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Pulse Crops: बदलते मौसम में आपकी दलहनी फसलों में रोग लग सकते हैं! ऐसे करें बचाव!

दलहनी फसलों में रोग
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!

दाल लगभग हर घर में हर दिन बनती है। यही कारण है कि देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी दलहनी फसलों की खूब मांग रहती है। दाल की खेती से न सिर्फ किसान साथी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, बल्कि ये खेती प्रकृति व पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होती है। आजकल देश के कई राज्यों में तापमान मे उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। वहीं रबी सीजन की प्रमुख फसलें व दलहनी फसलें तैयार होने वाली है। ऐसे में इस तरह के मौसम में फसल में रोग लगने का ख़तरा बढ़ जाता है। 

दलहनी फसलों में रोग

चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में जानते हैं कि इस नाज़ुक मौसम में अपनी दलहनी फसलों की देखभाल कैसे करें-

इन फसलों का रखें विशेष ध्यान

तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण रोग लगने से दलहनी फसल को काफ़ी नुकसान हो सकता है। ऐसे में कृषि विभाग की तरफ से एडवाइजरी जारी की गई है कि किसान साथी चना, मटर, मसूर, गेंहू और मिर्च की फसल का विशेष ध्य़ान रखें, और अगर कोई रोग लग जाए तो जल्द से जल्द उचित उपाय करके इस रोग का नियंत्रण करें। बदलते मौसम में उतार चढ़ाव के कारण हरदा रोग व स्ट्मफिलियम ब्लाईट रोग का ख़तरा ज़्यादा होता है।

दलहनी फसलों में लगने वाले प्रमुख रोग या कीट

सकिंग पेस्ट:

सकिंग पेस्ट (जैसिड, एफिड, सफेद मक्खी)- यदि संक्रमण दिखाई दे तो मैलाथियान 375 मि.ली. या डाइमेथोएट 250 मि.ली. या ऑक्सीडेमेटन मिथाइल 250 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

सफेद मक्खी:

सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए थियामेथोक्सम 40 ग्राम ट्रायज़ोफोस 600 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें। यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।

घुन:

यदि संक्रमण दिखे तो डाइमेथोएट 30EC @150 मि.ली. प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

ब्लिस्टर बीटल:

ये फूल आने के समय नुकसान पहुंचाते हैं। वे फूलों, कलियों को खाते हैं और इस प्रकार अनाज बनने से रोकते हैं।

यदि प्रकोप दिखे तो इंडोक्साकार्ब 14.5एससी @ 200 मि.ली. या एसीफेट 75एससी @ 800 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें। छिड़काव शाम के समय करें और यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।

फली छेदक:

ये कीट उपज में भारी नुकसान पहुंचाते हैं। यदि प्रकोप दिखे तो इंडोक्साकार्ब 14.5एससी @ 200 मि.ली. या एसीफेट 75एसपी @ 800 ग्राम या स्पिनोसैड 45 एस.सी. @ 60 मि.ली./एकड़ का छिड़काव करें। दो सप्ताह बाद दोबारा छिड़काव करें।

तम्बाकू इल्ली:

यदि इस कीट का प्रकोप दिखे तो एसीफेट 57एसपी @ 800 ग्राम/एकड़ या क्लोरपायरीफॉस 20ईसी @1.5 लीटर/एकड़ का छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।

रोएंदार इल्ली:

रोएंदार इल्ली को नियंत्रित करने के लिए इल्ली को हाथ से चुनकर निकाल दें और संक्रमण कम होने पर कुचलकर या मिट्टी के तेल के पानी में डालकर नष्ट कर दें। अधिक प्रकोप की स्थिति में क्विनालफोस 500 मि.ली. या डाइक्लोरवोस 200 मि.ली. प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

स्ट्मफिलियम ब्लाईट रोग:

यह रोग प्रमुख रूप से चना व मसूर में लगता है, जिसके कारण पौधों की पत्तियों पर बहुत छोटे-छोटे भूरे व काले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिसके बाद पहले पौधों के निचले भाग की पत्तियां खराब होने लगती हैं। फिर धीरे-धीरे ये रोग पौधों के ऊपरी भाग में फैलता जाता है, और फसल को पूरी तरह बर्बाद कर देता है। इस रोग से दलहनी फसलों की गुणवत्ता व उपज दोनों प्रभावित होती हैं।

दलहनी फसलों में रोग

स्ट्मफिलियम ब्लाईट रोग की रोकथाम

किसान साथी जैसे ही फसल में इस रोग का लक्षण देखें, वे तुरंत ही रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़ कर नष्ट कर दें या जला दें। इसके अलावा 2 किलो मैंकोजेब और 3 किलो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की मात्रा लेकर पानी में उसका घोल बना लें, और फसल पर इसका छिड़काव करें।

पर्यावरण के लिए भी लाभदायक हैं दलहनी फसलें

दलहनी फसलें न सिर्फ़ किसानों के लिए मुनाफे वाली होती हैं, बल्कि ये पर्यावरण के लिए भी बेहद लाभदायक हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, दलहनी फसलों की खेती से मिट्टी की निचली सतह में नाइट्रोजन के स्तर में वृद्धि होती है, क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया पाए जाते हैं। इसके अलावा इन फसलों की जड़ों में ग्लोमेलिन प्रोटीन पाया जाता है, जो मिट्टी के कणों को जोड़े रखता है, और मिट्टी के क्षरण को रोकता है। इससे भूमि में जल संचयन की क्षमता में बढ़ोतरी होती है और मिट्टी का पीएच मान संतुलित रहता है।

आपको बता दें कि दलहनी फसलों की खेती करने से खेत में उगने वाले खरपतवार भी कम होते हैं, वहीं इन फसलों में सिंचाई की भी ज़्यादा ज़रूरत नहीं होती है। इसके अलावा, दलहनी फसलें मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने में भी सहायक होती हैं।

फसल चक्र को मिलता है बढ़ावा

खेत में एक ही फसल न उगा कर फसलें बदल-बदल कर उगाने की परम्परा काफ़ी समय से चली आ रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि लगातार एक ही फसल उगाने से उत्पादन में कमी आ जाती है। खेत की उत्पादन क्षमता को बनाये रखने के लिए फसल चक्र (crop rotation) सिद्धान्त बनाया गया है।

आजकल फसल से अधिक उपज लेने के लिए पहले की अपेक्षा अधिक मात्रा में उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है, क्योंकि भूमि में उर्वरक क्षमता का हृास बढ़ गया है । इन सब अनुभवों से बचने के लिए हमें फसल चक्र सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुए धान गेंहू के साथ-साथ दलहनी फसलों को भी ज़रूर उगाना चाहिए, क्योंकि दलहनी फसलों से एक टिकाऊ फसल उत्पादन प्रक्रिया विकसित होती है।

FAQ

भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलें कौन सी है?

भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलों में चना, अरहर, उड़द एवं मूंग आदि हैं। मूंग के बीज ग्रामिक पर बहुत ही किफायती मूल्य पर उपलब्ध हैं, आप इस लिंक पर क्लिक करके अभी अपना ऑर्डर कर सकते हैं।

भारत के किस राज्य में दलहनी फसलों का उत्पादन सबसे अधिक होता है?

भारत के सबसे बड़े दाल उत्पादक राज्य की बात करें, तो ये मध्य प्रदेश है। इसके अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और कर्नाटक में दालें बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं।

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