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गाजर की खेती कैसे करे संपूर्ण जानकारी

गाजर की खेती
Written by Gramik

गाजर का इस्तेमाल सलाद और सब्जियों दोनों में किया जाता है। यह एंटीऑक्सीडेंट और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। लाल गाजर में लाइकोपीन होता है और काली गाजर में एंथोसायनिन होता है, जो शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट होते हैं और हृदय रोग, मोटापा, कैंसर आदि से बचाते हैं।

काली गाजर में आयरन की मात्रा भी अधिक होती है, जो खून की कमी को पूरा कर एनीमिया से बचाती है। साथ ही काली गाजर से कांजी बनाई जाती है जो पेट की बीमारियों को दूर करती है।

गाजर की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

गाजर को बढ़ने के लिए 7 से 24 डिग्री सेल्सियस और विकास के लिए 18 से 24 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है।गाजर का सबसे अच्छा रंग 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड पर बनता है। यदि तापमान 30 डिग्री से ऊपर चला जाता है, तो गाजर कड़वी हो जाती है और जड़ें सख्त हो जाती हैं।

गाजर की खेती

गाजर के लिए गहरी, नरम, चिकनी मैरा जमीन अधिक बढ़िया है। भारी जमीन जड़ों की वृद्धि को रोक देती है और जड़ों को दुसांगढ़ बनाती है। 6.5 PH वाली भूमि फसल की अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त मानी जाती है। 

गाजर की प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

  • PC 34 : यह लाल रंग की और गहरे हरे पत्तों वाली किस्म है। जड़ों की लंबाई 25 सैं.मी. और जड़ों का व्यास 3.15 सैं.मी. होता है। इसमें टी एस एस की मात्रा 8.8 प्रतिशत होती है। यह किस्म बिजाई के 90 दिनों के बाद पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 204 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • पंजाब ब्लैक ब्यूटी : इसकी जड़ें जामुनी काली और पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। इसमें एथोंसाइनिश और फिनोलस जैसे स्त्रोत होते हैं जो कि कैंसर की बीमारी से बचाते हैं। इसमें टी एस एस की मात्रा 7.5 प्रतिशत होती है। यह किस्म बिजाई के 93 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 196 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। इस किस्म की ताजी गाजरें सलाद, जूस और आचार बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं।
  • पंजाब लाल गाजर : इसकी औसतन पैदावार 230 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • पूसा केसर : यह लाल रंग की गाजर की किस्म है और आई ए आर आई, नई दिल्ली की तरफ से तैयार की गई है। यह 90-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • पूसा मेघली : यह संतरी रंग की गाजर की किस्म है और आई ए आर आई नई दिल्ली की तरफ से तैयार की गई है। इसकी औसतन पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • न्यू कुरोडा : यह हाइब्रिड किस्म समतल क्षेत्रों और पहाड़ी क्षेत्रों में लगाने के लिए अनुकूल होती है। 

गाजर की बिजाई

देसी किस्मों की गाजर की बुवाई के लिए सितम्बर का महीना उपयुक्त होता है। अंग्रेजी किस्मों को बिजाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। बुवाई के लिए 4-5 किलो बीज प्रति एकड़ का प्रयोग करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 cm और पौधे की दूरी 7.5 cm रखें।

मियारी वाली गाजर तैयार करने के लिए, पौधों को एक महीने बाद विरला कर दें। व्यावसायिक स्तर पर फसलों की बुवाई मशीन के साथ करें। यह मशीन 67.5 cm की दूरी पर 3 बैड बनाकर एक बैड पर 4 लाइनों में गाजर की बिजाई करती है।  

गाजर की खेती में खादें

गाजर की फसल के लिए प्रति एकड़ 15 टन गली सड़ी रूडी डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला लें। इसके साथ ही 25 किलो नाइट्रोजन (55 किलो यूरिया), 12 किलो फॉस्फोरस (75 किलो सुपरफॉस्फेट) और 30 किलो पोटाश (50 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति एकड़ डालें। गाजर के अच्छे रंग के लिए पोटाश आवश्यक है। सारी खाद बुवाई के समय डालें।

गाजर की खेती में पानी

बुवाई के तुरंत बाद पहला पानी डालें। गाजर की फसल को अधिकतम 3-4 सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल को अधिक पानी देने से संकोच करें नहीं तो गाजर का आकार खराब हो जाता है। इसके अलावा गाजर का रंग भी नहीं बनता और पत्ते भी अधिक आ जाते हैं।

गाजर की खेती में नदीनों की रोकथाम

गाजर की फसल शुरुआत में धीरे-धीरे बढ़ती है, जिसके कारण नदीनों की समस्या बहुत आ जाती है। नदीनों से बचाव के लिए फसल की गुड़ाई समय पर करते रहें ताकि हवा का संचार बना रहे। यदि गाजर का उपरी भाग सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आता है तो वह हरा हो जाता है और गाजर की क्वालिटी खराब हो जाती है।इसलिए गाजर बनाते समय मिट्टी को ढकना बहुत जरूरी है।

गाजर की खेती में पुटाई

किस्म के आधार पर गाजर को 85 से 100 दिनों में पुटाई के योग्य हो जाती है। गाजर गहरे लाल रंग की और यदि बिक्री योग्य हो तो इनकी पुटाई कर ली जाती है। लेबर द्वारा पुटाई और चुगाई का खर्चा अधिक होता है, जिसके कारण बड़े स्तर पर गाजर की पुटाई मशीन द्वारा करनी चाहिए । यह मशीन 67.5 cm के फासले पर मेंढ़ पर लगी गाजर की पुटाई  0.62 एकड़ प्रति घंटे में कर सकती है।

गाजर की खेती में दुसांगढ़ा निकलना

दुसांगढ़ा निकलने से गाजर की क्वालिटी सही नहीं रहती और यह मंडीकरण योग्य नहीं रहती। ताज़ी रूडी डालने से भारी जमीन में यह समस्या अधिकतर आ जाती है । इससे छुटकारा पाने के लिए बढ़िया किस्म का चुनाव करें और गाजर की बिजाई गहरी, नरम और रेतली मैरा जमीन में ही करनी चाहिए।

गाजर की प्रोसेसिंग

यह एक ऐसी तकनीक तैयार की गई है , जिसके अनुसार मौसमी गाजर और आंवले के मिश्रण से खमीर के साथ तैयार की गए पीने योग पदार्थ बनाया जाता है। इसे तैयार करने की विधि छोटे और बड़े स्तर पर हो सकती है। यह पीने योग्य पदार्थ 3 महीने तक रखा जा सकता है और इसमें खुराक तत्व भी पूरे रहते हैं। 

इस तकनीक के साथ गाजर के सीजन दौरान मंडी में अधिक मात्रा में आई गाजर को पीने योग्य पदार्थ के रूप में प्रयोग करके उत्पाद का सही प्रयोग किया जा सकता है और खुराकी तत्व भी अधिक समय तक प्राप्त किये जा सकते हैं। गाजर की फसल पर भयानक कीटों पर बीमारी का हमला नहीं होता और खेती रसायनों के बिना इसकी पैदावार की जाती है।

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