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भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। हमारे देश में दलहन की खेती 232 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है, जिसमें अरहर एक प्रमुख फसल है, जो कई प्रकार के हानिकारक कीटों और रोगों से प्रभावित होती है, जिससे उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है। खरीफ़ दलहनी अरहर फसलों में लगने वाले कीट और रोग की पहचान और रोकथाम के लिए एकीकृत प्रबंधन अपनाना बेहद ज़रूरी है। चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में इसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं।
लीफ फोल्डर कीट का नियंत्रण
अरहर में लीफ फोल्डर की सुंडी प्रमुख कीटों में से एक है। इस कीट का पतंगा छोटा और गहरे भूरे रंग का होता है। इसकी सुंडी छोटी हल्के पीले रंग की होती है। यह कीट जुलाई से अगस्त में सर्वाधिक सक्रिय रहता है। पौधे की निचली सतह की पत्ती पर इसका प्रभाव अधिक होता है। इसकी सुंडी पत्तियों को मोड़कर एक लूप जैसा बना लेती है और उसी को खाती रहती है।
इससे पौधे की वृद्धि रूक जाती है और उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार इसके नियंत्रण के लिए किसान नीम के तेल 1500 पीपीएम नीम फार्मुलेशन और पांच प्रतिशत नीम के अर्क का उपयोग कर सकते हैं। 5 मिलीलीटर नीम का तेल प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
नीम का अर्क बनाने के लिए 25 किलो नीम के पत्तों को अच्छी तरह पीसकर 50 लीटर पानी में तब तक उबालें, जब तक कि एक लीटर में 20-25 प्रतिशत पानी न रह जाए। बाद में पानी को छान लें। रासायनिक नियंत्रण के लिए क्यूनलफास 25 प्रतिशत ईसी 600 मिलीलीटर दवा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
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फली भेदक कीट का नियंत्रण
अरहर में सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले कीटों में फली भेदक कीट पॉड बोरर है। इसके मादा कीट अरहर के फूल-फलियों में अंडे देती है। सुंडी अंडे से निकलकर फलियों के ऊपरी भाग को खुरचकर खाने लगती हैं और विकसित हो रहे दानों को खा जाती हैं।
इसके व्यस्क कीट हल्के भूरे रंग के होते हैं। वहीं जब अरहर की फसल 60 से 65 दिन यानी सितंबर-अक्टूबर में हो, तब फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करना चाहिए। एक से दूसरे फेरोमोन ट्रैप की दूरी 30 मीटर होनी चाहिए और ट्रैप को फसल से एक से दो फीट ऊंचाई पर लगाना चाहिए। 14 दिन के अंतराल पर ल्योर बदलते रहना चाहिए और उस पर फंसे नर व्यस्क कीट को नष्ट कर देना चाहिए।
जैविक नियंत्रण के लिए नीम बीज पाउडर के 5% घोल को 1% साबुन के घोल के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। अगर कीट का नियंत्रण सही तरीके से नहीं हो पा रहा हो तो रासायनिक कीटनाशी जैसे- इण्डाक्साकार्व 15.8% ई.सी. की एक मिलीलीटर दवा का प्रति लीटर पानी या स्पाइनोसैड 45% एस.पी. की 1 मिलीलीटर दवा का 2 लीटर पानी की दर से 50% फूल आने तथा 50% फली आने पर छिड़काव करना चाहिए।
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फल मक्खी कीट का नियंत्रण
अरहर की फलियों पर मक्खी का प्रकोप अक्टूबर से अप्रैल के मध्य अत्यधिक रहता है। यह कीट फलियों के अंदर ही अपनी जीवनकाल की अवस्थाओं से गुजरता है और विकसित दानों को खाकर क्षति पहुंचाता है। इस कीट से 50% से लेकर 80% तक अरहर की उपज को नुकसान पहुंचता है।
इसके अंडे दिखाई देने पर नीम के तेल का 2% घोल का छिड़काव करना चाहिए। नियंत्रण के लिए रासायनिक डाइमेथोएट 30% ईसी 1237 मिली दवा को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
अरहर में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके उपचार
अरहर की खेती में कई प्रकार के रोग भी लगते हैं, जो उत्पादन को प्रभावित करते हैं। इनमें से फ्यूजेरियम विल्ट प्रमुख है, जो पौधे के मुरझाने और मर जाने का कारण बनता है। लक्षणों में पत्तियों का पीला पड़ना, मुरझाना, तने का सूखना और जड़ों का मलिनकिरण शामिल है। फ्यूजेरियम विल्ट के नियंत्रण के लिए गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए और बीजों को उपचारित करके बुआई करनी चाहिए।
फाइटोफ्थोरा ब्लाइट का नियंत्रण
फाइटोफ्थोरा ब्लाइट भी एक प्रमुख रोग है, जो पौधे की जड़ सड़ने, तने पर घाव, पत्तियों का मुरझाना और जड़ों का सड़ना का कारण बनता है। इसके नियंत्रण के लिए मिट्टी का प्रबंधन और जल निकासी को सुधारना चाहिए और रोग रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।
बाँझपन मोज़ेक रोग भी अरहर में होता है, जिससे अवरुद्ध विकास और कम उपज होती है। लक्षणों में पत्तियों का पीलापन, मुड़ना और मोज़ेक पैटर्न की उपस्थिति शामिल है। इसके नियंत्रण के लिए रोगमुक्त बीजों का उपयोग और फसल चक्र अपनाना चाहिए।
अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट का नियंत्रण
अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट रोग पत्ती के धब्बे और पौधे के झड़ने का कारण बनता है। लक्षणों में पत्तियों पर गोलाकार या अनियमित भूरे रंग के धब्बे शामिल हैं। इसके नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम जैसे फंगस का छिड़काव और रोग रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।
पाउडर फफूंदी रोग के कारण पत्तियों, तनों और फलियों पर सफेद पाउडर जैसा विकास होता है। इसके नियंत्रण के लिए सल्फर पाउडर का छिड़काव और रोग रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।
अरहर की फसल की सामान्य देख-भाल
अरहर की फसल में सभी जरूरी उपायों में गर्मी में गहरी जुताई, संतुलित खाद और उर्वरक का उपयोग, बीज उपचार, फसल चक्र और नीम के तेल और अर्क का नियमित उपयोग शामिल है। अरहर की खेती में कीट और रोग नियंत्रण एक महत्वपूर्ण पहलू है जो उत्पादन क्षमता को सीधे प्रभावित करता है। एकीकृत प्रबंधन और उचित नियंत्रण उपायों को अपनाकर किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
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FAQs
अरहर की खेती के लिए दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
अरहर की खेती के लिए खरीफ का मौसम सबसे अच्छा होता है। जून से जुलाई के बीच बुवाई का समय आदर्श होता है।
अरहर की खेती के लिए बीज दर 15-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है। बीज को बुवाई से पहले फफूंदनाशक (कार्बेन्डाजिम) से उपचारित करें।
अरहर की खेती में 2-3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद, दूसरी फूल आने के समय और तीसरी फलियों के विकास के समय करें।
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