असर दिखाई देने लगता है, लेकिन आलू की खेती करने वाले किसानों को चिंता कुछ ज़्यादा ही बढ़ जाती है।
तापमान में गिरावट से किसानों को आलू की फसल पर पाला के प्रकोप की चिंता सताने लगी है। बदलते मौसम से सबसे अधिक आलू की फसल को ही नुकसान होता है, जबकि चना, सरसों, अरहर, और सब्जी की खेती को कम नुकसान पहुंचता है।
आलू की खेती में पाला पड़ने के बाद क्या नुकसान होता है?
सर्दियों में आलू की फसल पर पाला पड़ने से फसल को पाला झुलसा रोग होता है। इसमें आलू की पत्तियां पीली पड़ने लगती है और सड़ने लगती हैं, और पौधा सड़ जाता है। इससे किसानों को आलू की खेती से अच्छी उपज नहीं मिल पाता है, जिससे किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है।
ऐसे कई समस्याएं है जिससे आलू की फसल को नुकसान पहुंच सकता है। माना जाता है कि जब वायुमंडल का तापमान चार से कम होता है, तो पाला पड़ने की संभावना रहती है। ऐसा मौसम दिसंबर से जनवरी के बीच रहता है। हवा न चल रही हो या फिर आसमान साफ हो, तब भी पाला पड़ने की संभावना होती है।
ऐसे में पाला पत्तियों पर जम जाता है, जिसके कारण से पत्तियों की नस फट जाती हैं, इसलिए किसान साथियों को अपनी फसल बचाने के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए।
पाला दो तरह का होता है
एडवेक्टिव (Advective)
यह पाला तब पड़ता है, जब ठंडी हवाएं चलती है। ऐसी हवा की परत एक-डेढ़ किलोमीटर तक हो सकती है। यह पाला आसमान खुला हो या बादल हों, दोनों परिस्थितियों में गिर सकता है।
रेडिएटिव (Radiative)
जब आसमान बिलकुल साफ हो और हवा न चल रही हो, तब यह पाला गिरता है। जब ये पाला पड़ने की आंशका होती है। तब बादल पृथ्वी के लिए कम्बल की तरह काम करते हैं। हवा न चलने से एक इनवर्शन परत बन जाती है. यह एक ऐसी वायुमंडलीय दशा है, जो सामान्य दिनों की तुलना में उल्टी होती है।
आलू की फसलों को पाले से कैसे बचाएं
आलू को पाला झुलसा रोग से बचाए रखने के लिए हर संभव सिंचाई पर ध्यान देना चाहिए। पौधों को पाला से बचाने के लिए किसान खेतों में नमी बनाए रखें।
इसके अलावा आलू की फसल में करीब 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर देना चाहिए। ऐसा करने से आलू की फसल को पाला और झुलसा रोग के प्रकोप से बचाया जा सकता है।
इसके अलावा पाले से पौधों को बचाने के लिए परंपरागत एवं रासायनिक तरीकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढक दें। ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2 से 3 डिग्री सैल्शियस बढ़ जाता है और पौधे पाले से बच जाते हैं, ध्यान रहे कि पौधों का दक्षिणी एवं पूर्वी भाग खुला होना चाहिए।
इससे पौधों को सुबह और दोपहर में धूप मिलती रहती है. साथ ही आलू की फसल को पाले से बचाने के लिए करीब 20 से 25 दिन तक का सड़ा हुआ मठ्ठा 4 लीटर, 100 लीटर छाछ के पानी में घोल लें और फसल में दो से तीन बार छिड़क दें. इससे फसल को पाले से बचा सकते है।
आलू की फसल को पाले से बचाने के लिए देर रात खेत के पास धुआं कर देना चाहिए। इससे फसल पर धुएं की परत छा जाती है, जो पाले को पौधे पर गिरने से रोकती है। धुआं करते समय सावधानी रखें ताकि आग से किसी प्रकार की हानि ना हो।
आलू को पाले से बचाने के लिए कृषि विशेषज्ञ द्वारा बताई गई मात्रा के अनुसार गंधक का छिड़काव करें। यह सुरक्षा आवरण का काम करता है।
फसल से जुड़ी किसी अन्य समस्या या सलाह के लिये 9151333965 पर ग्रामिक के अनुभवी कृषि विशेषज्ञों को अभी कॉल करें।
आलू की खेती में जल प्रबंधन
आलू के फसल में सिंचाई की भी आवश्यकता पड़ती है. इसीलिए फसल में सिंचाई और समय, मिट्टी की बनावट, मौसम व फसल की बढ़ोतरी आदि उगाई किस्म पर ज्यादा निर्भर करती है। इस अवस्था में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।
अगर आप आलू की खेती में धीरे-धीरें सिंचाई करते है तो यह एकदम सिंचाई देने से ज्यादा फायदेमंद है। अगर आप मेढ़ो तक खेत में पानी भर देंगे तो यह हानिकारक होगा। सिंचाई करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखा जाए कि नालियों में पानी आधा ही भरें और मेढ़ों में पानी के रिसाव स्वंय नमी आ जाए।
कब करें आलू की खुदाई
आलू की फसल जब पूरी तरह से तैयार हो जाए तो इसकी खुदाई कर लेनी चाहिए। जब भी आलू की फसल की खुदाई की जाय तो उस समय मिट्टी न तो ज्यादा सूखी हो और न ज्यादा गीला होनी चाहिए। यदि आप पौधों की शाखाओं को रगड़ देंगे तो आलू के छिलके रगड़ने पर न निकलना फसल के पक जाने के संकेत है।
ऐसे पाएं आलू की खेती से अधिक उपज
किसान साथी बुआई करते समय आलू के सेहतमंद और स्वस्थ बीज का चुनाव करें। आप इसका चुनाव आलू को तौल कर भी कर सकते है। आलू को अगर आपने कोल्ड स्टोरेज में रखा है तो बुआई करने से पहले बीज को वहां से निकालकर कुछ दिनों के लिए धूप में रखना चाहिए। धूप में रखने के बाद अगर आप आलू की खेती करते हैं, तो इससे काफ़ी अच्छी उपज मिलने की संभावना रहती है।
FAQs
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आलू के लिए खेत की तैयारी कैसे करें
आलू की खेती करने के लिए आपको डिस्क हैरो से कम से कम दो बार जुताई करनी चाहिए। हैरो से जुताई करने से पहले खेत में चार से पांच ट्रॉली गोबर की खाद डाल दें। आपके खेत की मिटटी जितनी भुरभूरी रहेगी, आलू के लिए उतनी ही अच्छी होगी। आलू की अच्छी पैदावार के लिए खेत की अच्छे से जुताई करना सबसे आवश्यक है।
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आलू बोते समय कौन सी खाद डालें?
आलू की खेती से अच्छी उपज लेने के लिए बुआई से पहले पलेवा करना चाहिए। यदि हरी खाद का प्रयोग न किया हो तो 15-30 टन प्रति हैक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद प्रयोग करने से जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जो कन्दों की पैदावार बढाने में सहायक होती है।
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क्या आलू की फसल से बीज बचाया जा सकता है?
आप आलू की फसल से अगले साल के लिए बीज बचाकर रख सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि उसमें किसी तरह की बीमारी का ख़तरा न होने पाए। प्रमाणित बीज आलू ठंडे क्षेत्रों में उगाए जाते हैं जहां वायरल बीमारियों को फैलाने के लिए एफिड्स नहीं होते हैं। इसलिए आप भी बीज के लिए निकाले गए आलू ठंडे स्थान पर रखें।
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आलू का प्रमुख रोग कौन सा है?
आलू की फसल को झुलसा रोगों से सब से ज्यादा नुकसान होता है। झुलसा रोग दो तरह के होते हैं, अगेती झुलसा और पछेती झुलसा। अगेती झुलसा दिसंबर महीने की शुरुआत में लगता है, जबकि पछेती झुलसा दिसंबर के अंत से जनवरी के शुरूआत में लग सकता है। वायरस से फसल की सुरक्षा के लिए Tebuconazole 50%+Trifloxystrobin 25% w/w 75 WG 100 ग्राम प्रति एकड़ 150 लीटर पानी मे घोल कर का प्रयोग करें।
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आलू में वायरस से कौन सा रोग होता है?
आलू की खेती में पोटैटो मोजैक वायरस के अटैक का खतरा ज़्यादा होता है। ये वायरस माहू से फैलता है, जिसमें पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं और पौधे की ग्रोथ रुक सी जाती है। ऐसा हुआ तो आलू का आकार छोटा रह जाएगा, जिससे उत्पादन घटेगा। पोटैटो मोजैक वायरस से फसल की सुरक्षा के लिए इमीडाक्लोप्रिड 50 मि.ली. या थाइमैथोक्सम 40 ग्राम प्रति एकड़ 150 लीटर पानी मे घोल कर का प्रयोग करें।
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आलू की खेती में पोटेटो लीफ कर्ल का उपचार कैसे करें?
आलू की पत्ती मुड़ने वाला रोग यानि पोटेटो लीफ कर्ल एक वायरल बीमारी है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोग रहित बीज बोना चाहिए, और इस वायरस के वाहक एफिड की रोकथाम के लिए फास्फोमिडान का 0.04 प्रतिशत घोल मिथाइलऑक्सीडिमीटान या डाइमिथोएट का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर 1-2 छिड़काव करें।
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