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सेब की खेती अब गर्म राज्यों मे भी हो सकती है, कभी सोचा नहीं था ना! लेकिन इस सोच को सच बनाया है एक छोटे से गांव के समझदार किसान ने। चलिए जानते हैं कि ये सब मुमकिन कैसे हुआ, आपको बताते हैं अपने आज के इस ब्लॉग मे।
पहाड़ी इलाके जैसे हिमाचल और जम्मू-कश्मीर जैसे बड़े राज्यों मे अब उनका ये एकाधिकार खत्म हो गया है कि, केवल वही सेब की खेती नहीं कर सकते बल्कि अब गर्म जलवायु मे भी खेती आराम से हो सकती है।
आपको बता दे कि, जिस काम को करने मे बड़े बड़े कृषि वैज्ञानिक लगे थे, उस काम को साकार कर दिखाया 66 साल के हरिमन शर्मा ने, जो बिलासपुर जिले की घुमरावी तहसील के पनियाला कोठी गांव के रहने वाले हैं, उन्होंने गर्म मौसम में सेब की किस्म तैयार कर दी। जो की किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है।
क्या आपको पता है कि हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी और ठंडे क्षेत्रों में सेब की खेती हमेशा से होती आयी है , लेकिन मैदानी और गर्म क्षेत्रों में इसकी कल्पना करना भी असंभव सा लगता रहा आज तक।
दरअसल यह सब संभव हुआ है, हरिमन-99 (HRMN-99) नाम की सेब की किस्म से, जिसे किसी कृषि वैज्ञानिक ने नहीं बल्कि गांव के ही कम पढ़े लिखें हरिमन शर्मा ने विकसित किया है। पूरे भारत में किसानो से इस किस्म के सेब की खेती करवाने का रुझान उनका उनको औरो से अलग बनता है। अब तक अनेक राज्यों में सेब की खेती करवाने के लिए इस वैराइटी के 17 लाख पौधे पहुचाये जा चुके हैं।
पौधे तैयार करने का अधिकार केवल हरिमन शर्मा के पास है!
इस किस्म के पौधे तैयार करने का पूरा अधिकार शर्मा को ही है, क्योकि हरिमन-99 किस्म प्रोटक्शन ऑफ प्लांट वैराइटीज एंड फार्मर्स राइट्स अथॉरिटी (PPV&FR) में रजिस्टर्ड है। हरिमन-99 ये एक लो चिलिंग सेब है, जो हरिमन शर्मा के द्वारा ही विकसित किया गया है।
जो 40 डिग्री से 46 डिग्री सेल्सियस में भी आराम से उगाया जा सकता है। इसका मतलब ये हुआ की इनके विकास की वजह से ही पहाड़ी इलाक़े ही नहीं अब गर्म भूमि वाली जगहों पर भी इसकी खेती सकती है। वही दूसरे देशों के किसान भी इस प्रजाति के पौधे की डिमांड करने लगे है।
भारत सरकार और वैज्ञानिक ने भी सराहा
केंद्र सरकार और वैज्ञानिक समुदाय ने उनकी सफलता को स्वीकार कर लिया.साल 2005 तक किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि सर्द पहाड़ियों पर उगने वाला सेब गर्म जगहों पर भी आराम से उगाया जा सकता है. हरिमन की शिक्षा भले ही काम रही हैं लेकिन उनका जज़्बा बहुत बड़ा है. वो लगातार ग्राफ्टिंग के काम में जुटे रहे और 1999 में उन्हें सफलता हासिल हो ही गयी।
एक यही कारण था, इस वैरायटी का नाम हरिमन-99 रखा गया है इस सेब की गुणवत्ता और रंग बिल्कुल पहाड़ी क्षेत्रों वाले सेब की तरह ही है। हरिमन-99 का पौधा 15-15 फुट की दूरी पर रोपा जाता है. इन पोधों के बीच में आप गेहूं, सब्जियां, मक्का और दलहन फसलें लगा कर अपनी आय में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं ।
जून की गर्म जलवायु मे होती है तैयार
वैसे तो परंपरागत क्षेत्र का सेब जुलाई से सितंबर तक तैयार होता है. लेकिन इस वैराइटी का सेब जून में तैयार हो जाता है, उस समय बाजार में सेब का फल बेहद कम मात्रा मे मिलता है. जिस वजह से हरिमन-99 की खेती करने वाले किसानों को अच्छा मुनाफ़ा मिलता है. किसानो के लिए क्राप डायवर्सिफिकेशन और इनकम बढ़ाने के लिए यह अच्छा स्रोत है.
देश- विदेश मे बढ़ती सेब की खेती की डिमांड
इंफाल (मणिपुर), अम्बिकापुर (छतीसगढ़), सीकर (राजस्थान), नासिक, सोलापुर अमरावती (महाराष्ट्र), सिलवासा (दादरा नगर हवेली), रांची (झारखंड), नवादा (बिहार), गुजरात, बेंगलुरु, चिकमंगलूर, बेलगाम (कर्नाटक), सिरसा, करनाल, हिसार, गुरुगाम (हरियाणा), होशियारपुर (पंजाब), पीलीभीत (उत्तर प्रदेश), हल्द्वानी व कोटबाग (उत्तराखण्ड), सिहोर, नरसिंहपुर, बालाघाट (मध्य प्रदेश), पश्चिम बंगाल, आंध प्रदेश, तेलंगाना, केरल, सिक्किम, त्रिपुरा और ओडिशा आदि में भी इसकी खेती हो रही है, इसके आलावा नेपाल, बांग्लादेश, जर्मनी और दक्षिणी अफ्रीका में भी इस किस्म के पौधों की बढ़ती मांग को देखते हुए वह भी ये पौधे भेजे गए है।
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