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मटर की खेती कैसे करें, आइये जानते है –

Written by Gramik

यह फसल लैग्यूमिनसियाइ फैमिली से संबंध रखती है। यह ठंडे इलाकों वाली फसल है। इसकी हरी फलियां सब्जी बनाने और सूखी फलियां दालें बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं। यह फसल हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और बिहार में उगाई जाती है। यह प्रोटीन और अमीनो एसिड का अच्छा स्त्रोत है। यह फसल पशुओं के लिए चारे के तौर पर भी प्रयोग की जाती है।

भारत में प्रमुख मटर उत्पादन राज्य:- कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार और उड़ीसा।

भारत में हरी मटर के स्थानीय नाम: – मटर (हिंदी), बटगाडले, बहतहन (कन्नड़), वाटाणा  (मराठी), भटानी (तेलुगु), पटरानी (तमिल), मटर (बंगाली), पाचा पटानी (मलयालम), मतारा (उड़िया), मटर (पंजाबी)।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार – 

PG 3: यह छोटे कद वाली अगेती किस्म है जो 135 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके फूल सफेद और दाने क्रीमी सफेद होते हैं। यह सब्जी बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। इस पर सफेद रोग कम आता है और फली छेदक का हमला कम होता है।

पंजाब 88: यह पी ए यू लुधियाणा की किस्म है। फलियां गहरी हरी और मुड़ी हुई होती हैं। यह 100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी हरी फलियों की औसतन पैदावार 62 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

मटर अगेता 6: यह पी ए यू लुधियाणा की तरफ से तैयार की गई अगेती और छोटे कद की किस्म है। इसके दाने मुलायम और हरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

फील्ड मटर 48 : यह अगेती पकने वाली दरमियानी किस्म है। इसके दाने हल्के हरे रंग के मोटे और झुर्रियों वाले होते हैं। यह 135 दिनों में पकती है। यह सब्जी बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। इसकी औसतन पैदावार 27 क्विंटल प्रति एकड़ है।

AP 3: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यदि इसे अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में बोया जाए तो यह किस्म बिजाई के 70 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन उपज 31.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

मटर अगेता – 7: यह अगेती किस्म है जो कि 65—70 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन उपज 32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

पंजाब 89: इस किस्म की फलियां जोड़े में उगती हैं। यह किस्म बिजाई के 90 दिना के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बीज स्वाद में मीठे होते हैं और इसकी फलियां 55 प्रतिशत बीज देती हैं। इसकी औसतन उपज 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

मीठी फली : यह किस्म बिजाई के 90 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म प्रोटीन और मीठे से भरपूर होती है। इसकी औसतन उपज 47 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

जलवायु – इस खेती में बीज अंकुरण के लिए औसत 22 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है, वहीं अच्छे विकास के लिए 10 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान बेहतर होता है।

भूमि  – मटर के पौधों के समुचित विकास के लिए उचित जल निकास वाली दोमट व मटियार दोमट मिट्टी अच्छी होती है | मटर की खेती के लिए मिट्टी का पीएच 6.5-7.5 होना चाहिए |

खेत की तैयारी  – खरीफ की फसल की कटाई के बाद भूमि की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर से 2-3 बार हैरो चलाकर अथवा जुताई करके पाटा लगाकर भूमि तैयार करनी चाहिए। जल जमाव से रोकने के लिए खेत को अच्छी तरह समतल कर लेना चाहिए। बिजाई से पहले खेत की एक बार सिंचाई करें यह फसल के अच्छे अंकुरन में सहायक होती है।

बीज दर – बिजाई के लिए 35-45 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

बीज उपचार – बिजाई से पहले बीजों को कप्तान या थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक तरीके से उपचार के बाद बीजों से अच्छी पैदावार लेने के लिए उन्हें एक बार राइज़ोबियम लैगूमीनोसोरम से उपचार करें। इसमें 10 प्रतिशत चीनी या गुड़ का घोल होता है। इस घोल को बीजों पर लगाएं और फिर बीज को छांव में सुखाएं। इससे 8-10 प्रतिशत पैदावार में वृद्धि होती है।

बुवाई का समय  – मटर की खेती के लिए अक्टूबर-नवंबर माह का समय उपयुक्त होता है।

बुवाई का तरीका – मटर की बुवाई सीडड्रिल द्वारा की जाती है।

दूरी और गहराई  – 30 सेंमी. की दूरी पर और बीज की गहराई 5-7 सेंमी. रखनी चाहिये जो मिट्टी की नमी पर निर्भर करती है। 

खाद और उर्वरक: – मटर की खेती के अच्छे उत्पादन के लिए बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय वर्मी कम्पोस्ट या अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। रासायनिक उर्वरक की मात्रा नाइट्रोजन 20 किलो, फास्फोरस 25 किलो की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। और पोटाश की कमी वाले क्षेत्रो में 20 किलो पोटाश/एकड़ प्रयोग करें। ध्यान रखें  रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही प्रयोग में लाये।

सिंचाई  – अच्छे अंकुरण के लिए बिजाई से पहले सिंचाई जरूर करनी चाहिए। यदि इसकी खेती धान फसल के बाद की जाती है तो मिट्टी में पर्याप्त नमी होने पर, इसे सिंचाई के बिना भी बोया जा सकता है। बिजाई के बाद एक या दो सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई फूल निकलने से पहले और दूसरी फलियां भरने की अवस्था में करें। भारी सिंचाई से पौधों में पीलापन बढ़ जाता है और उपज में कमी आती है।

कटाई एवं गहाई – हरी फलियों के लिए बोई गई फसल दिसम्बर- जनवरी में फलियाँ देती है। फलियों को 10-12 दिन के अंतर पर 3-4 बार में तोड़ना चाहिए। तोड़ते समय फलियाँ पूर्ण रूप से भरी हुई होना चाहिए, तभी बाजार में अच्छा भाव मिलेगा। दानों वाली फसल मार्च अन्त या अप्रैल के प्रथम सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है। फसल अधिक सूख जाने पर फलियाँ खेत में ही चटकने लगती है। इसलिये जब फलियाँ पीली पड़कर सूखने लगे उस समय कटाई कर लें। फसल को एक सप्ताह खलिहान में सुखाने के बाद बैलों की दाँय चलाकर गहाई करते है। दानों को साफ कर 4-5 दिन तक सुखाते है जिससे कि दानों में नमी का अंश 10-12 प्रतिशत तक रह जाये।उपज एवं भण्डारण – मटर की हरी फलियों की पैदावार 150-200 क्विंटल तथा फलियाँ तोड़ने के पश्चात् 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हरा चारा प्राप्त होता है। दाने वाली फसल से औसतन 20-25 क्विंटल दाना और 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भूसा प्राप्त होता है। जब दानों मे नमी 8-10 प्रतिशत रह जाये तब सूखे व स्वच्छ स्थान पर दानो को भण्डारित करना चाहिए।

फसल संबंधी रोग जानने के लिए यहाँ क्लिक करें-

https://www.kisaanhelpline.com/crops/vegetable/20-Pea#(%E0%A4%AE%E0%A4%9F%E0%A4%B0)

https://hindi.krishijagran.com/farm-activities/major-diseases-and-management-in-pea-crop/

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