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किसान भाई रबी के मौसम में कई फसलें जैसे कि गेहूं, चना, मटर, सरसों, आलू आदि की बुवाई करते हैं। उसी में अलसी की खेती ( (Flaxseed Cultivation) प्रमुख मानी जाती है। अलसी एक प्रमुख तिलहन फसल होने के साथ- साथ कई अन्य तरह से भी प्रयोग में लाई जाती है।
बहुउद्देशीय फसल होने के चलते देश में इसकी मांग काफी बढ़ी है। अलसी के बीज से निकलने वाले तेल से कई दवायें बनती हैं। इसके प्रत्येक भाग का प्रयोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न रूपों में किया जा सकता है।
इसके बीज फोड़े- फुन्सी ठीक करने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं। इसके तेल का पेंट्स, वार्निश बनाने के साथ प्रेस प्रिटिंग हेतु स्याही तैयार करने तथा पैड इंक में भी उपयोग किया जाता है।
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अलसी की खली दूध देने वाले जानवरों के लिये पशु आहार के रूप में भी प्रयोग की जाती है, साथ ही खली में विभिन्न पौषक तत्वों की उचित मात्रा होने के कारण इसका उपयोग खाद के रूप में भी किया जाता है।
अलसी के तने से उच्च गुणवत्ता वाला रेशा प्राप्त किया जाता है व रेशे से लिनेन तैयार किया जाता है। तो किसान भाइयों, चलिए आपको बताते हैं कि किन बातों को ध्यान में रखकर आप अलसी की खेती से अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं:-
अलसी की खेती के लिए भूमि का चयन (Land Selection For Flaxseed Cultivation)
अलसी की खेती के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की बजाय मध्यम उपजाऊ मिट्टी अच्छी मानी जाती है। ज़मीन में अच्छे से जल निकास का प्रबंध होना चाहिए। इसकी फसल के लिये काली भारी एवं दोमट या जिसे मटियार भी कहते हैं, ऐसी मिट्टियाँ सबसे अधिक उपयुक्त मानी जाती हैं।
अलसी का दाना (flax seeds) महीन एवं छोटा होता है, अतः अच्छे अंकुरण के लिए खेत खरपतवार रहित व मिट्टी का भुरभुरी होना आवश्यक होता है। उचित पानी एवं उर्वरक व्यवस्था के साथ किसी भी प्रकार की मिट्टी में अलसी की खेती (flaxseed cultivation) सफलता पूर्वक की जा सकती है।
मृदा का उपचार (Soil Treatment)
भूमि जनित एवं बीज जनित रोगों के नियंत्रण हेतु बयोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) ट्राइकोडरमा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू.पी. अथवा ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू.पी. 2.5 किग्रा. प्रति हे. 60-75 किग्रा. सड़ी हुए गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से भूमि जनित रोगों के प्रबन्धन में सहायक होता है।
किस समय करें अलसी के बीज की बुवाई (Flaxseed Showing Season)
असिंचित भूमि यानी कि ऐसी भूमि जहाँ सिंचाई का कोई साधन नहीं होता है, वहां अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में तथा सिंचित क्षेत्रों यानी कि जहाँ सिंचाई का साधन होता है, वहां नवम्बर के प्रथम पखवाड़े में बुवाई करना चाहिये। उतेरा जल्दी बोनी करने पर अलसी की फसल को फली मक्खी एवं पाउडरी मिल्डयू आदि से बचाया जा सकता है।
उर्वरक एवं खाद का प्रयोग कब और कितना करें? (When and how to use fertilizer in Flaxseed)
जैविक खाद – सिंचित अलसी के लिए 2.5 टन नाडेप कम्पोस्ट व 400 ग्राम पीएसबी कल्चर या 1.5 टन वर्मी कम्पोस्ट एवं 400 ग्राम पीएसबी कल्चर डालकर अलसी फसल के किसान बिना रासायनिक खाद डाल सकते हैं।
बीज- एक हेक्टेयर यानी ढाई एकड़ के लिए 25 से 30 किलोग्राम अलसी का बीज चाहिए। बुवाई 30 सेंटीमीटर या एक फीट की दूरी पर कतारों में होनी चाहिए। फास्फोरस के लिए सुपर फास्फेट का प्रयोग अधिक लाभप्रद है।
ऐसे करेंअलसी की खेती में सिंचाई (Flaxseed Irrigation)
यह फसल प्रायः असिंचित रूप में बोई जाती है, परन्तु जहाँ सिंचाई का साधन उपलब्ध है, वहाँ पहली सिंचाई फूल आने पर तथा दूसरी दाना बनते समय करने से उपज में बढोत्तरी होती है |
अलसी की खेती मे यूं करें खतपतवार नियंत्रण! (How to control weeds in flaxseed crop)
खरपतवार प्रबंधन के लिये बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पहली निंदाई-गुड़ाई एवं 40-45 दिन बाद दूसरी निंदाई-गुड़ाई करेें। अधिकतर अलसी में जंगली गाजर, प्याजी, खरतुआ, बथुआ, सेंजी, कुष्णनील, हिरनखुरी, चटरी-मटरी, अकरा-अकरी, सत्यानाशी आदि तरह के खरपतवार देखें जाते है, इन खरपतवारों से फसल को बचाने के लिए किसान भाई यह उपाय भी अपने उपयोग मे ला सकते हैं।
अलसी के रोग, कीट वा नियंत्रण के उपचार: (Insects and Diseases Management in Flaxseed)
खरपतवार प्रबंधन (Weed Management):
अलसी की फसल में रासायनिक विधि से खरपतवार प्रबंधन हेतु पेंडीमेथलीन 30 प्रतिशत ई.सी. की 3.30 लीटर प्रति हेक्टेयर 800-1000 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नाजिल से बुआई के 2-3 दिन के अन्दर समान रूप से छिडकाव करें।
गेरुआ (रस्ट) रोग (Rust disease):
अलसी में इस प्रकार का रोग यह मेलेम्पसोरा लाइनाई नामक फफूंद से होता है। इस रोग के लक्षण की बात करें तो इसके शुरुआत में चमकदार नारंगी रंग के धब्बे इसकी पत्तियों के दोनों ओर होने लगते हैं, और फ़िर धीरे धीरे यह पौधे के सभी भागों में फैल जाते हैँ । रोग नियंत्रण को ध्यान में रखते हुए अलसी के रोगरोधी किस्में लगानी चाहिए।
गेरुआ रोग के लिए रसायनिक दवा के रुप में टेबूकोनाजोल 2 प्रतिशत 1 ली. प्रति हेक्टे. की दर से या ;केप्टाऩ हेक्साकोनाजालद्ध का 500-600 ग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
उकठा (विल्ट) रोग (Wilt Disease):
यह बेहद हांनिकारक मृदा जनित रोग होता है, जिसका मतलब है पौधों में मिट्टी से होने वाला रोग ,यह रोग अंकुरण से लेकर फसल तैयार होने के बीच कभी भी हो सकता है। इस रोग में पौधों की पत्तियों के जो किनारे होते हैं वो अन्दर की ओर मुड़कर मुरझा जाते हैं, और वो पौधा ख़त्म होने की कगार पर आ जाता है, वही आपको बता दे कि यह रोग भूमि में पडे़ फसल अवशेषों के वजह से होता है।
उकठा रोग (Wilt disease) के नियंत्रण हेतु ट्राईकोडरमा विरिडी 1 प्रतिशत / ट्राईकोडरमा हरजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू.पी. की 4.0 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजशोधन कर बुआई करना चाहिए |
चूर्णिल आसिता (भभूतिया रोग) (Powdery mildew bhabhutia disease):
इस रोग की पहचान ये होती है कि, इसकी पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा जमाव हो जाता है। रोग की अधिकता होने पर इसके दाने सिकुड़ कर छोटे छोटे से रह जाते हैं। अलसी की देर से बुवाई करने पर एवं शीतकालीन वर्षा होने तथा अधिक समय तक नमी बनी रहने की वजह से इस रोग का प्रकोप अधिक बढ़ता है।
इस रोग से बचाव के लिए कवकनाशी के रुप मे थायोफिनाईल मिथाईल 70 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 300 ग्राम प्रति हेक्टे. की दर से छिड़काव करना चाहिए।
अंगमारी (आल्टरनेरिया) (Blight Alternaria):
इस रोग से अलसी के पौधे (flax plants) मे फूलों की पंखुडियों के निचले हिस्सों में गहरे पत्तों पर गोल आकार के पीले-भूरे धब्बे बनते हैं। जिस कारण फूल निकलने से पहले ही सूख जाते हैं।
अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा एंव गेरुई रोग के नियंत्रण हेतु मैकोजेब 75 डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए | अंगमारी (आल्टरनेरिया) रोग से बचाव के लिए थीरम 75 प्रतिशत डब्लू.एस. 2.5 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजशोधन कर बुआई करना चाहिए |
अलसी की फसल में कई हानिकारक कीट भी लग जाते हैं जो फसल को बर्बाद तक कर देते हैं। कीटो की बात करें तो इनमे से अलसी की इल्ली प्रौढ़ कीट,अर्ध कुण्डलक इल्ली,चने की इल्ली,बालदार सुंडी,गालमिज,फली मक्खी (बड फ्लाई) प्रमुख होती हैं, तो वक़्त रहते कृषि वैज्ञानिक की सलाह लेकर अलसी के खेती (flaxseed cultivation) मे रासायनिक वा जैविक खाद वा दवाओं का उपयोग कर सकते हैं।
अलसी की कटाई एवं भण्डारण (Flaxseed Harvesting)
अलसी के भडारण के लिए जरुरी है, कि इसकी पत्तियाँ सूखी हो ,और इसके बीज चमकदार हो साथ ही केप्सूल भूरे रंग के हो जायें तब फसल की कटाई करनी चाहिये। बीज में 8 प्रतिशत नमी की मात्रा वा 70 प्रतिशत तक सापेक्ष आद्रता भंडारण के लिये सर्वोत्तम मानी जाती है।
तिलहन फसल की अधिक जानकारी के लिए हमारे अन्य blog – भारत में सरसों की खेती: किस्में, खेती और बीज दर
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