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अलसी की खेती (Flax Farming) से सम्बंधित जानकारी

Written by Gramik

अलसी की खेती को व्यापारिक रूप से उगाया जाता है, इसकी खेती रेशेदार फसल के रूप में की जाती है | अलसी के बीजो में तेल की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है | इसके तेल को वार्निश, स्नेहक, पेंट्स को बनाने के अलावा प्रिंटिंग प्रेस के लिए स्याही और इंक पैड को तैयार करने में किया जाता है | भारत के मध्य प्रदेश राज्य के बुंदेलखंड जिले में अलसी के तेल को खाने के साथ साबुन बनाने और दीपक जलाने में भी करते है | शरीर पर निकले फोड़ो फुंसी को ठीक करने के लिए इसकी पुल्टिस बनाकर उस पर लगाने से आराम मिल जाता है |

अलसी के तनो में उच्च गुणवत्ता वाले रेशे होते है, जिनसे लिनेन को भी तैयार किया जाता है | तेल निकालने से प्राप्त होने वाली खली को दुग्ध देने वाले पशुओ को आहार के रूप में दिया जाता है | इसकी खली में उच्च गुणवत्ता वाले पोषक तत्व पाए जाते है, जिस वजह से इसे खाद के रूप में भी इस्तेमाल करते है | इसके तेल में एक विशेष प्रकार का गुण होता है, जिस वजह से यह हवा के संपर्क में आते ही सूखकर सख्त हो जाता है | भारत अलसी उत्पादन के मामले विश्व में चौथे नंबर पर आता है |

मूल जानकारी

अलसी रबी के मौसम में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। अलसी की फसल भारत में व्यापक स्तर पर बीजों की प्राप्ति के लिए की जाती है, जिनमें से तेल निकाला जाता है| इसके बीजों में तेल की मात्रा 33-47% होती हैं। अलसी का उपयोग मुख्यतः तेल व रेशे के लिए किया जाता है। इसका तेल औधोगिक उत्पाद बनाने, खाने के लिए व औषधि के रुप मे काम में लिया जाता है। भारत में प्रमुख फ्लैक्स सीड (अलसी) उत्पादक राज्य:

  1.  मध्य प्रदेश 
  2. उत्तर प्रदेश
  3. बिहार
  4. छत्तीसगढ़
  5. महाराष्ट्र
  6. झारखंड
  7. उड़ीसा
  8. असम
  9. पश्चिम बंगाल
  10. कर्नाटक
  11. नागालैंड
  12. आंध्र प्रदेश
  13. राजस्थान
  14. हिमाचल प्रदेश
  15. तेलंगाना

भारत में स्थानीय नाम (अलसी) बीज: अलसी (हिंदी, पंजाबी, गुजराती), जावस / अतासी (मराठी), तिशी (बंगाली), अगासी (कन्नड़), अविसेलु (तेलुगु), पेसि (उड़िया), अली विताई (तमिल), चेरुचना विथु (मलयालम)।

भारत में अलसी बीज की उन्नत किस्में भारत में अलसी बीज की किस्में: शीला, गौरव, शेखर, पद्मिनी, जेएलएस -9, एनएल -97, शिखा, रश्मि, जीवन, मीरा और पार्वती।

बुवाई का समय : यह सर्दियों / ठंड के मौसम की फसल है असिंचित क्षेत्रों में अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तथा सिंचित क्षेत्रों में नवम्बर के प्रथम सप्ताह में बुवाई करनी चाहिए उतेरा खेती के लिए धान कटने के 7 दिन पूर्व बुवाई की जानी चाहिए, जल्दी बोनी करने पर अलसी की फसल को फल मक्खी एवं पाउडरी मिल्ड्यू आदि से बचाया जा सकता है।

दुरी

कतार से कतार के बीच की दूरी 30 सेंमी तथा पौधे की दूरी 5 से 7 सेंमी रखनी चाहिए।

बीज की गहराई

बीज को भूमि में 3 से 4 सेंमी की गहराई पर बोना चाहिए।

बुवाई का तरीका

अलसी की बुवाई आम तौर पर बुरकाव या मशीन के द्वारा पंक्तियों में की जाती है|

बीज की मात्रा

बीज की मात्रा लगभग 45 से 50 किलोग्राम / हेक्टेयर है।

बीज का उपचार

बुवाई से पूर्व बीज को मेंकोजेब या बाविस्टिन या थीरम 2 ग्राम के साथ प्रति किलो बीजों का उपचार किया जा सकता है| तथा ट्राइकोडरमा विरीडी की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज को उपचारित कर बुवाई करनी चाहिये।

भूमि की तैयारी और मृदा स्वास्थ्य

जलवायु

मूल रूप से, अलसी बीज फसल एक ठंडा मौसम / सर्दियों की फसल है। अलसी के उचित अंकुरण हेतु 25 से 30 सेल्सियस तापमान तथा बीज बनाते समय तापमान 15 से 20 सेल्सियस होना चाहिए।

भूमि

अलसी की फसल के उत्तर और दक्षिण प्रायद्वीपीय क्षेत्र के जलोढ़ मिट्टी में अच्छी तरह से होती है। अलसी की खेती के लिये काली भारी एवं दामोट (मटियार) मिट्टी उपयुक्त रहती हैं। भूमि में उचित जल निकास होना चाहिए।

खेत की तैयारी

अलसी की खेती के लिए बुवाई से पूर्व हल या कल्टीवेटर से खेत की 2-3 बार अच्छी गहरी जुताई करनी चाहिए क्योकि अलसी की जड़ें मिट्टी में गहराई तक प्रवेश करती हैं। जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए, जिससे भूमि में नमी बनी रहे। खेत भुरभुरा, समतल और खरपतवार रहित होना चाहिए।

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