भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी का खपतकार है और गन्ने के उत्पादन में भारत ब्राज़ील के बाद दूसरे स्थान पर आता है। भारत में लगभग 2.8 लाख किसान 4.4 लाख एकड़ क्षेत्र में गन्ने की खेती करते हैं। 11 करोड़ से ज़्यादा लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चीनी उद्योग पर निर्भर हैं। इसलिए यह सभी किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल बनाता है। इसलिए, आइए गन्ने की खेती के बारे में विस्तार से विचार करें। खेत तैयार करने के लिए दो तरीके हैं जो नीचे दिए गए हैं।
गन्ना एक सदाबहार फसल है और बांस की जाति की फसल है। यह भारत की प्रमुख फसल है जो कि शक्कर, गुड़ और मिश्री बनाने के काम आती है। गन्ने की फसल का दो तिहाई हिस्सा शक्कर और गुड बनाने और एक तिहाई हिस्सा मिश्री बनाने के काम आता है। गन्ना शराब का सिरका बनाने के लिए कच्चा माल प्रदान करता है। गन्ना सबसे ज्यादा ब्राजील और बाद में भारत, चीन, थाईलैंड, पाक्स्तिान और मैक्सीको में उगाया जाता है। शक्कर बनाने के लिए भारत में सबसे ज्यादा हिस्सा महाराष्ट्र का जो कि 34 प्रतिशत है और दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश आता है।
गन्ने की खेती के लिए ज़रूरी शर्तें :- गन्ना एक सदाबहार वाली फसल है जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय वाले क्षेत्रों में विकसित हो सकती है जहाँ तापमान 20 डिग्री से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच में रहता है। इसके अलावा यह फसल उच्च स्तर की नमी के साथ बहुत बढ़िया प्रतिक्रिया करती है। इस फसल के सबसे बढ़िया विकास और उत्पादन के लिए वार्षिक 1500 मिलीलीटर से 2500 मिलीलीटर वर्षा की ज़रूरत होती है। हालाँकि आज-कल अनुकूल सिंचाई स्तिथियों के साथ गन्ना उगाना संभव है।
ज़मीन की तैयारी :- गन्ने की खेती के लिए गहरी जोताई की ज़रूरत होती है और सुहागा के साथ खेत को तैयार किया जाता है, जिन किसानों के पास ट्रेक्टर नहीं हैं वह लकड़ी के आधारित सरकारी टीन का प्रयोग कर सकते हैं। गन्ना आम तौर पर नमी वाले क्षेत्रों में लगाया जाता है क्योंकि पौधे को नमी की ज़रूरत होती है और कतार की चौड़ाई 3-5 फ़ीट होनी चाहिए।
जुताई :- यह खेत तैयार करने का परंपरागत ढंग है। हल की मदद के साथ मिट्टी पलटायें और तवियों की सहायता के साथ 50 से 60 सेंटीमीटर गहरी जोताई 2-4 बार करें।
जलवायु :- गन्ने की खेती गर्म और नमी के साथ भरपूर जलवायु वाले स्थानों में लंबे समय तक की जा सकती है। गन्ने के विकास को 50 डिग्री से ज़्यादा और 20 डिग्री से कम तापमान प्रभावित करता है।
मिट्टी :- गन्ने की फसल दरमियानी भारी मिट्टी में बढ़िया विकास करती है। हालाँकि, हल्की मिट्टी में भी उगाई जा सकती है यदि सिंचाई की बढ़िया सुविधाएं मौजूद हो। यदि पानी के निकास की अच्छी व्यवस्था हो तो चिकनी मिट्टी पर भी गन्ने की बिजाई की जा सकती है।
अच्छे जल निकास वाली गहरी जमीन जिसमें पानी का स्तर 1.5-2 सैंमी. हो और पानी को बांध के रखने वाली ज़मीन गन्ने की फसल के लिए लाभदायक है। यह फसल लवण और खारेपन को सहन कर लेती है। यदि मिट्टी का पी एच 5 से कम हो तो जमीन में कली डालें और यदि पी एच 9.5 से ज्यादा हो तो जमीन में जिप्सम डालें ।
बिजाई :-
बिजाई का समय – पंजाब में गन्ने को बीजने का समय सितंबर से अक्तूबर और फरवरी से मार्च तक का होता है। गन्ना आमतौर पर पकने के लिए एक साल का समय लेता है।
फासला – उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पंक्तियों का फासला 60-120 सैं.मी. होना चाहिए।
बीज की गहराई – गन्ने को 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बोयें और इसे मिट्टी से ढक दें।
बिजाई का ढंग –
- बिजाई के लिए सुधरे ढंग जैसे कि गहरी खालियां, मेंड़ बनाकर,पंक्तियों में जोड़े बनाकर और गड्ढा खोदकर बिजाई करें।
- खालियां और मेंड़ बनाकर सूखी बिजाई – ट्रैक्टर वाली मेंड़ बनाने वाली मशीन की मदद से मेंड़ और खालियां बनाएं और इन मेड़ और खालियों में बिजाई करें। मेड़ में 90 सैं.मी. का फासला होना चाहिए। गन्ने की गुलियों को मिट्टी में दबाएं और हल्की सिंचाई करें।
- पंक्तियों के जोड़े बनाकर बिजाई – खेत में 150 सैं.मी. के फासले पर खालियां बनाएं और उनमें 30-60-90 सैं.मी. के फासले पर बिजाई करें। इस तरीके से मेड़ वाली बिजाई से अधिक पैदावार मिलती है।
- गड्ढा खोदकर बिजाई – गड्ढे खोदने वाली मशीन से 60 सैं.मी. व्यास के 30 सैं.मी. गहरे गड्ढे खोदें जिनमें 60 सैं.मी. का फासला हो। इससे गन्ना 2-3 बार उगाया जा सकता है और आम बिजाई से 20-25 प्रतिशत अधिक पैदावार आती है।
- एक आंख वाले गन्नों की बिजाई – सेहतमंद गुलियां चुनें और 75-90 सैं.मी. के अंतर पर खालियों में बिजाई करें। गुलियां एक आंख वाली होनी चाहिए। यदि गन्ने के ऊपरले भाग में छोटी डलियां चुनी गई हों तो बिजाई 6-9 सैं.मी. के अंतर पर करें। फसल के अच्छे उगने के लिए आंखों को ऊपर की ओर रखें और हल्की सिंचाई करें।
- बीज उपचार – गन्ने के बढ़िया विकास के लिए 10 से 11 महीने के बीजों का उपयोग करना चाहिए, यह अंकुरण और विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। बीज के उपचार के लिए 2.5% यूरिया, 2.5% KCI, 1% Hadron और 0.05% बाविस्टिन का इस्तेमाल किया जा सकता है। किसान उपरोक्त बताये गए रसायनों के प्रयोग के साथ बीजों का उपचार करने के बाद गुल्लियों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा बीज से पैदा होने वाली बिमारियों से बचाव के लिए गर्म पानी के साथ भी उपचार किया जा सकता है।
खरपतवार नियंत्रण :-
गन्ने में नदीनों के कारण 12-72 प्रतिशत पैदावार का नुकसान होता है। बिजाई के 60-120 दिनों तक नदीनों की रोकथाम बहुत जरूरी है। इसलिए 3-4 महीने की फसल में नदीनों की रोकथाम करें। नीचे लिखे तरीकों से नदीनों को रोका जा सकता है।
- हाथों से गोडाई करके:- गन्ना एक मेढ़ पर लगने वाली फसल है इसलिए नदीनों को गोडाई करके रोका जा सकता है इसके इलावा पानी लगाने के बाद 3-4 गोडाई जरूरी है।
- काश्तकारी ढंग:- हर वर्ष गन्ने की फसल लेने से नदीनों के कारण बहुत नुकसान होता है। इसकी रोकथाम के लिए चारे वाली फसलें और हरी खाद वाली फसलों के आधार वाला फसली चक्र गन्ने में नदीनों की रोकथाम करता है। इसके इलावा अंतरफसली जैसे कि मूंग, मांह और घास फूस की नमी से नदीनों का नुकसान कम होता हैं मूंग और मांह जैसी अंतर फसली अपनाने से किसान अपनी कमाई बढ़ा सकता है। घास फूस और धान की पराली की 10-15 सैं.मी. मोटी सतह जमीन का तापमान कम करके नदीनों को रोकती है और जमीन में नमी को संभालने में मदद करती है।
- रासायनिक तरीके:- सिमाज़ीन/एट्राज़ीन 600-800 ग्राम प्रति एकड़ या मैट्रीब्यूज़िन 800 ग्राम प्रति एकड़ या डाईयूरोन 1-1.2 किलोग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग बिजाई से तुरंत करनी चाहिए। इसके इलावा चौड़े पत्ते वाले नदीनों की रोकथाम के लिए 2, 4-डी का प्रयोग 250-300 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से करें ।
सिंचाई :-
गन्ने की सिंचाई भूमि (हल्की या भारी) और सिंचाई की सूविधा पर निर्भर करती है। गर्मी के महीने में गन्ने को पानी की जरूरत पड़ती है। गन्ने की पहली सिंचाई फसल के 20-25 प्रतिशत के उगने के बाद लगाई जाती है। बारिश के दिनों में गन्ने को पानी बारिश के आधार पर लगाएं। यदि बारिश कम हो तो 10 दिनों के अंतर पर पानी लगाएं। इसके बाद पानी लगाने का अंतराल बढ़ा कर 20-25 दिनों तक कर दें। जमीन में नमी संभालने के लिए गन्ने की पंक्तियों में घास फूस का प्रयोग करें। अप्रैल से जून के महीने का समय गन्ने के लिए नाजुक समय होता है। इस समय सिंचाई का सही ध्यान रखना जरूरी है इसके इलावा बारिश के दिनों में पानी को खड़ा होने से रोकें। बालियां निकलने और फसल के विकास के समय सिंचाई जरूरी है।
मिट्टी को मेंड़ पर चढ़ाना: कही का प्रयोग करके गन्ने की मेंड़ चढ़ानी जरूरी है क्योंकि यह कमाद को गिरने से बचाती है और खादों को भी मिट्टी में मिलाने में सहायता करती है।
फसल की कटाई:- ज्यादा पैदावार और चीनी प्राप्त करने के लिए गन्ने की सही समय पर कटाई जरूरी है। समय से पहले या बाद में कटाई करने से पैदावार पर प्रभाव पड़ता है। किसान शूगर रीफरैक्टोमीटर का प्रयोग करके कटाई का समय पता लगा सकते हैं। गन्ने की कटाई द्राती की सहायता से की जाती है।गन्ना धरती से ऊपर थोड़ा हिस्सा छोड़कर काटा जाता है क्योंकि गन्ने में चीनी की मात्रा ज्यादा होती है। कटाई के बाद गन्ना फैक्टरी में लेकर जाना जरूरी होता है।
कटाई के बाद:- गन्ने को रस निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके इलावा गन्ने के रस से चीनी, गुड़ और शीरा प्राप्त किया जाता है।
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