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Litchi Farming: लीची की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी!

लीची की खेती
Written by Gramik

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फलों की बागवानी में लीची की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। वैसे तो चीन में सबसे ज्यादा लीची उगाई जाती  है, लेकिन लीची उत्पादन के मामले में भारत भी पीछे नहीं है। भारत में हर साल लगभग 1 लाख टन लीची की उपज प्राप्त होती है। आपको बता दें कि इस फल की मांग स्थानीय व अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों में बड़े पैमाने पर देखी जाती है। ताजे फल के रूप में लीची के प्रयोग के साथ ही इसके फलों से जैम, शरबत व अन्य पेय पदार्थ बनाए जाते हैं।

लीची की खेती

भारत का सबसे बड़ा लीची उत्पादक राज्य 

भारत में लीची का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला राज्य बिहार है। यहाँ मुज़्ज़फरपुर व दरभंगा जिलों में सबसे ज्यादा लीची उगाई जाती है। वहीं बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल, असम, उत्तराखंड और पंजाब में भी लीची की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। 

लीची की खेती के लिए जलवायु 

लीची की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। जनवरी-फरवरी महीने में फूल आने के समय आसमान साफ़ व शुष्क होने से लीची में अच्छी मंजरी बनती है, जिससे फल ज्यादा आने की संभावना बढ़ जाती है।

वहीं गर्म जलवायु में फलों का विकास व गुणवत्ता अच्छी होती है। देश में इसकी खेती के लिए उत्तरी बिहार, देहरादून की घाटी, उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र व झारखंड के कुछ क्षेत्र उपयुक्त माने जाते हैं। आपको बता दें कि लीची में फूल आने का समय जनवरी-फरवरी का महीना होता हैं, वहीं इसके फल मई-जून में में तैयार होते हैं। 

लीची की खेती के मिट्टी का चुनाव 

लीची की खेती के लिए अच्छी जल धारण क्षमता वाली गहरी बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। हालांकि इसे हल्की अम्लीय एवं लेटराइट मिट्टी में भी उगाया जा सकता हैं। लेकिन ध्यान रहे कि जल भराव वाले क्षेत्र लीची की खेती के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते हैं, इसलिए किसान साथी इसे उगाने के लिए अच्छी जल निकास वाली भूमि का ही चुनाव करें।  

लीची की उन्नत किस्में 

शाही: ये लीची की व्यावसायिक व अगेती किस्म है, जिसके फल गोल एवं छिलके गहरे लाल होते है। वहीं अंदर से ये रसीले व  सफेद रंग के होते हैं। इस किस्म के फल 15-30 मई तक पक जाते हैं। इस किस्म की एक प्रमुख विशेषता ये है कि इसके गूदे खुशबूदार व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। 

चाइना: यह एक देर से पकने वाली किस्म है, और इसके पौधे बौने होते है। इस किस्म के फलों में चटखन की समस्या कम देखी जाती है। फलों का रंग ऊपर से गहरा लाल होता है, व गूदे अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसकी वजह से बाजार में इसकी मांग काफी ज्यादा रहती है। आपको बता दें कि ये किस्म एक साल छोड़कर दूसरे साल फल देती है। 

स्वर्ण रूपा: यह किस्म छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्र के लिए अच्छी मानी जाती है। इसके फल मध्यम समय में पकते है, और इनमें भी चटखन की समस्या कम होती है। ये लीची छोटे बीज आकार वाली और काफी मीठी होती है। इसके अलावा लीची की अन्य किस्मों की बात करें तो अर्ली बेदाना, डी- रोज व त्रिकोलिया आदि प्रमुख हैं। 

लीची की खेती

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लीची की खेती के लिए पौध की तैयारी 

लीची का पौध तैयार करने के लिए गूटी विधि का इस्तेमाल किया जाता है। बीज से उगाए गए पौधों में फल देर से आते हैं। गूटी विधि से पौध तैयार करने के लिए मई- जून महीने में स्वस्थ व सीधी शाखाओ का चुनाव किया जाता है।

इस शाखा के शीर्ष से 40-50 सेमी नीचे किसी भी गांठ के पास चाकू से गोलाई में 2 सेमी का चौड़ा छल्ला बना लिया जाता है, जिसे नमी युक्त घास से ढककर ऊपर से पॉलीथिन लपेट कर बांध दिया जाता है। गूटी को बांधने के 2 महीने के अंदर जड़े पूरी तरह से निकल जाती है। इसके बाद छायादार स्थान पर इसकी रोपाई की जा सकती है। 

लीची का पौधारोपण

लीची के पौधे की रोपाई अप्रैल-मई महीने में की जाती है। बरसात के शुरुआती में 2-3 टोकरी गोबर की सड़ी हुई खाद 2 किलो नीम की खली, 1 किलो सिंगल सुपर फास्फेट मिट्टी मे मिलाकर गड्ढे को भर दें। जिन क्षेत्रों में अधिक बारिश होती है, उन क्षेत्रों में गड्ढे को खेत की सामान्य सतह से 20-25 सेमी ऊंचा भरें ताकि मिट्टी दब भी जाये और पानी पौधे के चारों तरफ देर तक जमा ना हो। 

लीची का पौधारोपण

लीची की खेती के लिए खाद व उर्वरक 

शुरुआत के कुछ सालों तक लीची के पौधों को 30 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद, 2 किलो नीम की खली, 250 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश हर साल प्रति पौधे की दर से देना चाहिए।

3 साल बाद 35 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद, 500 ग्राम यूरिया, 2.5 किलो नीम की खली, 500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 600 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति पौधा प्रति वर्ष की दर से डालें। 7-10 साल की फसल के लिए प्रति पौधा गोबर 40-50 किलो गोबर खाद, 1000-1500 ग्राम यूरिया, 1000 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट और 300-500 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश डालें।

इसी तरह साल दर साल पौधों के विकास होने के साथ ही खाद की मात्रा बढ़ाते रहें। ध्यान रहे कि खाद डालने के बाद सिंचाई जरूर करें।

लीची के पौधों की सिंचाई 

लीची के पौधे लगाने के बाद शुरुवात में उसे अधिक सिंचाई की जरूरत पड़ती है। सर्दियों में 5-6 दिनों के अंतराल पर व गर्मी में 3-4 दिनों के अंतराल पर पौधों की सिंचाई करें। लीची के पौधों की सिंचाई के लिए थाला विधि से करनी चाहिए। लीची के पेड़ जब फल देने लायक हो जाएँ, तब फूल आने के 3-4 महीने पहले सिंचाई न करें। पानी की कमी से फल का विकास रुक जाता है व फल चटखने लगते हैं।

कटाई-छँटाई व खर-पतवार नियंत्रण 

लीची के जो पेड़ पूरी तरह से विकसित होते हैं, उनमें शाखाएँ घनी होने के कारण सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता है, जिससे कीट व रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए लीची के शुरुआती 3-4 सालों में पौधों की सूखी शाखाओं को निकाल दें।

हालांकि पेड़ की 3-4 मुख्य शाखाओं को विकसित होने दें, जिससे फल उत्पादन भी अधिक होता है, और कीट व रोग भी कम लगते है। वहीं यदि पेड़ों के आसपास खरपतवार अधिक हो जाते हैं तो भी कीट व रोगों की समस्या हो सकती है। इसलिए आप समय समय पर पौधों में खर पतवार नियंत्रण का विशेष ध्यान रखें। 

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तुड़ाई और भंडारण 

लीची का फल पकने के बाद ये गुलाबी रंग का और फल की सतह का समतल हो जाती है, तब ये तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। किसान साथी फल को गुच्छों में तोड़ें। फल तोड़े जाने के बाद ये लंबे समय तक ताजे बने रहें, इसके लिए तुड़ाई के बाद फलों को 1.6-1.7 डिग्री सैल्सियस तापमान और 85-90% नमी में स्टोर करें। इस तरह लीची के फल 8-12 सप्ताह के लिए ताजे बने रहेंगे। आपको बता दें कि पूर्ण विकसित 15-20 साल के लीची के प्रति पौधे से लगभग 70-100 किलो फल प्राप्त किये जा सकते हैं। 

फलों की खेती के बारे में अधिक जानकारी के लिए ग्रामिक के ये ब्लॉग पढ़ें।

FAQ

लीची कितने साल में फल देने के लिए तैयार हो जाती है?

गूटी विधि से तैयार लीची के पौधों में चार से पाँच सालों में फूल व फल आने लगते हैं।

भारत के किन राज्यों में लीची की खेती की जाती है?

भारत में लीची का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला राज्य बिहार है।

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