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मसूर की खेती से मिलेगी अच्छी उपज, बस इन बातों का रखें ध्यान!

मसूर की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है।

रबी सीजन की प्रमुख दलहनी फसलों में मसूर की खेती (Lentil Crop) प्रमुख रूप से की जाती है। यदि आपने भी मसूर की खेती की है, तो इस फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। हाल ही में हरियाणा कृषि विभाग ने  सूचना जारी की है, कि किसान जनवरी महीने में किन बातों का ध्यान रखें, ताकि उनकी मसूर की फसल के उत्पादन में इज़ाफा हो सके।

चलिए इस ब्लॉग में विस्तार से जानते हैं-

मसूर की खेती

मसूर की खेती में ध्यान रखें ये बातें

मसूर फसल से अच्छा उत्पादन पाने के लिए हरियाणा कृषि विभाग ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर इससे जुड़ी जानकारी साझा की है, जिसमें बताया गया कि किसानों को जनवरी महीने में मसूर की फसल से खर पतवार नियंत्रण का विशेष ध्यान रखें, इससे फसल का विकास बेहतर होगा।

इसके अलावा किसान साथी समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार फसल की सिंचाई करते रहें। आपको बता दें कि फलियां बनते समय सिंचाई करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है।

मसूर की खेती के लिए रोग व कीट नियंत्रण

मसूर की फसल में ‘उकठा रोग’ लगने का ख़तरा ज़्यादा होता है। इसके नियंत्रण के लिए बुआई से पहले मृदा करें और बीज को उपचारित करें। वहीं फसल चक्र में बदलाव करने पर भी उकठा रोग कम लगता है। इसके अलावा मसूर में ‘गेरुआ रोग’ का भी ख़तरा काफ़ी ज़्यादा देखने को मिलता है। गेरूआ रोग के नियंत्रण के लिए किसान साथी सही समय पर Indofil M-45 का छिड़काव करें।

मसूर की उन्नत किस्में

मसूर की उन्नत किस्मों की बात करें तो एलएल 147, शिवालिक, पंत एल 639, पूसा वैभव, एल 4076, पंत एल 406, डीपीएल 15, डीपीएल 62, एलएच 84 8, पंत लेंटिल-5, आदि प्रमुख मानी जाती हैं।

इसके अलावा मलिका के-75, एडब्लूबीएल 58, एचयूएल 671, पंत एल 406, एडब्लूबीएल 58, एलएस 218, आदि किस्में की बुवाई करते है। और मध्य भारत के विस्तार की बात करे तो आईपीएल81, सीहोर 74 3, पंत एल 639, मलिका के 75, एल 4076, जवाहर लेंटिल-3, आदि किस्में भी अच्छी उपज देने वाली मानी जाती है।

मसूर की फसल की कटाई व लाभ

मसूर की फसल में उन्नत बीज की बुवाई के बाद लगभग 110 से 130 दिन बाद पूरी तरह से फलिया पक के कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी कटाई फरवरी महीना या मार्च महीने में की जा सकती है।

मसूर के पौधे पर जब फलिया में अच्छे से दाने पक जाए और फलियों के रंग हरे से भूरे रंग में बदल जाए और पौधे के पते पीले रंग के हो जाए तब इन की कटाई कर लेनी चाहिए।

बाज़ार में मसूर की दाल की मांग साल भर रहती है, इस लिए किसान साथियों के लिए मसूर की खेती एक फायदे का सौदा साबित हो सकती है। आपको बता दें कि इसकी खेती करने का सही समय अक्टूबर से नवंबर तक माना जाता है।

इस समय बुवाई करने से कम सिंचाई में और कम लागत में अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। वैसे मसूर की खेती से किसानों को दो लाभ मिलते हैं। इससे दाल की उपज तो मिलती ही है, साथ ही चारे के लिए भूसा भी मिल जाता है।

FAQs

मसूर की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त होती है?

मसूर की खेती के लिये हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।

मसूर की फसल कितने दिन में तैयार होती है?

मसूर की फसल सामान्यतः 110 से 130 दिन में तैयार हो जाती है। फसल पकने का समय किस्मों के चुनाव व बुवाई के समय पर निर्भर करता है।

मसूर का खेती के लिए बीज दर क्या होनी चाहिए?

मसूर की छोटे दाने वाली प्रजातियों के लिए 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और बड़े दाने वाली प्रजातियों के लिए 35-45 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज पर्याप्त होता है।

मसूर की खेती के लिए सही समय कौन सा है?

मसूर की बुवाई रबी में अक्टूबर से नवम्बर तक की जा सकती है, लेकिन अच्छी उपज के लिए मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर का समय इसकी बुवाई के लिए सही माना जाता है।

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