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तरबूज उत्तरप्रदेश व महाराष्ट्र में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक है। हालांकि इसकी खेती देश के अन्य क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर की जाती है। गर्मियों में तरबूज की मांग काफ़ी ज़्यादा होती है।
ऐसे में यदि आप सही समय पर तरबूज की खेती करें, और इसकी उचित देखरेख करें तो इस फसल से अच्छी उपज लेकर भारी मुनाफा कमा सकते हैं।
तरबूज़ की खेती कब करें?
उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों में तरबूज़ की खेती फरवरी-मार्च में की जाती है, जबकि उत्तर पूर्वी और पश्चिमी भारत में बुआई का सबसे अच्छा समय नवंबर से जनवरी के बीच होता है। महाराष्ट्र में इसकी खेती दिसंबर से जनवरी महीने में होती जाती हैं।
इसके अलावा जहाँ सर्दी कम होती है, ऐसी जगहों पर तरबूज लगभग पूरे वर्ष उगाये जा सकते हैं। आपको बता दें कि तरबूज की अधिकतर किस्में 80 से 10 0 दिन में तैयार हो जाती हैं।
तरबूज़ की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
इस फसल के लिए मध्यम काली जल निकासी वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। तरबूज के लिए मिट्टी का स्तर 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए। तरबूज की फसल को गर्म शुष्क मौसम और भरपूर धूप की ज़रूरत होती है। 24 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस का तापमान तरबूज के बेल की वृद्धि के लिए बेहतर माना जाता है।
तरबूज़ की खेती के लिए उन्नत किस्में
Remik 44 Hybrid Watermelon, Jupiter (MSH 1103) F1 Hybrid Watermelon, Victor Plus (MSH1102) F1 Hybrid Watermelon Seeds जैसी तरबूज के बीज की कई उन्नत किस्में ग्रामिक पर उपलब्ध हैं, जो कम समय में तैयार होकर अच्छी उपज देती हैं। आप इस लिंक पर क्लिक करके अभी अपना ऑर्डर प्लेस कर सकते हैं।
तरबूज की फसल में सिंचाई
तरबूज के बेल की वृद्धि के दौरान 5 से 7 दिनों के अंतराल पर और फलने के बाद 8 से 10 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करें। गर्मी के मौसम में तरबूज को आमतौर पर 15-17 सिंचाई की जरूरत होती है।
तरबूज की खेती में पहले महीने रखें विशेष ध्यान
तरबूज “कुकुरबिटेसी” परिवार की फसल है। तरबूज की तरह ही कद्दूवर्गीय कुल की सभी फसलों जैसे कद्दू, तरबूज, लौकी, तोरई, खरबूजा आदि में शुरुआती एक महीना बहुत नाजुक होता है, क्योंकि इस समय फसल में तना गलन जैसे कई रोग लग जाते हैं, साथ ही कीटों के हमले का भी ख़तरा रहता है। ऐसे में जरूरी है कि शुरुआती दिनों में किसान ज्यादा सावधानी बरतें।
तरबूज समेत कद्दूवर्गीय सभी फसलों को रोग बचाने के लिए पानी की उचित मात्रा जरूरी है, लेकिन ज़्यादा जलभराव फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए पौधे नाली में न लगाकर मेड़ पर लगाएं, ताकि पानी सिर्फ जड़ों को मिले।
तरबूज की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग
मृदुरोमिल आसिता (downy asita)
यह रोग बारिश में तेजी से फैलता है. इस रोग से पत्तियों पर धब्बे पड़ने लगते हैं, इसके साथ ही पत्तियों की ऊपरी सतह पीली पड़ जाती है।
रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को उपचारित करके बोएं। इसके लिए बीज को कृषि विशेषज्ञ द्वारा सुझाए गए कवकनाशी से उपचारित कर लें। इसके अलावा आप खड़ी फसल में मैंकोजेब का घोल बनाकर भी छिड़काव कर सकते हैं। इसकी मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि आपने कितनी भूमि में खेती की है।
खीरा मोजैक वायरस (Cucumber mosaic virus)
इस रोग में पौधों की नई पत्तियों पर छोटे, हल्के पीले धब्बे पड़ने लगते हैं। पत्तियों में सिकुड़न आ जाती है और पौधे छोटे रह जाते हैं।
रोकथाम
इसकी रोकथाम के लिए हर 10 दिन के अंतराल पर फसल में डाईमेथोएट का छिड़काव कर सकते हैं।
तरबूज में लगने वाले प्रमुख कीट
फल मक्खी
फल मक्खी कीट फसल में फूल आने से पहले भूमि और तने पर अण्डा देता है, जिससे सड़न शुरू हो जाती है, और धीरे-धीरे पौधा सूख जाता है। बता दें कि ये कीट फल के जिस हिस्से पर अंडा देता वो हिस्सा खराब हो जाता है।
रोकथाम
इस तरह के कीट पतंगों से तरबूज की फसल को बचाने के लिए किसान फेरोमेन ट्रैप, सोलर ट्रैप आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो कीटों को नियंत्रित करते हैं। ये ट्रैप ग्रामिक से बहुत ही किफायती मूल्य पर ऑर्डर करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। इसके अलावा मिथाइल इंजीनॉल, सिनट्रोनेला तेल, एसिटिक अम्ल, लेक्टिक एसिड में से किसा एक का घोल तैयार करके फसल पर छिड़काव करें।
लाल पम्पकिन बीटल
इस कीट का प्रकोप जनवरी से मार्च के बीच ज़्यादा देखा जाता है। लाल पम्पकिन बीटल पौधों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है, जिससे पौधा सूखने लगता है। इसके साथ ही पुराने और बड़े पौधे पीले पड़ने लगते हैं, और उनका विकास रुक जाता है।
रोकथाम
इस कीट के प्रकोप में कीड़े को हाथ से पकड़कर मार देना चाहिए। इसके साथ ही ज़रूरत पड़ने पर मैलाथियान चूर्ण, या कार्बारिल चूर्ण में राख मिलाकर फसल में छिड़काव कारें। ध्यान रहे कि इसका छिड़काव सुबह के समय ही करें। इन दवाओं की मात्रा अपने खेत के क्षेत्रफल के अनुसार किसी कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही निर्धारित करें।
FAQs
अप्रैल महीने में आने वाले तरबूज की खेती जनवरी-फरवरी महीने में की जाती है। ऐसे में 100 दिन के अंदर यह फसल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में तरबूज़ की बुआई फरवरी-मार्च में की जाती है, जबकि उत्तर पूर्वी और पश्चिमी भारत में बुआई का सबसे अच्छा समय नवंबर से जनवरी के दौरान होता है। दक्षिण और मध्य भारत में ये लगभग पूरे साल उगाये जाते हैं।
तरबूज उत्पादन के मामले में यूपी जहां सबसे आगे है, वहीं महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा में भी बड़े पैमाने पर तरबूज उगाया जाता है।
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