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कई फसलों में बीज जनित रोग पाए जाते हैं, मतलब कि बीज के साथ ही रोग संक्रमण के कारक मौजूद होते हैं। इन रोगों के विकास के लिए अनुकूल स्थिति मिलती है, रोग तेज़ी से बढ़ने लगता है। इन रोगों की जानकारी होना किसान साथियों के लिए बहुत आवश्यक है। यदि इन रोगों की जानकारी होगी, और बचाव के लिए उचित उपाय किए जाएंगे, तो फसलों में होने वाले व्यापक नुकसान से बचा जा सकता है।
फसलों में होने वाले बीज जनित रोग व उनसे बचाव
धान की फसल में होने वाले बीज जनित रोग
धान की फसल में बकानी एवं जड़गलन रोग बीज जनित रोग होता है। बकानी रोग में कुछ पौधे सामान्य से ज्यादा लम्बे हो जाते हैं और धीरे धीरे करके जल जाते हैं। यह रोग फसल में बहुत तेजी से फैलता है। इस रोग से बचाव के लिए शुरुआत में ही संक्रमित पौधों को उखाड़ देना चाहिए।
उखाड़ते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि गीली मिट्टी खेत में ज्यादा न फैले, वरना मिट्टी के साथ छिटक कर रोगाणु ज्यादा फैल सकते हैं।
उपचार
रोग रहित बीज का प्रयोग करें। दो प्रतिशत नमक का घोल बनाकर उनमें बीज को भिगोएं। पानी में ऊपर आए बीज को फेंक देंं। बाकी बचे बीज को कई बार साफ पानी से साफ करें ताकि उसमें नमक का अंश न रहे।
बृद्धि कारक नाइट्रोजन आदि उर्वरकों का रोग संक्रमण के दौरान बिल्कुल भी प्रयोग न करें। बीज को उपचारित करके ही बोएं। रोग के लक्षण दिखने पर बालू में मिलाकर खेत में फफूंदनाशी का छिड़काव करें।
गेहूं की फसल में होने वाला कंडुआ रोग
गेहूं की फसल में लगने वाला कंडुआ रोग बीज जनित ही होता है। ज्यादातर किसान बीज को उपचारित करके नहीं बेचते, और बीज विक्रेता भी अक्सर बीज में दवा नहीं मिलाते, इसलिए इसमें बीज जनित रोग होने की संभावना ज़्यादा होती है। गेहूं का कंडुआ रोग बीज के भ्रूण में होता है।
वह पौधे के विकास के साथ ही बढ़ता रहता है। जब फसल में बाली आने वाली होती है तब इसका प्रभाव बढ़ जाता है। एक संक्रमित बाली में लाखों रोगाणु हो सकते हैं, और हवा चलने पर ये रोगाणु एक बाली से उड़कर दूसरी स्वस्थ बालियों में चले जाते हैं, इससे फसल का काफी हिस्सा प्रभावित हो जाता है।
बचाव
फसल को इस रोग से बचाने के लिए बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम थायरम या बाबस्टीन आदि किसी फफूंदनाशक दवा से प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकार इसे उपचारित करना चाहिए। इसके बाद ही बीज को खेत में बोना चाहिए।
सरसों कुल की फसलों के रोग
बंद गोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, सरसों एवं मूली फसल में गलन रोग काफी नुकसान पहुंचाता है। यह रोग जीवाणु जनित होता है। रोग का प्रसार पत्तियों के किनारों पर महीन धब्बों के बनने से शुरू होता है। बाद में पत्तियों की शिराएं भूरी होकर काली पड़ जाती हैं, और धीरे धीरे पत्तियां पीली पड़कर झड़ने लगती हैं।
बचाव
रोग रहित बीज का प्रयोग करेंं। बीज को 50 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी में आधा घण्टे तक रखेंं। संक्रमित पौधों को उखाड़ दें। रोग से छुटकारा पाने के लिए बीज का रासायनिक उपचार करें। इसके लिए एग्रीमाइसिन 100 की एक प्रतिशत अथवा स्टेप्टोसाइक्लिन एक प्रतिशत का उपयोग करें।
खडी फसल पर स्टेप्टोसाइक्लिन 18 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा कॉपरआक्सीक्लोराइड का तीन प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए।
प्याज में होने वाला बैंगनी धब्बा रोग
प्याज का बैंगनी धब्बा रोग रोग प्याज लहसुन की खेती वाले इलाकों में बड़े पैमाने पर होता है। यह रोग पहले सफेद धंसे गड्ढों के रूप में दिखाई देता है। धीरे धीरे इनका आकार बढ़ता है और बाद में यह धारी का आकार ले लेते हैं। धीरे धीरे इनका रंग भूरा हेाता है और पौधा इसी स्थान से गलना आरंभ हो जाता है। इसके बाद सूखने लगता है।
बचाव
बचाव के लिए बीज का थीरम से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करने के बाद बोना चाहिए। फसल पर कार्बेन्डाजिम एवं मेन्कोजेब के मिश्रण का छिड़काब करना चाहिए।
रोग का लक्षण दिखाई देने पर टोबुकोनाजोल 50 प्रतिशत एवं ट्राइफ्लोक्सीस्ट्राबिन 25 प्रतिशत का 80 से 100 ग्राम मात्रा में 200 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
प्याज़ की खेती में ऐसे करें रोग/ कीट नियंत्रण किसान साथी हमारे इस ब्लॉग को पढ़े – प्याज़ की खेती
बाजरा की फसल में लगने वाला अर्गट रोग
बाजरा की फसल में भी अर्गट रोग लगता है। इसके अलावा हरी बाली रोग भी लगता है। इस तरह के रोगों का पता शुरुआत में नहीं चलता। हालांकि बाली बनने की अवस्था में जब इस रोग का पता चले तो शुरूआत में ही इसका उपचार कर लेना चाहिए। उपचार न करने पर और फसल प्रभावित होने पर बालियों में दाने ही नहीं बनते, जिससे किसान साथियों को नुकसान उठाना पड़ता है।
बचाव
इससे बचाव के लिए प्रतिरोधी किस्मों की बिजाई करें। बीज को प्रभावी दवाओं से उपचारित करके बोएंं।
FAQs
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बीज जनित बीमारी से फसल को कैसे बचाएं?
बीज जनित बीमारी जैसे उकटा, जड़गलन आदि के उपचार के लिए जैविक फफूंदनाशी जैसे कार्बेन्डाजिम या स्यूडोमोनास से 5 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
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बीज उपचार का अर्थ क्या है?
बीज उपचार का सामान्य अर्थ है कि उचित मात्रा में फफूंदीनाशी रसायनों, कीटनाशी रसायनों, जीवाणुनाशी एवं अन्य परजीवीनाशी रसायनों आदि को बीज के साथ मिलाकर होने वाले रोगों से फसल का बचाव किया जा सके।
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बीज उपचार से क्या होता है?
बीज उपचार से बीज में मौजूद आन्तरिक या वाह्य रूप से जुड़े रोगजनक ( फफूंद, जीवाणु, विषाणु व सूत्रकृमि) एवं कीट नष्ट हो जाते है, जिससे बीजों का स्वस्थ अंकुरण एवं अंकुरित बीजों का स्वस्थ विकास होता है।
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