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Turmeric Farming: हल्दी की खेती से अधिक मुनाफे के लिए अपनाएं ये टिप्स!

हल्दी की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!

हल्दी सिर्फ़ मसाले के तौर पर ही नहीं, बल्कि इसके औषधीय गुणों की वजह से भी इसकी काफ़ी मांग रहती है। दुनिया भर की कुल उपज की बात करें, तो अकेले भारत (turmeric farming in india) हल्दी का 80 प्रतिशत उत्पादन करता है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक देश है। इसकी खेती किसान साथियों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है, क्योंकि हल्दी को बाकी देशों में निर्यात करने के कारण ये काफ़ी महंगी बिकती है।

चलिए इस ब्लॉग में हल्दी की खेती की पूरी प्रक्रिया जानते हैं-

कब करें हल्दी की बुआई? 

हल्दी की खेती का सबसे सही समय खरीफ मौसम है।  क‍िसान साथी मई महीने से 15 जून तक हल्दी की बुआई कर सकते हैं। हल्दी की फसल की उपज काफी हद तक क‍िसानों द्वारा लगाए गए बीजों की गुणवत्ता पर भी निर्भर करती है, इसलिए उन्नत किस्मों का ही चुनाव करें – Turmeric Seed

हल्दी की खेती

हल्दी की खेती में लागत

एक एकड़ में हल्दी की खेती के लिए लगभग 6 क्विंटल बीज की जरूरत होती है। हल्दी की खेती में केवल बीजों पर ही करीब 15 से 25 हजार रुपये तक का खर्च आता है। वहीं, इसकी बुवाई से लेकर सिंचाई, खाद और अन्य खर्च पर करीब 20 हजार रुपये खर्च होते हैं, यानि एक एकड़ में हल्दी की खेती में करीब 50 हजार रुपये का खर्च आता है।

इस तरह करें हल्दी की बुआई

हल्दी की खेती के लिए जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, साथ ही इसे बाग या छायादार जगहों पर बोना सही माना जाता है। हल्दी की बुआई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 30-40 सेमी और पौध से पौध की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए। वहीं गहराई की बात करें, तो 4-5 सेमी गहराई में बुआई करनी चाहिए। हल्दी की बुआई के लिए 6 क्विंटल प्रति एकड़ बीज की जरूरत पड़ती है, इसकी बुआई के लिए 7-8 सेंमी लम्बा कंद चुनें, जिसमें कम से कम दो आंखें हों।

हल्दी की उन्नत किस्में

हल्दी की उन्नत किस्मों की बात करें तो आरएच-5 हल्दी के पकने में लगभग 210 से 220 दिन का समय लगता है। वहीं हल्दी की राजेंद्र सोनिया किस्म को तैयार होने में 195 से 210 दिन तक का समय लगता है। 

इसी तरह हल्दी की किस्म पालम पीताम्बर व सोनिया तैयार होने में लगभग 230 दिन का समय लेती है। इसके अलावा सगुना, रोमा, कोयम्बटूर, कृष्णा, एनडीआर-18, बीएसआर-1, पंत पीतांबर आदि किस्में भी हल्दी की खेती के लिए अच्छी मानी जाती हैं।

बुआई से पहले करें बीज उपचार

किसान साथी हल्दी की बुआई से पहले कंदों का शोधन जरूर करें। बुआई से पहले बीजों का उपचार करने के ल‍िए प्रति लीटर पानी में 2.5 ग्राम मैंकोजेब और क्विनालफॉस डालें। इससे 30 मिनट तक हल्दी का बीज उपचारित करें, फिर उन्हें छाया में सुखाकर बुआई करें।

हल्दी में बुआई के तुरंत बाद मल्चिंग करना बहुत आवश्यक होता है। इसके लिए सस्ते साधन में पुआल का इस्तेमाल किया जा सकता है। वहीं हल्दी की खेती में सिंचाई की बात की जाय, तो पहली सिंचाई 70 दिनों बाद करें, जबकि दूसरी सिंचाई 4 महीने, यानि लगभग 120 दिनों बाद करें। 

हल्दी के खेती में प्रयोग की जाने वाली खाद 

हल्दी की बुआई से पहले प्रति एकड़ खेत में 8 टन कंपोस्ट, नीम की खली 8 क्व‍िंटल, नाइट्रोजन 60 किलो, फॉस्फोरस 35 किलो,और पोटाश 35 किलो मिलाना चाहिए। पोटाश और फास्फोरस की आधी मात्रा बुआई से पहले और नाइट्रोजन की आधी मात्रा और बचा हुआ पोटाश पौधों के 60 दिन के होने के बाद देना चाहिए। वहीं बुवाई के 90 दिन बाद बाकी बचा नाइट्रोजन डालना चाहिए।

बगीचों में करें हल्दी की खेती 

छायादार जगहों पर हल्दी की खेती आसानी से की जा सकती है। इसके लिए आप आम या अमरूद के बगानों में इंटरक्रॉप के तौर पर हल्दी की खेती कर सकते हैं। इस तरह क‍िसान मुख्य खेतों में हल्दी की सफल खेती कर अच्छी उपज ली सकते हैं, साथ ही इंटरक्रॉप के रूप में आम, अमरूद की भी उपज ली जा सकती है।

हल्दी की खेती

हल्दी की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग/कीट

पत्तियों का धब्बा: हल्दी की फसल में इस रोग का खतरा काफ़ी ज़्यादा होता है। ये रोग लगने पर पत्तियों के दोनों ओर छोटे, अंडाकार भूरे धब्बे हो जाते हैं। ऐसे में पौधे भी झुलस जाते हैं, और हल्दी की उपज में कमी आ जाती है।

रोकथाम– हल्दी की फसल में पत्तियों पर धब्बों के रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 0.2% का छिड़काव करें।

नेमाटोड कीट: रूट नॉट नेमाटोड और बुर्जिंग नेमाटोड हल्दी की खेती के लिए काफ़ी हानिकारक हैं। ये कीट मृदा से पौधों की जड़ों में जाकर जड़, तने, पत्ती, फूल के साथ बीज को भी संक्रमित करते हैं।

रोकथाम– हल्दी की फसल में नेमाटोड कीट की रोकथाम के लिए बुवाई के समय पोमोनिया क्लैमाइडोस्पोरिया का छिड़काव करें। 

प्रकंद की सड़न: ये रोग लगने से हल्दी के पौधे गिरने लगते हैं, साथ ही प्रकंद में सड़न शुरू हो जाती है।

रोकथाम– इस रोग की रोकथाम के लिए किसान साथी खेत में मैन्कोज़ेब 0.3% का छिड़काव करें।

बीज सामग्री को मैन्कोजेब @3 ग्राम/लीटर पानी या कार्बेन्डाजिम @1 ग्राम/लीटर पानी से 30 मिनट तक उपचारित करें और बुआई से पहले छाया में सुखा लें।

मैंकोजेब 2.5 ग्राम/लीटर पानी या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/लीटर की दर से छिड़काव करें। ये छिड़काव 2-3 बार हर पखवाड़े के अंतराल पर करें।

लीफ स्पॉट: लीफ स्पॉट पत्तियों की ऊपरी सतह पर भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देता है। धब्बे आकार में छोटे बड़े और सफेद या भूरे रंग के होते हैं। बाद में, दो या दो से अधिक धब्बे आपस में जुड़ सकते हैं और लगभग पूरे पत्ते को कवर करते हुए एक पैच का निर्माण कर सकते हैं। प्रभावित पत्तियां बाद में सूख जाती हैं। 

रोकथाम: इसके रोकथाम के लिए ज़िनब 0.3% या बोर्डो मिश्रण 1% का छिड़काव करें।

इस समय करें हल्दी की खुदाई

हल्दी की खुदाई आमतौर पर जनवरी से मार्च-अप्रैल तक की जाती है। अगेती किस्में 7-8 महीनों में पक जाती हैं, और मध्यम किस्में 8-9 महीनों में पक जाती हैं। अगर एक एकड़ से हल्दी की औसत उपज की बात करें, तो 80-100 क्विंटल कच्ची हल्दी प्राप्त की जा सकती है, ये हल्दी की किस्मों और फसल की देखरेख पर निर्भर करता है। हालांकि सूखने के बाद एक चौथाई हल्दी ही बचती है। क‍िसान साथी 200 से 500 रुपये प्रति किलो के भाव से हल्दी बेच सकते हैं। कीमत समय समय पर घटती बढ़ती रहती है।

FAQs

हल्दी की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त है? 

इसके लिए ऐसी मिट्टी अच्छी मानी जाती है जिसमे जल निकासी की क्षमता अच्छी हो। अतः हल्दी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी या मटियार दोमट मिट्टी ठीक होगी। 

हल्दी बुवाई का सही समय क्या है?

अलग-अलग किस्मों के आधार पर हल्दी की बुवाई 15 मई से लेकर 30 जून के बीच होती है।

भारत में सबसे ज्यादा हल्दी कहाँ होती है?

हल्दी के सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं।

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