प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!
भारत में शलजम की खेती लगभग सभी क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती ऐसी जगह करनी चाहिए, जहां खेत की मिट्टी बलुई और रेतीली हो। अगर आपके खेत की मिट्टी चिकनी और कड़क होगी, तो शलजम की फसल अच्छी नहीं होगी।
क्योंकि ये एक जड़ वाली फसल है तो इसके लिए मिट्टी का नरम और रेतीला होना बहुत आवश्यक है। शलजम को एंटी-ऑक्सीडेंट, मिनरल और फाइबर का बहुत अच्छा स्रोत माना जाता हैं। इसके सेवन से हृदय रोग, कैंसर, उच्च रक्तचाप और सूजन में फायदा होता है।
चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में शलजम की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं।
शलजम की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
शलगम को आमतौर पर सम-शीतोष्ण, उष्ण कटिबंधीय और उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह ठंडे मौसम की फसल है। शलजम की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती हैं। इसके लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्शियस तक उपयुक्त रहता हैं। बिहार, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और तामिलनाडु आदि भारत के मुख्य शलजम उत्पादक राज्य हैं।
शलजम की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
शलजम की खेती के लिए दोमट बलुई और रेतीली मिट्टी जिसमें जैविक तत्व अच्छी मात्रा में हो, उसमें फसल से अच्छी उपज की संभावना रहती है। ये जमीन के अंदर होने वाली फसल है, इसलिए भारी या कड़क मिट्टी में इसकी खेती करने से बचें। शलजम के पौधों के अच्छे विकास के लिए मिट्टी का पी.एच मान 5.5 से 6.8 होना चाहिए।
खेत की तैयारी
शलजम की खेती के लिए खेत को भुरभुरा बना लें। इसके लिए पहली गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। पहली जुताई करने के बाद खेत में हेक्टेयर की दर से 250 से 300 क्विंटल प्राकृतिक गोबर की सड़ी खाद या जैविक वर्मी कम्पोस्ट डालें।
इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर से 3 से 4 जुताई कर खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला लें। इसके बाद आप अपने खेत के हिसाब से निर्धारित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का इस्तेमाल करें। जब पौधों के 4 से 5 पत्ती निकल आए तब और फसल में फलों के विकास के समय भी आवश्यकता के अनुसार रासायनिक खाद का इस्तेमाल करें।
शलजम की खेती का सही समय एवं तरीका
शलजम की बुवाई मैदानी क्षेत्र में सितम्बर से अक्टूबर में की जाती है, और पहाड़ी इलाकों में जुलाई से अक्टूबर में की जाती है। इसकी बुवाई के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होते हैं। फसल से अच्छी पैदावार व गुणवता के लिए इसके बीजों की बुवाई खेत में तैयार पंक्ति में ही करें। पंक्ति के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी रखें, और हर बीज के बीच 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
गहराई की बात करें तो बुवाई के समय बीजों को 2 से 3 सेटीमीटर की गहराई में लगाएं। इन बीजों को खेत में लगाने से पहले 3 ग्राम बाविस्टिन या कैप्टान के घोल से प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लें। बीजों को बिना उपचारित किए बोने से अंकुरण प्रभावित हो सकता है, और फसल में रोग लगने का खतरा भी रहता है।
उन्नत किस्में व फसल तैयार होने का समय
ग्रामिक पर शलजम के बीज की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जिन्हें आप इस लिंक पर क्लिक करके अभी ऑर्डर कर सकते हैं। आपको बता दें कि शलजम की फसल को तैयार होने में लगभग 45 से 60 दिन का समय लगता है, और उपज की बात करें तो उन्नत किस्मों के चुनाव से 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज ली जा सकती है।
शलजम की फसल की देखभाल
सिंचाई:
शलजम ज़मीन के अंदर वाली फसल है, और इसकी बुवाई मेड़ पर की जाती है, इसलिए इस फसल को हल्की सिंचाई की ज़ररूरत होती है। शलगम की फसल में पानी ज्यादा न होने पाए, बस इसकी मेड़ को सीलन मिल जाये उस हिसाब से ही सिंचाई करें। अगर आपने मेड़ बनाकर बिजाई नहीं की है, तो भी इसमें हल्का पानी ही दें।
शलजम को तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है। पहली सिंचाई बिजाई के बाद करें, यह अच्छे अंकुरण में मदद करती है। गर्मियों में 6 से 7 दिनों के अन्तराल में करें। सर्दियों में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। अनावश्यक सिंचाई ना करें, इससे जड़ों के खराब होने की संभावना रहती है।
खरपतवार नियंत्रण:
शलजम की बुवाई के 10 से 15 दिन बाद खेत की निराई-गुडाई करें, क्योंकि इसकी फसल में खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी होता है। शलजम की फसल 2 से 3 गुड़ाई में तैयार हो जाती हैं। अगर खेत में ज्यादा खरपतवार हैं एवं इसकी खेती बड़े स्तर पर की गई है, तो निराई- गुड़ाई के अलावा पेंडीमेथलिन 3 लीटर की मात्रा को 800 से 900 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
बीमारियां और रोकथाम:
शलजम में मुख्य रूप से जड़ गलन रोग का प्रकोप देखने को मिलता है। इस रोग से बचाव के लिए, बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। बिजाई के बाद 7 से 15 दिन बाद नए पौधों के आस-पास की मिट्टी में कैप्टान 200 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
कीट से बचाव:
शलजम की फसल पर कीट रोग सुंडी, बालदार कीड़ा, मुंगी, माहू और मक्खी के रूप में आक्रमण करते हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए खेत में 700 से 800 लीटर पानी में 1 लीटर मैलाथियान को डालकर उसका छिड़काव करें। इसके अलावा 1.5 लीटर एंडोसल्फान की मात्रा को भी उतने ही पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से उसका छिड़काव करें।
फसल की खुदाई:
शलजम की खुदाई, किस्म के आधार पर और मंडी के आकार के हिसाब से करें। और फसल की खुदाई समय पर करें। इसमें देरी होने के कारण फल में रेशे हो जाते हैं। फसल की खुदाई के बाद शलजम की फसल को पानी से धोया जाता है। फिर उन्हें टोकरी में भरकर मंडी में भेजा जाता है। इसके फलों को ठंडे और नमी वाली जगह पर स्टोर करके रखने पर ये लंबे समय तक ताज़े बने रहते हैं।
FAQs
शलजम की खेती में उचित मात्रा में सिंचाई, उर्वरक और पौधों की देखभाल के साथ- साथ उपयुक्त जलवायु की आवश्यकता होती है, अतः इसका ध्यान रखें।
शलजम की अधिकतर किस्में 45 से 60 दिन में तैयार हो जाती हैं। हालांकि ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपने किस किस्म का चुनाव किया है।
Post Views: 53