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Amla Farming: नई किस्मों से करें पोषक तत्वों से भरपूर आंवले की बागवानी!

Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है।

आंवले की बागवानी (Amla Farming) में अगर ज़रा सी सावधानी बरती जाए, और बेहतर जानकारी हो, तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। आंवला स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। आंवले में कई तरह के औषधीय तत्व होते हैं, जिनसे कई बीमारियों में लाभ होता है। आंवला में विटामिन-सी, कैल्शियम, एंटीऑक्सीडेंट, आयरन, पोटैशियम जैसे तमाम पोषक तत्व पाए जाते हैं। 

Amla Farming

आंवले की बागवानी (Amla Farming) फ़ायदे का सौदा कैसे हो सकता है?

आंवले को आप कच्चा या फिर जैम बनाकर खा सकते हैं। हालांकि इसको जूस, अचार या चटनी के रूप में भी अपने खाने में शामिल किया जाता है। यही कारण है कि इसकी मांग साल भर बनी रहती है। आंवले की बागवानी पानी की कमी वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है।

इसकी बागवानी पहले उत्तर प्रदेश तक ही सीमीत थी लेकिन अब नई प्रजातियां आने से दक्षिण के आन्ध्र प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र और राजस्थान तक आंवले की बागवानी बड़े पैमाने पर की जाती है। 

कृषि विज्ञान केन्द्र अयोध्या के हेड और बागवानी विशेषज्ञ डॉ बीपी शाही ने मीडिया से बात-चीत के दौरान जानकारी दी कि आंवला की अच्छी फलत लेने के लिए कई नई किस्में आ चुकी हैं। आंवले की किस्मों का चुनाव करते समय नई प्रजातियों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

जिस जगह पर जो किस्म बेहतर पैदावार दे सकती है, कृषि विशेषज्ञ से परामर्श लेकर उन्ही किस्मों का चुनाव करें। आजकल ऐसी कई किस्में उपलब्ध हैं, जो तीसरे साल से फल देने लगती हैं। आंवला के 10-12 वर्ष पुराने पेड़ से 150-200 किलोग्राम फल की उपज ली जा सकती है।

आँवले की प्रमुख किस्में

बागवानी विशेषज्ञ डॉ बीपी शाही ने एक बनारसी किस्म से चयनित आंवले की अगेती किस्म के बारे में बताते हुए कहा, कि इसके फल बड़े आकार के होते हैं, जिसका वजन 50 से 60 ग्राम के होता है। इस किस्म के आंवले का रंग हल्का पीला होता है। 

इसकी उत्पादन और भंडारण क्षमता दोनों अधिक होती है। इसके फल मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक पकते हैं। इस किस्म के फल मुरब्बा, कैंडी और जूस बनाने के लिए काफ़ी अच्छे माने जाते हैं।

बागवानी विशेषज्ञ के अनुसार आंवला की कंचन किस्म, चकईया किस्म से चयनित करके विकसित की गई है। ये प्रजाति मध्यम समय में तैयार हो जाती है। इसके पौधों पर भी मादा फूलों की संख्या अधिक होने के कारण फल की अच्छी उपज मिलती है।

इसके फल मध्यम आकार के होते हैं और वजन 32 से 35 ग्राम होता है। फलो का रंग हल्का पीला हरा होता है। इस किस्म में तीसरे साल से फल आने लगते हैं, इसके 10 साल के एक पौधे से एक कुंतल से लेकर 3 कुंतल तक की उपज ली जा सकती है।

Amla Farming

आंवला की नरेन्द्र- 6 किस्म भी अच्छी उपज देने वाली मानी जाती है। मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर तक ये किस्म पक कर तैयार हो जाती है। इसके पेड़ का फैलाव अधिक होता है, जिससे उद्पादन काफ़ी अच्छा मिलता है।

आंवला नरेंद्र- 7 किस्म बीजू पौधे से विकसित की गई है। इसके पेड़ सीधे बढ़ते हैं। इस प्रजाति से भी तीसरे साल फल मिलने लगता है। इसके फल बड़े होते हैं, जिनका वजन प्रति फल 45 से 47 ग्राम होता है, इसके फल हरे, सुनहरे और चमकदार होते हैं।

नरेन्द्र- 9 आंवला की एक अगेती किस्म है। इसके फलों का वजन लगभग 46 से 47 ग्राम तक होता है। चपटे, चिकनी त्वचा वाले फल हल्के पीले रंग के होते है।

इसके फल मुरब्बा बनाने के लिए काफ़ी उपयुक्त होते हैं। नरेन्द्र- 10 भी आंवला की एक अगेती प्रजाति है। इसकी उपज मध्यम रहती है, और फलों का आकार बड़ा होता है। इसका वजन 50 से 55 ग्राम होता है। 

आंवला की बागवानी (Amla Farming) कैसे करें?

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार आंवले के पौधों को खेत में योजनाबद्ध तरीके से लगाना चाहिए। आंवला की बागवानी बारिश के मौसम से पहले की जाती है। सबसे पहले मई के महीने में 7 बाई 7 मीटर की दूरी रखते हुए 1 घन मीटर आकार के गड्ढे बनाकर कुछ दिन खुला छोड़ देना चाहिए।

फिर खोदी गई मिट्टी में 10 किलो गोबर की खाद, 200 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम डीएपी और 100 ग्राम पोटाश के साथ 20 ग्राम फिपरोनिल कीटनाशक दवा मिलाकर गड्ढे को भर देना चाहिए। इसके बाद नमीयुक्त मिट्टी में आंवला के पौधे की रोपाई करके तुरन्त सिंचाई करें, और नियमित पानी देते रहें।

आंवले के पौधे लगाने के बाद कम से कम 30-40 वर्ष तक फल देते रहते हैं। इसलिए चुनी गई किस्मों के पौधे को किसी कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, सरकारी या गैर सरकारी प्रमाणित नर्सरी से ही खरीदें, ताकि उनकी गुणवत्ता अच्छी हो।

आंवला में स्व-निषेचन के कारण फूल तो बहुत ज्यादा लगते हैं, लेकिन कभी-कभी फल नहीं लगते हैं, इसलिए आंवले की बागवानी में दो-तीन तरह की अलग-अलग किस्में लगाएं।

ग्राफ्टिंग विधि से ऐसे करें आंवले की बागवानी

ग्राफ्टिंग, जिसे आम भाषा में कलम बांधना भी कहते हैं, ये एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें दो तरह के पौधों को जोड़ कर एक नया पौधा विकसित किया जाता है, जो मूल पौधे की तुलना में अधिक उत्पादन देता है। ग्राफ्टिंग विधि से तैयार किये गए पौधों में दोनों पौधों के गुण व विशेषताएं होती हैं।

ग्राफ्टिंग विधि में एक पौधे को जड़ समेत लिया जाता है और दूसरा पौधा बिना जड़ के कलम के रूप में लिया जाता है। इसके बाद इन दोनों पौधों को एक साथ जोड़ा जाता है, जिससे एक नया पौधा विकसित होता है। ग्राफ्टिंग विधि में एक पौधे को जड़ समेत लिया जाता है और दूसरा पौधा बिना जड़ के कलम के रूप में लिया जाता है। इसके बाद इन दोनों पौधों को एक साथ जोड़ा जाता है, जिससे एक नया पौधा विकसित होता है।

आपको बता दें कि, इस आधुनिक ग्राफ्टिंग तकनीक का उपयोग कई प्रकार के पौधों को विकसित करने के लिए किया जाता है, जिनमें गुलाब, सेब, आम, जामुन, आंवला और संतरे जैसे बारहमासी पौधे शामिल हैं। ग्राफ्टिंग तकनीक अपनाकर भी आप आंवले की उन्नत खेती कर सकते हैं।

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