Seeds

धान का अधिक उत्पादन कैसे प्राप्त करें ?

Written by Gramik

कृषि जलवायु प्रखण्ड के अनुसार प्रजातियाँ

असिंचित दशा में (शीघ्र पकने वाली): 100-120 दिन नरेन्द्र लालमती, शुष्क सम्राट, नरेन्द्र-80, बारानीदीप, गोविन्द नरेन्द्र-118, मालवीय धान-2 नरेन्द्र-971

सिंचित दशा में (शीघ्र पकने वाली) : मालवीय धान-2, गोविन्द, नरेन्द्र–80, मालवीय धान-2, नरेन्द्र- 118, आई. आर-50, नरेन्द्र – 97

सिंचित दशा में (मध्यम अवधि में पकने वाली) 120-140 दिन, पन्त-10, पन्त-4,

सरजू- 52, नरेन्द्र-2026-2064, पूसा-44, क्रान्ति, नरेन्द्र- 359, सीता। सुगन्धित धान मालवीय सुगन्ध-105, नरेन्द्र सुगन्ध, टा-3, पूसा बासमती-1, स्वर्णा वल्लभ बासमती – 22, हरियाणा बासमती-1, बासमती-370, कस्तूरी तारावणी बासमती ऊसरीली भूमि: साकेत-4, नरेन्द्र ऊसर धान-1, 2 व 3, सी. एस. आर 10 नरेन्द्र ऊसर धान 2008 व 2009, महसूरी, सोना।

संकर प्रजातियाँ पन्त संकर धान-1, नरेन्द्र संकर धान-2 पी.एच.वी. 71, प्रो. एगो 6444 पूसा आर. एच. 10. नरेन्द्र ऊसर संकर धान-3 आर.एच. 1531 निचले व जल भराव वाले क्षेत्र हेतुः जल लहरी, मुधकर, महसूरी, जलप्रिया, जलनिधि, नरेन्द्र जल पुष्प, जलमग्न

बीज की दर रोपाई के लिए 30-50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर । सीधी बुवाई के लिए 75-80 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर हल के पीछे एवं 100 से 110 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिटकवां बुवाई में आवश्यकता होती है।

बीजोपचार : 188 ग्राम जिन्क सल्फेट तथा 20 ग्राम एग्रोमाइसिन या 40 ग्राम एगलाल, 45 ली. पानी के घोल में 25 किग्रा बीज को रात भर भिगोना चाहिए अथवा यामाटो 2.5 ग्राम प्रति कि०ग्रा० बीज की दर से उपचारित करना चाहिये।

धान की पौध: एक हेक्टेयर धान की रोपाई के लिए 800 से 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र की पौध पर्याप्त होगी। इसके लिए 12 से 14 किग्रा. एन.पी.के. 12:32:16 तथा 10 से 12 किग्रा. यूरिया प्रयोग करना चाहिए। यदि आवश्यकता हो तो जिंक सल्फेट मोनो हाईड्रेट 33 प्रतिशत जिंक 1 किग्रा, बुवाई के पहले खेत में मिलना चाहिए।

बुवाई का समय :

पौध: मई के अन्तिम सप्ताह से मध्य जून तक रोपाई : जून के तीसरे सप्ताह से मध्य जुलाई तक करना चाहिए।

सीधी बुवाई : जून का दूसरा पखवाड़ा उपयुक्त रहता है। दूरी धान की अच्छी पैदावार लेने के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. रखना चाहिए। प्रत्येक स्थान पर 2 से 3 पौधे लगाना लाभप्रद रहता है।

उर्वरकों का प्रयोग उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी जांच के आधार पर ही करना उपयुक्त है। यदि किसी कारणवश मिट्टी परीक्षण नहीं हो सका है तो प्रति हेक्टेयर पोषक त का प्रयोग निम्न मात्रा में करना चाहिए।

Post Views: 23

Share Your Post on Below Plateforms

About the author

Gramik

Leave a Comment

WhatsApp Icon