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बुवाई से लेकर फसल की मड़ाई तक, धान की खेती की संपूर्ण जानकारी!

धान की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है।

खरीफ के सीजन में धान की खेती भारत के कई क्षेत्रों में की जाती है। भारत का धान की पैदावार में दूसरा स्थान है। कृषि वैज्ञानिक भी इसकी पैदावार को बढ़ाने के लिए लगातार नई किस्मों का अविष्कार कर रहे हैं, ताकि किसानों की आय में अधिक इजाफा हो सके।

ग्रामिक पर भी कई उन्नत किस्मों के धान के बीज उपलब्ध हैं, अभी ऑर्डर करने पर आप काफ़ी सस्ती दर पर अपना ऑर्डर घर बैठे पा सकते हैं।

धान की खेती

इस ब्लॉग में आज हम आपको धान की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी दे रहे हैं, जिसे अपनाकर आप इस फसल से कई गुना अधिक मुनाफा पा सकते हैं।

धान की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु

धान उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु की फसल मानी जाती है, इस फसल को उन सभी क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है, जहां 4 से 6 महीनों तक औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक रहता है।

फसल के अच्छे विकास के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस और पकने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। रात्रि का तापमान जितना कम रहे, फसल की पैदावार उतनी ही अच्छी होती है, लेकिन तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए। 

धान की खेती के लिए उपयुक्त भूमि

धान की खेती के लिए ऐसी मिट्टी उपयुक्त होती है, जिसकी जलधारण क्षमता अधिक हो, जैसे- चिकनी, मटियार या मटियार-दोमट मिटटी आदि। भूमि के पी एच मान की बात करें तो ये 5.5 से 6.5 सबसे अच्छा माना जाता है, हालांकि धान की खेती 4 से 8 या इससे भी अधिक पी एच मान वाली भूमि में की जा सकती है। 

धान की खेती के लिए नर्सरी की तैयारी

धान की नर्सरी ऐसी भूमि में तैयार करनी चाहिए जो उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली हो, साथ ही आस पास सिंचाई का साधन उपलब्ध हो। धान की नर्सरी की बुवाई का सही समय वैसे तो किस्मों के चुनाव पर निर्भर करता है, लेकिन 15 मई से लेकर 20 जून तक का समय बुवाई के लिए सबसे सही माना गया है।

धान की नर्सरी डालने के लिए खेत में पानी भरकर 2 से 3 बार जुताई करें ताकि मिट्टी लेहयुक्त हो जाए और खरपतवार नष्ट हो जाएं। आखिरी जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें। 

जब मिट्टी की सतह पर पानी न रहे तो खेत को 1.25 से 1.50 मीटर चौड़ी और सुविधाजनक लम्बी क्यारियों में बांट लें, ताकि बुवाई, निराई और सिंचाई आदि आसानी से की जा सकें। क्यारियां बनाने के बाद पौधशाला में 5 सेंटीमीटर ऊंचाई तक पानी भर दें और अंकुरित बीजों को समान रूप से क्यारियों में बिखेर दें।

धान की खेती के लिए नर्सरी की तैयारी

पौधशाला के 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में लगभग 700 से 800 किलोग्राम गोबर की गली सड़ी खाद, 8 से 12 किलोग्राम यूरिया, 15 से 20 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 5 से 6 किलोग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश और 2 से 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से मिला लें। 

जिन क्षेत्रों में लौह तत्व की कमी के कारण हरिमाहीनता के लक्षण दिखाई दें, उन क्षेत्रों में 2 से 3 बार एक सप्ताह के अन्तराल पर 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट के घोल का छिड़काव करने से हरिमाहीनता की समस्या को रोका जा सकता है।

पौधशाला में 10 से 12 दिन बाद निराई अवश्य करें, यदि पौधशाला में अधिक खरपतवार होने की संभावना हो तो ब्युटाक्लोर 50 ई सी या बैन्थियोकार्ब जैसी हर्बिसाइड्स की 120 मिलीलीटर मात्रा 60 लीटर पानी में घोलकर 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में बुवाई के 4 से 5 दिन बाद खरपतवार उगने से पहले छिड़क दें। 

पौधशाला में कीटों का प्रकोप होते ही थाइमेथोएट 30 ई सी, 2 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कना चाहिए। सामान्यतः जब पौध 21 से 25 दिन पुरानी हो जाए तथा उसमें 5 से 6 पत्तियां निकल जाएं तो यह रोपाई के लिए उपयुक्त होती है। पौध उखाड़ने के एक दिन पहले नर्सरी में अच्छी तरह से पानी भर देना चाहिए, जिससे पौध को आसानी से उखाड़ा जा सके और साथ ही साथ पौध की जड़ों को भी कम नुकसान हो। 

इस तरह करें खेत की मिट्टी का उपचार 

खेत तैयार करते समय, प्रति एकड़ खेत की मिट्टी में 10-12 किलो BGA यानि नील हरित शैवाल और 10-12 किलो PAB जैव उर्वरक का छिड़काव करें। इन उर्वरकों में उपस्थित जीव, धान के पौधों तक नाइट्रोजन व पोटाश आदि जरूरी तत्वों को अच्छे ढंग से पहुंचाने में मदद करेंगे। 

अपने क्षेत्र के अनुसार चुनें धान की किस्म

अधिकतर किसान दुकानदार के कहने पर ही धान के बीज (Paddy Seeds) का चुनाव करते हैं, जबकि अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की मिट्टी और जलवायु के अनुसार धान की किस्मों (Paddy Seeds Varieties) का चुनाव होना चाहित।

इसके लिए आप किसी कृषि विशेषज्ञ से परामर्श ले सकते हैं। आप चाहें तो ग्रामिक के कृषि विशेषज्ञ के साथ भी जुड़ सकते हैं। कई बार महंगे और अच्छे बीज-खाद लगाने के बाद भी सही उपज नहीं मिल पाती है, इसलिए बुवाई से पहले बीज व खेत का उपचार अवश्य कर लेना चाहिए। 

धान की खेती

बीज शोधन कर अपनी फसल को रोगों से बचाएं

बीज शोधन करने के लिए सबसे पहले दस लीटर पानी में 1.6 किलो खड़ा नमक मिलाकर घोल बना लें, इस घोल में एक अंडा या एक आलू डालें। जब अंडा या आलू इस घोल में तैरने लगे तो समझिए की घोल तैयार हो गया है।

अब इस घोल में धान के बीज डालें, जो बीज पानी की सतह पर तैरने लगे उसे फेंक दें, क्योंकि ये बीज बुवाई के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। जो बीज नीचे बैठ जाए उसे निकाल लें, यही बीज अच्छे होते हैं। इस घोल का उपयोग आप पांच से छह बार कर सकते हैं। अब शोधित किए गए बीज को साफ पानी से तीन- चार बार अच्छी तरह धो लें। 

धान की फसल के लिए पौध की रोपाई

रोपाई के लिए पौध उखाड़ने से एक दिन पहले नर्सरी में पानी लगा दें तथा पौध उखाड़ते समय सावधानी रखें| पौधों की जड़ों को धोते समय नुकसान न होने दें और पौधों को काफी नीचे से पकड़ें, पौध की रोपाई पंक्तियों में करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। एक स्थान पर 2 से 3 पौध ही लगाएं, इस प्रकार एक वर्ग मीटर में लगभग 50 पौधे होने चाहिए। 

धान की फसल के लिए पौध की रोपाई

फसल को समय पर दें पोषण

धान की रोपाई के 25 से 30 दिन बाद इसमें शाखाएं निकलने लगती हैं। इसी समय धान को सबसे ज़्यादा पोषण की ज़रूरत होती है। इस दौरान खेत पानी न रखें, बस हल्की नमी बनी रहने दें। उचित न्यूट्रीशन के लिए धान के एक एकड़ खेत में 20 किलो नाइट्रोजन और 10 किलो जिंक डालें।

इस समय खेत से निकालें पानी

धान की फसल के लिए पानी बहुत ज़रूरी होता है, लेकिन पानी आपकी फसल को बर्बाद भी कर सकता है। इसलिए धान की रोपाई के 25 दिन बाद खेत से पानी निकाल देना चाहिए, लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि खेत बिल्कुल सूखा भी ना रहे।

इससे मिट्टी फटने लगती है। खेतों से अतिरिक्त पानी निकालने के बाद. धान की जड़ों पर सीधे धूप पड़ती है और फसल को अच्छी ऑक्सीजन मिलती है। इस दौरान आप खेत की निराई-गुड़ाई भी कर सकते हैं।

धान की फसल में पाटा चलाएं

धान की रोपाई के 20 दिन बाद फसल में पाटा जरूर चलाएं। ऐसा करने के लिए एक 10-15 फीट का बांस लें और दो बार पाटा लगाएं। इससे धान की जड़ों में थोड़ा झटका लगता है और जो फसलें छोटी या हल्की होती हैं, वो भी बढ़ने लगती हैं।

ध्यान रहे कि पाटा लगाते समय खेत में पानी जरूर होना चाहिए। पाटा लगाने का एक लाभ ये भी होता है कि धान की फसलों में लगने वाली सुंडी जैसे कीड़े झड़कर पानी में गिर जाते हैं, जिससे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचता है। पाटा लगाने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद खेत में दोबारा पानी भरें।

धान की फसल के लिए खर-पतवारनाशी

धान की रोपाई के बाद फसल में खरपतवारनाशी का उपयोग जरूर करें। इसके नियंत्रण के लिए आप 2-4D नमक दवा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा आप पेंडीमेथलीन 30 ई.सी की 3.5 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 850-900 लीटर पानी में मिलाकर खेत में छिड़काव कर सकते हैं।

धान की खेती में पोषक तत्व प्रबंधन

  • 1. अधिक उपज और भूमि की उर्वरता शक्ति बनाये रखने के लिए हरी खाद या गोबर या कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। हरी खाद हेतु सनई या ढेंचा का प्रयोग किया गया हो तो नाइट्रोजन की मात्रा कम की जा सकती है, क्योंकि सनई या ढेंचे से लगभग 50 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
  • 2. उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर करना चाहिए, धान की बौनी किस्मों के लिए 120 किलोग्राम नाइद्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए।
  • 3. बासमती किस्मों के लिए 100 से 120 किलोग्राम नाइद्रोजन, 50 से 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 से 50 किलोग्राम पोटाश और 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
  • 4. संकर धान के लिए 130 से 140 किलोग्राम नाइद्रोजन, 60 से 70 किलोग्राम फॉस्फोरस, 50 से 60 किलोग्राम पोटाश और 25 से 30 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
  • 5. यूरिया की पहली तिहाई मात्रा का प्रयोग रोपाई के 5 से 8 दिन बाद करें जब पौधे अच्छी तरह से जड़ पकड़ लें| दूसरी एक तिहाई यूरिया की मात्रा कल्ले फूटते समय (रोपाई के 25 से 30 दिन बाद) और शेष एक तिहाई हिस्सा फूल आने से पहले (रोपाई के 50 से 60 दिन बाद) खड़ी फसल में छिड़काव करके करें।
  • 6. फास्फोरस की पूरी मात्रा सिंगल सुपर फास्फेट या डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) के द्वारा, पोटाश की भी पूरी मात्रा म्युरेट ऑफ पोटाश के माध्यम से एवं जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा धान की रोपाई करने से पहले अच्छी प्रकार मिट्टी में मिला देनी चाहिए।
  • 7. यदि किसी कारणवश पौध रोपते समय जिंक सल्फेट खाद न डाला गया हो तो इसका छिड़काव भी किया जा सकता है। इसके लिए 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर 3 छिड़काव 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट + 0.25 प्रतिशत बुझे हुए चूने के घोल के साथ करने चाहिए। पहला छिड़काव रोपाई के एक महीने बाद करें। 

धान की खेती के लिए जल प्रबंधन

धान की फसल के लिए सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होना बहुत ही जरूरी है। सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होने पर लगभग 5 से 6 सेंटीमीटर पानी खेत में खड़ा रहना अति लाभकारी होता है। धान की चार अवस्थाओं- रोपाई, ब्यांत, बाली निकलते समय और दाने भरते समय खेत में सर्वाधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है।

इन अवस्थाओं पर खेत में 5 से 6 सेंटीमीटर पानी अवश्य भरा रहना चाहिए। कटाई से 15 दिन पहले खेत से पानी निकाल कर सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

धान की खेती

धान की फसल में खरपतवार रोकथाम

धान के खरतपवार नष्ट करने के लिए खुरपी या पेडीवीडर का प्रयोग किया जा सकता है। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करना चाहिए, धान के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्रामिक पर उच्च गुणवत्ता के herbicide उपलब्ध हैं, आप बेहद किफायती मूल्य में घर बैठे अपना ऑर्डर प्राप्त कर सकते हैं।

धान की फसल में कीट नियंत्रण

तना छेदक- 

तना छेदक की केवल सुंडियां ही फसल को हानि पहुंचाती हैं और वयस्क पतंगे फूलों के शहद आदि पर निर्वाह करते हैं। बाली आने से पहले इनके हानि के लक्षणों को ‘डेड-हार्ट’ एवं बाली आने के बाद ‘सफेद बाली’ के नाम से जाना जाता है।

रोकथाम-

लाइट ट्रैप (प्रकाश प्रपंच) के उपयोग से तना छेदक की संख्या पर निगरानी रखें। निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप 5 प्रति हेक्टेयर पीला तना छेदक के लिए लगाएं। रोपाई के 30 दिन बाद ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम (ट्राइकोकार्ड) 1 से 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 2 से 6 सप्ताह तक छोड़ें। अधिक प्रकोप होने पर दानेदार कीटनाशी जैसे कार्बोफ्युरॉन 3 जी या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी या फिप्रोनिल 0.3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्विनलफॉस 25 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50 एस पी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करें। 

पत्ता लपेटक- 

इस कीट की भी केवल सुंडियां ही फसल को हानि पहुंचाती हैं। जबकि वयस्क पतंगे फूलों के शहद पर जिंदा रहते हैं। सूंडी पत्तों के दोनों किनारों को सिलकर इनके हरे पदार्थ को खा जाती है। अधिक प्रकोप की अवस्था में फसल झुलसी नजर आती है। 

रोकथाम-

प्रकाश-प्रपंच के प्रयोग से कीट की निगरानी करें। ट्राइकोग्रामा काइलोनिस (ट्राइकोकार्ड) 1 से 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 30 दिन रोपाई उपरांत 3 से 4 सप्ताह तक छोड़ें। अधिक प्रकोप होने पर क्विनलफॉस 25 ई सी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई सी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50 एस पी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या फ्लूबैंडिमाइड 39.35 एस सी 1 मिलीलीटर प्रति 5 लीटर पानी का छिड़काव करें या दानेदार कीटनाशी कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग भी कर सकते हैं। 

सैनिक कीट- 

इस कीट की केवल सुंडियां ही फसल को नुकसान करती हैं, जबकि पतंगे फूलों से रस चूसते हैं। सुंडियां (झुंड में पाई जाने वाली सुंडी) नर्सरी में पौध को इस तरह कुतर कर खा जाती हैं, जैसे इन्हें जानवरों ने चर लिया हो। 

ग्रास हॉपर- 

इस कीट के फुदकने वाले शिशु और वयस्क पत्तों को इस तरह खाते हैं, जैसे कि पशु चर गए हों।

रोकथाम-

गर्मी में धान के खेतों की मेड़ों की निराई करें, ताकि इस कीट के अंडे नष्ट हो जाए। इस कीट की साल में एक ही पीढ़ी होती है और अंडे नष्ट कर देने से इसका प्रकोप काफी कम हो जाता है। प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरोपायरीफॉस 20 ई सी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्विनलफॉस 25 ई सी, 3 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करें या कार्बारिल या मिथाइल पैराथियान धूल 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें। 

धान की फसल में रोग नियंत्रण

ब्लास्ट, बदरा या झोंका रोग- 

यह रोग फफूंद से फैलता है। पौधों के सभी भाग इस बीमारी द्वारा प्रभावित होते हैं। ज़्यादा बढ़ने पर यह रोग पत्तियों पर भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देता है। इनके धब्बों के किनारे कत्थई रंग के और बीच वाला भाग राख के रंग का होता है। रोग के तेजी से आक्रमण होने पर बाली का आधार भी ग्रसित हो जाता है, जिससे इस अवस्था को ग्रीवा गलन कहते हैं। ये रोग लगने पर बाली आधार से मुड़कर लटक जाती हैं, जिससे दाने का भराव भी पूरा नहीं हो पाता है।

रोकथाम-

ट्राइसायक्लेजोल 2 ग्राम प्रति किलोग्राम से उपचारित बीज बोएं। जुलाई के पहले पखवाड़े में रोपाई पूरी कर लें, देर से रोपाई करने पर झोंका रोग के लगने की संभावना बढ़ जाती है। यदि पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगें तो कार्बेन्डाजिम 1000 या ट्राइसायक्लेजोल 500 ग्राम का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करें। 

पत्ती का जीवाणु झुलसा रोग- 

यह बीमारी जीवाणु के द्वारा होती है, पौधों की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह बीमारी कभी भी हो सकती है। इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं। संक्रमण की उग्र अवस्था में पूरी पत्ती सूख जाती है, इसलिए बालियां दानों रहित रह जाती है।

रोकथाम-

उपचारित बीज का प्रयोग करें, इसके लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 2.5 ग्राम + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल में बीज को 12 घंटे तक डुबोएं। इस बीमारी के लगने की अवस्था में नाइट्रोजन का प्रयोग रोकथाम तक बंद कर दें। जिस खेत में बीमारी लगी हो उसका पानी दूसरे खेत में न जाने दें, इससे रोग के फैलने की आशंका होती है, साथ ही इस रोग वाले खेत को भी पानी न दें।  

खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत से समुचित जल निकास की व्यवस्था की जाए, तो बीमारी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। बीमारी के नियंत्रण के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन-100 एवं 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से तीन से चार बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव रोग दिखने पर और बाद में ज़रूरत के मुताबिक 10 दिन के अन्तराल पर ये छिड़काव करें। 

शीथ ब्लाइट- 

यह बीमारी फफूंद के द्वारा होती है। इसके प्रकोप से पत्ती के शीथ पर 2 से 3 सेंटीमीटर लम्बे हरे से भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो कि बाद में चलकर भूसे के रंग के हो जाते हैं। इसके साथ ही धब्बों के चारों तरफ बैंगनी रंग की पतली धारी बन जाती है।

रोकथाम- कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम या शीथमार- 3, 1.5 लीटर या हेक्साकोनाजोल 1000 मिलीलीटर दवा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

खैरा रोग- 

यह बीमारी जस्ते की कमी के कारण होती है। इसके लगने पर निचली पत्तियां पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं एवं बाद में पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने पर रोग ग्रसित पत्तियां सूखने लगती हैं, कल्ले कम निकलते हैं और पौधों की वृद्धि रुक जाती है। 

रोकथाम-

यह बीमारी न लगे इसके लिए 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय डालें। बीमारी लगने के बाद इसकी रोकथाम के लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलोग्राम चूना 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करें। अगर इससे भी रोकथाम न हो तो 10 दिन बाद ये छिड़काव फिर से करें। 

धान फसल की कटाई और मड़ाई

बालियां निकलने के लगभग एक महीने बाद धान पक जाता है। कटाई के लिए जब 80 प्रतिशत बालियों में 80 प्रतिशत दाने पक जाएं, और उनमें नमी 20 प्रतिशत हो, वो समय अच्छा होता है। कटाई दरांती से जमीन की सतह पर व ऊसर भूमियों में भूमि की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए। वहीं इसकी मड़ाई की बात करें तो ये ज्यादातर हाथ से पीटकर की जाती है। हालांकि अब कुछ किसान साथी मड़ाई के लिए थ्रेसर का भी इस्तेमाल करते हैं। 

FAQs

1.धान (Paddy) की पैदावार बढ़ाने के लिए क्या डालें?

धान की फसल में समय-समय पर जीवामृत, जैविक खाद या एंजाइम डालते रहें। इससे पौधों में अच्छी वृद्धि होती हैं और जड़ें मजबूत होती है। साथ ही पौधों में रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा होती हैं। इससे पैदावार में काफ़ी इज़ाफा होता है।

2. धान में घास नष्ट करने के लिए कौन सी दवा डालें?

धान में घास नष्ट करने के लिए रोपाई के दो-तीन दिन के अंदर पेंडीमेथलीन 30 ई.सी की 3.5 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 850-900 लीटर पानी में मिलाकर खेत में छिड़काव कर सकते हैं।

3.धान में नमक डालने से क्या फायदा होता है?

नमक का छिड़काव करने से जमीन में नमी बनी रहती है और धान की फसल 15 दिन तक बिना बारिश या सिंचाई के भी सुरक्षित रह सकती है। इससे भूमि की उर्वरक क्षमता भी प्रभावित नहीं होती है।

4.धान पीला हो रहा है तो क्या करें?

धान में पीलापन पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है। इसके नियंत्रण के लिए धान की फसल में 2 किलो प्रति एकड़ यूरिया को 200 लीटर पानी में मिलाकर खेतों में चिडकें। इसके अलावा 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से जिंक सल्फेट को 200 लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करें।

5.धान में पानी कब बंद करना चाहिए?

धान की रोपाई के 15 से 20 दिन तक खेत में पानी जमा रखना चाहिए, इसके बाद इसे निकाल देना चाहिए। इससे खरपतवार आने की संभावना कम हो जाती है।

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