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खस, जिसे अंग्रेजी में वेटिवर (Vetiver) कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण औषधीय एवं सुगंधित पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम वेटिवेरिया ज़िज़ेनोइड्स है। खस का उपयोग विशेषकर खुशबूदार तेल, इत्र, औषधि, और जल संरक्षण में होता है।
ये मुख्य रूप से भारत, थाईलैंड, इंडोनेशिया और अन्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसके लिए उचित जलवायु, मिट्टी, और खेती की तकनीकों की जानकारी आवश्यक है। सही तरीके से खस की खेती करके किसान न केवल अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
तो चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में खस की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं!
खस की खेती के लिए जलवायु व मिट्टी
खस की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त है। इसे गर्म और आर्द्र जलवायु में बेहतर परिणाम मिलते हैं। खस के पौधे को बढ़ने के लिए औसतन 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 100-150 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, खस पौधे सूखे को भी सहन कर सकते हैं।
मिट्टी की बात करें तो, खस की खेती के लिए गहरी, उपजाऊ, और अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। हालांकि, यह पौधा हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन जलभराव ज्यादा नहीं होना चाहिए।
भूमि की तैयारी
खस की खेती के लिए भूमि की अच्छी तैयारी आवश्यक है। पहले खेत को गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इसके बाद, खेत को समतल कर लें और आवश्यकतानुसार गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें। इसके बाद खेत को छोटे-छोटे खंडों में बाँट लें और हर खंड में 1-1.5 मीटर की दूरी पर पंक्तियाँ बनाएं।
खस की खेती की विधि व समय
खस की खेती के लिए बीज या पौध का चुनाव महत्वपूर्ण है। खस के पौधे मुख्यतः कटिंग या जड़ों से उगाए जाते हैं। बीज से पौध तैयार करना भी एक विकल्प है, लेकिन यह तरीका कम प्रयोग में आता है क्योंकि इसमें अधिक समय लगता है और सफलता दर भी कम होती है। पौध तैयार करने के लिए स्वस्थ और मजबूत जड़ों का चयन करें और इन्हें 15-20 सेमी के टुकड़ों में काट लें।
खस के पौधों की रोपाई मानसून के शुरुआत में, यानी जून-जुलाई के महीने में करना सबसे उपयुक्त होता है। पौधों को रोपने के लिए 10-15 सेमी गहरे गड्ढे खोदें और इनमें जड़ों को अच्छी तरह से स्थापित करें। पंक्तियों के बीच 1-1.5 मीटर और पौधों के बीच 50-60 सेमी की दूरी रखें।
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खस की फसल में सिंचाई
खस की फसल को अच्छी सिंचाई की आवश्यकता होती है, विशेषकर शुरुआती अवस्था में। पहले तीन महीने नियमित सिंचाई करें ताकि पौधे अच्छी तरह से विकसित हो सकें। इसके बाद, मौसम और मिट्टी की नमी के अनुसार सिंचाई करते रहें। पौधे बड़े होने के बाद सूखे के प्रति सहनशील होते हैं, इसलिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
अच्छे विकास के लिए ज़रूरी खाद व उर्वरक
खस की खेती में जैविक खाद और उर्वरकों का उपयोग अधिक फायदेमंद होता है। भूमि की तैयारी के समय 10-15 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद डालें। रोपण के बाद, 30-45 दिन के अंतराल पर 50-60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम फास्फोरस और 30-40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर डालें। इसके अलावा, समय-समय पर जैविक खाद का प्रयोग भी करते रहें।
निराई-गुड़ाई व कीट नियंत्रण
खस की फसल में निराई-गुड़ाई का कार्य आवश्यक होता है ताकि खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सके। शुरुआती तीन महीने निराई-गुड़ाई का कार्य नियमित रूप से करें। इसके बाद, हर दो महीने में एक बार निराई-गुड़ाई करें।
कीटों और रोगों का नियंत्रण भी महत्वपूर्ण है। खस की फसल पर सामान्यत: कीट और रोगों का आक्रमण कम होता है, लेकिन फिर भी समय-समय पर फसल की जांच करते रहें। जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना अधिक सुरक्षित और प्रभावी होता है।
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खस की कटाई
खस की फसल की कटाई 12-15 महीने बाद की जाती है। जब पौधे पूरी तरह से परिपक्व हो जाएं और जड़ों में आवश्यक तेल की मात्रा उत्पन्न हो, तब कटाई करें। कटाई के लिए पौधों को जमीन से निकालें और जड़ों को अच्छी तरह से साफ करें। जड़ों को धूप में अच्छी तरह से सुखाएं ताकि इनका नमी स्तर कम हो जाए और तेल निकालने के लिए उपयुक्त हों।
खस का तेल निकालने की विधि
खस जड़ों से तेल निकालने के लिए भाप आसवन विधि का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में जड़ों को एक विशेष उपकरण में रखकर भाप के माध्यम से तेल को निकाला जाता है। इसके बाद निकाले गए तेल को शुद्ध करके इसे बाजार में बेचा जाता है।
खस के तेल का उपयोग
बाज़ार में खस के तेल की अच्छी मांग होती है, क्योंकि इसका उपयोग कई उद्योगों में होता है। इसे सुगंधित उत्पादों, इत्र, साबुन, और औषधियों में इस्तेमाल किया जाता हैं। खस के तेल की मांग मुख्यतः घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बड़े पैमाने पर होती है।
खस की खेती से लाभ
खस की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी प्रक्रिया साबित हो सकती है। इसमें निवेश की गई राशि की तुलना में अच्छे लाभ की संभावना होती है। इसके अलावा, खस की खेती पर्यावरण के अनुकूल होती है। इसके पौधे मिट्टी कटाव को रोकने में सहायक होते हैं, जिससे जल संरक्षण होता है।
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FAQ
खस की खेती के लिए गहरी, उपजाऊ, और अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
खस की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मानसून का गर्म और आर्द्र जलवायु वाला माना जाता है।
खस की खेती में पेस्टिसाइड का उपयोग कम करने के लिए जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे नीम का तेल और नीम के पत्ते आदि।
खस का तेल आसवन विधि का उपयोग करके निकाला जाता है। निकाले गए तेल को शुद्ध किया जाता है और इसे सुगंधित उत्पादों, इत्र, साबुन, और औषधियों में उपयोग किया जाता है।
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