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आज हम उड़द की फसल में लगने वाले रोग, कीट और उनके नियंत्रण के उपायों के बारे में विस्तार से जानेंगे। उड़द एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जो भारतीय किसानों के लिए आय और पोषण का महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके सफल उत्पादन के लिए रोगों और कीटों का समय पर पहचान और नियंत्रण आवश्यक है।
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प्रमुख रोग व उनके नियंत्रण के उपाय
1. पीला मोजेक
लक्षण:
पीला मोजेक रोग उड़द की पत्तियों पर गोलाकार धब्बों के रूप में दिखाई देता है। ये दाग धीरे-धीरे पूरे पौधे पर फैल जाते हैं और पत्तियां पूरी तरह पीली हो जाती हैं। यह रोग सफ़ेद मक्खी द्वारा फैलता है। जब पौधा इस रोग से ग्रस्त हो जाता है, तो उसकी पत्तियां पीली और मुरझाई हुई दिखती हैं, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है और उपज में भारी कमी आ जाती है।
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नियंत्रण:
इस रोग के नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 ई. सी. की एक लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, प्रतिरोधी किस्मों का चयन और सफ़ेद मक्खी का नियंत्रण भी महत्वपूर्ण है।
2. पर्ण दाग
लक्षण:
पर्ण दाग रोग के लक्षण पत्तियों पर भूरे रंग के गोलाकार धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। धब्बों के बीच का भाग राख या हल्का भूरा होता है और किनारा बैंगनी रंग का होता है। यह रोग उड़द की पत्तियों, तनों और फलों पर प्रभाव डालता है, जिससे पौधे की गुणवत्ता और उपज में कमी आ जाती है।
नियंत्रण:
इस रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेडाजिम 500 ग्राम को पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ ही, फसल चक्रण और खेत की साफ-सफाई भी आवश्यक है।
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प्रमुख कीट और उनके नियंत्रण
1. थ्रिप्स
लक्षण:
थ्रिप्स के शिशु और वयस्क दोनों ही पत्तियों से रस चूसकर पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे पत्तियों पर सिल्वर रंग के धब्बे बन जाते हैं और पत्तियां सूखने लगती हैं।
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नियंत्रण:
इस कीट के नियंत्रण के लिए डायमेथोएट 30 ई. सी. की 1 लीटर दवा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, थ्रिप्स के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे लेडीबग और ग्रीन लेसविंग्स का प्रयोग करना और खेत में खरपतवारों की सफाई रखना भी महत्वपूर्ण है।
2. हरे फुदके
लक्षण:
हरे फुदके पत्तियों की निचली सतह पर बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। प्रौढ़ कीट का रंग हरा होता है और उसकी पीठ के निचले भाग में काले धब्बे होते हैं। ये कीट पत्तियों से रस चूसते हैं जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधों की वृद्धि रुक जाती है।
नियंत्रण:
इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोरपिड की 0.3 मिली दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। हरे फुदके के प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण और पौधों की नियमित निगरानी करना भी आवश्यक है।
3. फली बेधक
लक्षण:
फली बेधक की सुंडी उड़द की फली में छेद करके उसके बीज को खा जाती है, जिससे फली क्षतिग्रस्त हो जाती है और बीज की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
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नियंत्रण:
इस कीट के नियंत्रण के लिए क्युनोल्फोस 25 ई. सी. की 1.25 लीटर दवा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, संक्रमित फलियों को तोड़कर नष्ट करना और फसल की बुवाई का समय सही चुनना भी महत्वपूर्ण है।
खाद और उर्वरक
उड़द एक दलहनी फसल है, इसलिए इसे नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता नहीं होती। हालांकि, पौधों की प्रारम्भिक अवस्था में जड़ों और जड़ ग्रंथियों की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की आवश्यकता होती है। फसल की बेहतर वृद्धि और उपज के लिए उचित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करना आवश्यक है। उर्वरकों का सही समय पर और सही मात्रा में प्रयोग करना आवश्यक है ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें और उनकी वृद्धि में कोई बाधा न आए।
निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण
उड़द की बुवाई के 15-20 दिन बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। हाथों द्वारा खुरपी की सहायता से गुड़ाई करना अधिक प्रभावी होता है। निराई-गुड़ाई से न केवल खरपतवारों का नियंत्रण होता है, बल्कि मिट्टी में वायु संचार भी बढ़ता है जिससे पौधों की जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है। रासायनिक नियंत्रण के लिए फ्लुक्लोरीन और पेन्थिमेथलीन का प्रयोग किया जा सकता है।
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अन्य देखभाल के उपाय
जल निकासी
खेत में जल जमाव न होने दें, क्योंकि इससे पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं। उड़द की फसल को अच्छी जल निकासी वाली भूमि में लगाना चाहिए ताकि पौधों को पर्याप्त नमी मिल सके लेकिन जल जमाव न हो।
संतुलित सिंचाई
सिंचाई का समय और मात्रा उचित रखें, विशेषकर फूल और फल बनने की अवस्था में। सिंचाई की कमी या अधिकता दोनों ही पौधों के लिए हानिकारक हो सकती हैं। संतुलित सिंचाई से पौधों की वृद्धि अच्छी होती है और उपज में वृद्धि होती है।
पौध संरक्षण
फसल की नियमित निगरानी करें और किसी भी असामान्यता की पहचान होते ही उसका तुरंत उपचार करें। पौधों को रोग और कीटों से बचाने के लिए समय-समय पर कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का प्रयोग करें।
फसल चक्रण
फसल चक्रण से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और रोगों व कीटों का प्रकोप कम होता है। उड़द की फसल के बाद अन्य फसलों की बुवाई करें ताकि मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें और फसल में रोग और कीटों का प्रकोप कम हो।
जैविक नियंत्रण
रासायनिक कीटनाशकों के बजाय जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करें। जैविक कीटनाशक न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं बल्कि फसल की गुणवत्ता को भी बनाए रखते हैं।
उड़द की खेती के बारे में विस्तार से जानने के लिए ये ब्लॉग पढ़ें।
FAQ
उड़द की बुवाई का उपयुक्त समय खरीफ के मौसम में जून से जुलाई के बीच और रबी के मौसम में अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है।
उड़द की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
उड़द की फसल को सामान्यत: 2-3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी सिंचाई फली बनने के समय करनी चाहिए।
उड़द की फसल में प्रमुख कीटों और रोगों से बचाव के लिए समय-समय पर निरीक्षण करना, उपयुक्त कीटनाशक और फफूंदनाशक का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा जैविक विधियों का उपयोग भी किया जा सकता है।
उड़द की फसल सामान्यत: बुवाई के 70-90 दिनों के बाद तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियाँ पीली होने लगे और फलियाँ सूखने लगे तब कटाई करनी चाहिए।
उड़द की खेती के बारे में विस्तार से जानने के लिए ये ब्लॉग पढ़ें।
उड़द की खेती
दलहनी फसलों में रोग
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