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Parali Burning: अब इन उपायों से ख़त्म होगी पराली प्रदूषण की समस्या!

Written by Gramik

धान की खेती अपने देश मे बड़े पैमाने पर होती होती है, धान की उपज के लिए अक्टूबर माह से ही कंबाईन मशीनें धान की कटाई के लिए खेतों में दौड़ा दी जाती है। धान की उपज तो अच्छी होती है मगर उसकी पराली खेतों में छूटती चली जाती है, जो पराली प्रदूषण की समस्या को जन्म देती हैं।

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे धान-गेहूं की फसल ज़्यादा बोई जाती है, धान के बाद गेहूं के बीज की बुवाई अच्छे से हो उसके लिए किसान खेत को पराली मुक्त करने के लिए सबसे आसान तरीका अपनाते हैं, जो है पराली जलाने (Parali burning) का तरीका जिस वजह से आस पास के कई इलाको मे प्रदूषण फैल जाता है।

सरकार द्वारा भी काफी चेतावनी और जुर्माने के  प्रावधान बनाये गए ,ताकि पराली जलने (Parali burning) का सॉल्यूसन मिल सके ,लेकिन सरकार को इससे कुछ ज्यादा फ़ायदा नहीं मिला। सरकार ने साल 2018 में फसल अवशेष प्रबंधन सीआरएम (CRM, Customer relationship management ) की योजना शुरू की गयी थी ,जसका उद्देश्य किसानों को फसल अवशेष जलाने से रोकना था।

जिसमें किसानों को कस्मट हायरिंग सेंटर्स (CHC) की स्थापना के माध्यम से उसी स्थान पर फसल प्रबंधन के लिए मशीनरी प्रदान की जाती है। 

आख़िर क्यों जलाते है पराली किसान?

उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा के अधिकतर  किसान धान की खेती के बाद गेहूं की खेती शुरू कर देते है। अक्टूबर के मध्य मे ही शुरुवात मे और देर से जो धान की किस्म पकने वाली होती है, उनकी नवंबर के पहले हफ़्ता मे ही कटाई शुरू कर देते है। 

पराली प्रदूषण की समस्या

अक्टूबर-नवंबर मे गेहूं, चना, मटर, ये सभी प्रकार की फसलें  खेतों मे बोई जाती हैं, जिससे किसानो  को गेहूं के साथ ही साथ  इन फसलों की बुआई के लिए अपने खेतो को खाली करना पड़ता है , क्योकि अच्छी उपज के लिए इन फसलों की बुआई नवंबर के अंतिम सप्तहा तक पूरी कर लेनी होती है।

रबी फसल गेहूं की बुआई के लिए खेत की तैयारी भी समय से करनी होती है।  इन दो महीनों में खेती के हिसाब से किसान पर सबसे काम का ज़्यादा बोझ आ जाता है। 

किसानों की मजबूरी क्या है?

गेहूं बोने के लिए किसानो को धान के कंबाइन से कटाई जल्दी करनी होती है , ताकि खेतों को जल्द खाली कर सके। अक्टूबर महीने से नवंबर के मध्य तक यानि कि 20 नवंबर तक दूसरी फसल बोने के बीच ज्यादा समय सीमा नहीं होती है।

सिर्फ़ 40 से 45 दिन तक का समय होता है। यही कारण है कि रबी फसल की तैयारी के लिए किसान बिना सोचे समझे जल्दबाजी में पराली को जला देते हैं, क्योकि उन्हें यही सबसे सही तरीका लगता है। 

सैटेलाइट से होती है निगरानी!

(ICAR) आईसीएआर के महानिदेशक (DG) की अध्यक्षता में बड़े लेवल की निगरानी समिति गठित की गई। (ICAR Satellite) आईसीएआर सैटेलाइट से स्ट्रॉ बर्नर की निगरानी करता है। जिसका काम खेत में धान की पराली और फसल अवशेष जलाने पर रोक लगाने के लिए है।

अगर कोई भी किसान अपने खेतों मे पराली जलाता है तो इस सैटेलाइट के माध्यम से ही राज्यों के इससे संबधित अधिकारी को इसकी सूचना पहुंच जाती है, और उस एरिया और खेत के मालिक पर कारवाही शुरू हो जाती है। 

सरकार से लेकर कृषि वैज्ञानिक तक कहते हैं कि, इन फसल अवशेषों को ना जलाएं, इस पर कई तरह के काम चल रहे है। इसमें सरकार के प्रयासों के साथ  किसानों और वैज्ञानिकों का प्रयास भी शामिल है।  

हार्वेस्टर मशीन में सुपर एस्ट्रा मशीन की होगी अनिवार्यता 

यह मशीन कंबाइन हार्वेस्टर से जुड़ी होती है, जो कंबाइन से काटी गई फसलों के बचे हुए अवशेषों को बारीक़ कर खेतों में बिखेर देती है। सरकार की तरफ से कंबाइन हार्वेस्टर मशीन में सुपर एस्ट्रा मशीन जोड़ा गया है, और इसको सरकार ने अनिवार्य भी कर दिया है।

जिसका मुख्य काम है कि, फसल के अवशेष को आसानी से मिट्टी के अंदर मिलाना, ताकि किसान पराली न जलायें और मिट्ठी अपनी गुणवत्ता को बरक़रार रखें।

इन सीटू पराली सिस्टम

कृषि विशेषज्ञ के अनुसार फसल अवशेष इन-सीटू प्रबंधन का मतलब फसल अवशेषों को खेत में ही छोड़ना और उसे प्राकृतिक रूप से विघटित होने देना, इन-सीटू प्रबंधन से मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता को बनाए रखने में मदद होती है इसके लिए नए कृषि यंत्रों की खोज हुई है। फसल अवशेषों को रोटाबेटर ओर मल्चर मशीन से मिट्टी में मिला देने से वह सड़कर अच्छी खाद बन जाती है। 

वही दूसरा तरीका बिना जुताई के खेत में रबी फसलों का बुवाई करना है, इसके लिए जीरो टिलेज मशीन हैप्पी सीडर, सुपर सीडर से बुवाई की जाती है, फसल के अवशेषों को मिट्टी की सतह पर छोड़ दिया जाता है।

फसल अवशेष धीरे-धीरे सड़कर खाद बन जाते हैं, इससे नमी को संरक्षित करने और मिट्टी के कटाव को कम करने में मदद मिलती है। जिससे फसल अवशेषों की समस्या से इसे बचा सकेंगे साथ ही जमीन को अच्छी खाद भी मिलेगी। 

एक्स-सीटू पराली सिस्टम 

दूसरा तरीका एक्स-सीटू यानी फसल के अवशेषो  को खेत से बाहर ले जाकर कम्पोस्ट खाद बनाना। इसके लिए (ICAR – Indian Agricultural Research Institute) आईएआरआई ने कम्पोस्ट की पांच विधिया बनायी हैं। उसके लिए पहले फसल के अवशेषों का ढेर इकठ्ठा कर लिया जाता है। इसी ढेर को ‘विंडो’ कहा जाता है।

तो किसान भाई ये सारे तरीक़े अपनाकर पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोक सकते हैं।

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