उत्तर प्रदेश में खरीफ में मुख्य रूप से धान, मक्का, ज्वार और बाजरा, अरहर,उर्द, मूंग, मूंगफली, गन्ना आदि फसलें बोई जाती है। इसमें रबी की अपेक्षा उर्वरकों का कम प्रयोग कीट व बीमारियों के अधिक प्रकोप एवं वर्षा अनियमित होने से इनके उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
खरीफ की फसलों से अधिक उत्पादन लेने के लिए अच्छे बीज, संतुलित उर्वरक, जल निकास का उचित प्रबन्ध, सिंचाई प्रबन्ध, फसल सुरक्षा आदि पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है, जिसके लिए निम्न सुझावों को ध्यान में रखते हुए यदि खेती की जाए तो अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।
सघन कृषि विधियां अपनाने हेतु सामान्य सुझाव
- प्रत्येक फसल की बुवाई से पहले उसके लिए भूमि को उसकी आवश्यकतानुसार तैयार करना आवश्यक होता है।
- जिन क्षेत्रों में दीमक के प्रकोप की सम्भावना रहती हो वहाँ भूमि उपचार करना न भूलें।
- धान-गेहूँ अथवा मक्का-गेहूँ फसल चक्रों में या अन्य किसी फसल, जिसमें जिंक के अभाव के लक्षण दिखाई पड़ते हो, उसमें बुवाई से पहले जिन्क सल्फेट का प्रयोग अवश्य करें।
- विभिन्न फसलों की संस्तुत प्रजातियों की ही बुवाई करें, जिससे प्रति इकाई क्षेत्र अधिक पैदावार प्राप्त हो सकें।
- समय से बुवाई हेतु बीज की मात्रा दी गई दर से प्रयोग करें यदि पहले या बाद में बुवाई करनी हो तो बीज की मात्रा सवाई कर देनी चाहिए।
- बीज बोने से पहले बीज को शोधित करना न भूले ।
- डी.ए.पी., एन.पी.के. 12:32:16 की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय कूड़ों में ड्रिल या पोरा द्वारा प्रयोग करने से अधिक लाभ प्राप्त होगा। धान के खेत में रोपाई से पहले लेवा लगाते समय एन.पी. के 12:32:16 की कुल मात्रा पानी भरे खेत में डालकर पाटा लगाकर रोपाई करें।
- यूरिया की कुल दी जाने वाली मात्रा को आवश्यकतानुसार पहले और दूसरे पानी के बाद खड़ी फसल में बाल बनने से पूर्व छिड़ककर प्रयोग करें।
- यूरिया खड़ी फसल में सायंकाल ही प्रयोग करना अधिक उपयोगी है।
- यदि धान के खेत में पानी भरा हो तो एक भाग यूरिया को पांच भाग नम मिट्टी में मिलाकर 48 घण्टे के लिए छाया में रख दें इसके बाद इसे पानी भरे खेत में प्रयोग कर यूरिया का भरपूर लाभ उठायें।
- बरसात में प्रायः फसलों को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है, लेकिन कभी-कभी वर्षों के अभाव में फसल की पत्तियों सिकुड़ने लगती हैं ऐसी स्थिति में सिंचाई अवश्य करना चाहिए।
- भूमि में नमी के संरक्षण हेतु उसकी खुरपी द्वारा निराई कराना आवश्यक है. इससे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं, जिससे फसल को दी गई उर्वरक की पूर्ण मात्रा का लाभ होता है व उसे फैलने के लिए पर्याप्त स्थान प्राप्त हो जाता है।
- किसी भी दशा में फसलों में रोग व कीट् लगने पर उनकी रोकथाम कीटनाशक व फफूंदी नाशक दवाओं का प्रयोग करना न भूलें।
- प्रत्येक फसल की सही समय पर कटाई अवश्य कर लेनी चाहिए, ताकि अगली फसल की बुवाई में देरी न हो। फसल की पहले या देर से कटाई करने पर पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- क्षारीय भूमि में मृदा सुधारक प्रयोग करने के बाद धान की फसल लेना लाभदायक होता है। ऐसी भूमि में दलहनी फसलें नहीं बोनी चाहिए।
- दलहनी फसलों को उनके राइजोबियम कल्चर से उपचारित करके बोने से अधिक लाभ मिलता है।
- अरहर की दो पंक्तियों की बीच, मूंग अथवा उर्द की दो पंक्तियां बोकर भी अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
- गन्ने की बसन्त कालीन फसल में दो पंक्तियों की बीच, मूंग अथवा उर्द की दो पंक्तिया बोकर भी अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
- 15 जुलाई के बाद केवल सांकेत-4 ऐसी प्रजाति है जो 31 जुलाई तक रोपाई करने पर भी अच्छी पैदावार देती है। देर से रोपाई करने पर 3 पौधे एक स्थान पर लगाए जायें तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 से.मी. कर दी जाये।
- ऊसर क्षेत्रों में धान की रोपाई के लिए पौध की उम्र 35 दिन हो तथा पौधे से पौधे का फासला भी 15 से.मी. रखे तथा एक स्थान पर 4 पौध लगाई जाये। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 से.मी. रखी जाय तथा पौध उत्तम स्थान पर तैयार की जाये।
- अगेती धान की रोपाई अधिक से अधिक क्षेत्र में की जाये।
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