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Kodo Millet: बाजरा के प्रमुख प्रकार ‘कोदो की खेती’ से जुड़ी उपयोगी जानकारी!

कोदो की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!

पिछले कुछ समय से देशभर में मिलेट्स काफी लोकप्रिय हो गए हैं। सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होने की वजह से लोग तरह-तरह के बाजरा को अपनी डाइट का हिस्सा बना रहे हैं। बाजरा कई तरह का होता है, जिसमें ज्वार, बाजरा, कंगनी, रागी, चेना आदि के साथ कोदो भी शामिल हैं। कोदो अपने कई गुणों की वजह से सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। यदि आप भी कोदो की खेती करना चाहते हैं, तो इस ब्लॉग में हम आपको विस्तार से जानकारी देंगे।

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मॉनसून में करें खेत की तैयारी

कोदो की खेती के लिए खेत की तैयारी बहुत महत्वपूर्ण है। मॉनसून से पहले खेत की जुताई करना आवश्यक है। जुताई के बाद, मॉनसून शुरू होते ही खेत को दो-तीन बार हल से जोतने के बाद पाटा चलाना चाहिए, ताकि मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहे। यह प्रक्रिया मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करती है और फसल की बेहतर वृद्धि सुनिश्चित करती है।

बुआई का समय व तरीका

कोदो की बुआई उत्तरी भारत में 15 जून से 15 जुलाई के बीच होती है। इसके बीज को 3-4 सें.मी. गहरा और पौधों से पौधों की दूरी 8-10 सें.मी. होनी चाहिए। छिड़काव विधि के लिए 10-15 कि.ग्रा./ हेक्टेयर बीज दर पर्याप्त है।

सिंचाई

कोदो फसल की कल्ले निकलने और फूल आने की अवस्था में सिंचाई आवश्यक है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करनी चाहिए। यदि वर्षा न हो तो 12-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना जरूरी हो जाता है। इससे फसल के विकास में सहायता मिलती है।

कोदो में लगने वाले प्रमुख रोग 

कोदो की फसल में कुछ प्रमुख रोग और कीट लगते हैं, जो फसल की उपज और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। इनका नियंत्रण महत्वपूर्ण है ताकि फसल का उत्पादन सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता वाला हो सके।

ब्लास्ट रोग: ये रोग लगने पर पत्तियों, बाली और तनों पर गहरे धब्बे जो अंततः भूरे रंग के हो जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए प्रमाणित बीजों का उपयोग करें। रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। उचित फसल चक्र अपनाएं। फफूंदनाशक जैसे ट्राइसाइक्लोज़ोल का उपयोग करें।

जड़ सड़न व तना सड़न: इस रोग के कारण  पौधों के तने और जड़ें सड़ जाती हैं, जिससे पौधे कमजोर होकर गिर सकते हैं। इसके नियंत्रण के लिए अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करें। रोगमुक्त बीजों का प्रयोग करें। वहीं रोग लगने पर आप थायोफेनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी.की निर्धारित मात्रा का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

रस्ट: इस रोग के लक्षण की बात करें तो पत्तियों पर छोटे, नारंगी या भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें, और मेटालॅक्सिल 4% + मँकोजेब 64% का उपयोग करें।

कोदो की खेती

कोदो की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट 

तना बेधक (Stem Borer): ये रोग लगने के कारण तनों में छेद, जिससे पौधे गिर सकते हैं और उत्पादन में कमी आती है। इसके नियंत्रण के लिए फसल अवशेषों को नष्ट करें, व जैविक कीटनाशक जैसे बैसिलस थुरिंजियेंसिस का उपयोग करें। वहीं रासायनिक विधि से नियंत्रण के लिए 

क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी का प्रयोग किया जा सकता है। 

पत्ता मरोड़ (Leaf Roller): इस रोग के लक्षण की पत्तियाँ मरोड़ कर रोल हो जाती हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए प्रभावित पत्तियों को हटा कर नष्ट करें व नीम के तेल का छिड़काव करें। इसके अलावा आप इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी का प्रयोग कर सकते हैं।

एफिड (Aphids): इसके प्रकोप से पत्तियों और तनों पर छोटे, मुलायम कीट जो रस चूसते हैं, जिससे पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं। नियंत्रण के लिए प्रभावित हिस्सों को पानी से धोएं व नीम तेल का छिड़काव करें। इसके अलावा आप इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल का भी प्रयोग कर सकते हैं।

आपकी फसलों के लिए ज़रूरी कीटनाशक ग्रामिक पर उपलब्ध हैं, आप अभी ऑर्डर कर सकते हैं। 

कोदो की खेती में खरपतवार नियंत्रण

पौधों की वृद्धि की प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों पर नियंत्रण करना आवश्यक है। खरपतवार अधिक होने से फसल का विकास प्रभावित होता है। इसके लिए हर 20-25 दिन पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।  इसके अलावा आप ग्रामिक से खर-पतवार नाशी मँगा कर उसका इस्तेमाल कर सकते हैं। 

इन राज्यों में होती है कोदो की खेती

कोदो देखने में धान जैसा पौधा लगता है, लेकिन इसकी खास बात यह है कि इसे धान के मुकाबले बहुत कम पानी की जरूरत होती है। यह विभिन्न जलवायु और मिट्टी में उगाया जा सकता है। कोदो भारत के कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, तमिलनाडु के कुछ हिस्सों, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात और उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है। इतना ही नहीं, इसकी खेती विदेशों में भी की जाती है। भारत के अलावा कोदो फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका में भी उगाया जाता है।

कोदो की खेती से लाभ

स्वास्थ्य लाभ: कोदो में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और मिनरल्स प्रचुर मात्रा में होते हैं। यह डायबिटीज, हृदय रोग और मोटापे जैसी बीमारियों के जोखिम को कम करता है।

पोषक तत्वों से भरपूर: इसमें आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और जिंक जैसे आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखते हैं।

कोदो की खेती

आर्थिक लाभ– कोदो जैसे मोटे अनाज की खेती कम लागत में की जा सकती है और ये सूखे में भी अच्छी पैदावार देते हैं। बाजार में इनकी मांग बढ़ रही है जिससे किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है।

पर्यावरण के लिए लाभकारी: कोदो की खेती कम पानी की आवश्यकता वाली होती है, जिससे जल संसाधनों की बचत होती है और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

FAQ

मोटे अनाज क्या हैं?

मोटे अनाज वे अनाज होते हैं जो पोषण में समृद्ध होते हैं और आमतौर पर इनमें रेशे, प्रोटीन, विटामिन, और खनिज अधिक मात्रा में होते हैं। इनमें ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, सावाँ आदि शामिल हैं।

मोटे अनाज की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी कौन सी होती है?

मोटे अनाज की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन यह आमतौर पर हल्की, रेतीली दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी होती है। अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी भी अनुकूल होती है।

मोटे अनाज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु क्या है?

मोटे अनाज गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगते हैं। इनकी खेती उन क्षेत्रों में भी की जा सकती है जहाँ वर्षा की मात्रा कम होती है।

मोटे अनाज की फसल को कीट और रोगों से कैसे बचाया जा सकता है?

कीट और रोगों से बचाव के लिए समय-समय पर फसल का निरीक्षण करें। कीटनाशकों का उपयोग करें और रोगग्रस्त पौधों को हटाकर नष्ट करें। फसल चक्र अपनाना भी लाभदायक होता है।

मोटे अनाज की खेती (Millet Cultivation) के बारे में विस्तार से जानने के लिए ये ब्लॉग पढ़ें-
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