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अरहर दलहनी फसलों में एक प्रमुख फसल मानी जाती है। तमाम ज़रूरी पोषक तत्वों से भरपूर अरहर में प्रोटीन, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि पाए जाते हैं। भारत में दलहनी फसलों की खेती की बात करें तो चने के बाद अरहर की खेती सबसे ज्यादा होती है।
अरहर को ‘तुअर’ भी कहा जाता है। आपको बता दें कि भारत में विश्व की लगभग 85% अरहर उगाई जाती है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व गुजरात जैसे राज्यों में अरहर की खेती प्रमुखता से की जाती है। दलहनी फसलों की खेती का एक फायदा ये भी है कि ये मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि करता है।
तो चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में हम आपको अरहर की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।
अरहर की खेती के लिए उचित जलवायु
अरहर की फसल के आर्द्र व शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। सूखे वाले क्षेत्रों में इस फसल में सिंचाई का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इसके पौधों के विकास के लिए नम वातावरण व फसल के पकने के समय अच्छी धूप की जरूरत होती है। वहीं यदि फूल आने के समय पाला, बादल या बारिश अधिक हो इससे अरहर की खेती को नुकसान पहुँच सकता है।
अरहर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
अलग अलग क्षेत्रों में अरहर को कई तरह की मिट्टी में उगाया जाता है। उत्तर भारत में अरहर की खेती मटीयार दोमट मिट्टी व रेतीली दोमट मिट्टी में की जाती है। फसल से अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकास वाली भूमि उपयुक्त होती है, इसके PH. मान की बात करें तो ये 7.0-8.5 के बीच होना चाहिए। ध्यान रहे कि खेती करने से पहले दो-तीन बार खेत की गहरी जुताई करके इसे समतल बना लें।
अरहर की खेती का सही समय
अरहर की बुआई बारिश की शुरुवात होने से पहले की जाती है। इस तरह किसान साथी जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के पहले सप्ताह तक अरहर की खेती कर सकते हैं। जल्दी पकने वाली किस्मों की बुआई जून के पहले सप्ताह में करनी चाहिए और मध्यम तथा देर से पकने वाली किस्मों की बुवाई जून से जुलाई के बीच में करना चाहिए।
अरहर की खेती के लिए खेत की तैयारी
अब अरहर की खेती के लिए खेत की तैयारी की बात करें तो इसके लिये सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें। इसके बाद खेत की मिट्टी को बारीक करके उसे समतल बना लें। खेत में जल-जमाव न होने दें, वरना फसल को बड़ा नुकसान हो सकता है। खेत में दीमक व अन्य कीटों को नष्ट करने के लिये अंतिम जुताई के समय आप कृषि विशेषज्ञ द्वारा सुझाई गई दवा का प्रयोग कर सकते हैं।
अरहर की प्रमुख किस्में
अरहर की किस्मों की बात करें तो इसमें शीघ्र पकने वाली किस्में, मध्यम समय में पकने वाली किस्में, देर से पकने वाली किस्में, हाईब्रिड किस्में और उकटा प्रतिरोधी किस्में आदि प्रमुख हैं। ग्रामिक पर अरहर की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, आप इन्हें घर बैठे ऑर्डर कर सकते हैं।
इसके साथ ही किसान साथी एक बात का और ध्यान रखें कि अरहर में बुआई से पहले प्रति किलो बीज को दो ग्राम थीरम या एक ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लें। इससे फसल में रोग लगने की संभावना कम होती है।
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
अरहर की फसल में सिंचाई की बात करें तो बुआई से 30 दिन बाद फूल आते समय, बुआई से 70 दिन बाद फली बनते समय और बुआई से 110 दिन बाद फसल की सिंचाई करें। अरहर की फसल से अच्छी उपज के लिए खेत में उचित जल निकासी का प्रबंध होना चाहिए।
इसलिए जो क्षेत्र निचले हैं व जहां जल निकास की समस्या हो, वहाँ अरहर की बुआई मेड़ों पर करें। इससे जलभराव होने पर भी अरहर की जड़ों में पर्याप्त वायु संचार होता रहता है। लम्बे समय तक बारिश न होने पर और दाना बनते समय फसल में सिंचाई करते रहें।
इन बातों का रखें ध्यान
अरहर की खेती के लिए गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करें। वहीँ एक ही खेत में लगातार कई साल तक अरहर की बुवाई न करें, बल्कि फसल चक अपनाएं। फसल में रासायनिक खाद का प्रयोग अधिक न करें।
इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि अरहर में अन्तरवर्तीय फसलें जैसे- ज्वार, मक्का, सोयाबीन या मूंगफली आदि भी उगाएँ। साथ ही फसल में लगने वाले कीटों व रोगों का समय रहते उपचार करें।
ग्रामिक से अपनी फसल के लिए बेहद किफायती मूल्य में कीटनाशी व खर-पतवारनाशी घर बैठे ऑर्डर करें।
अरहर खरीफ की फसल है।
अरहर को तुअर डाल के नाम से भी जाना जाता है।
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