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बीज की बुवाई के बाद फसलों को कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है, और धान की फसल भी इससे अछूती नहीं रहती। धान की खेती में एक प्रमुख और खतरनाक बीमारी है गर्दन तोड़ रोग, जिसे ‘नेक ब्लास्ट’ भी कहा जाता है। इस रोग के कारण धान के पौधे की गांठें कमजोर हो जाती हैं। आइए जानते हैं इस रोग से बचाव के उपाय और इसके लक्षणों के बारे में।
क्या है गर्दन तोड़ रोग?
गर्दन तोड़ रोग, जिसे नेक ब्लास्ट भी कहा जाता है, धान की फसल के लिए एक गंभीर समस्या है। जब धान की फसल बालियां और दाने बनाने लगती हैं, तब मौसम के अचानक बदलाव और ज़्यादा नमी के कारण यह रोग फैलता है। इस रोग के कारण धान का पौधा सूखने लगता है, जिससे फसल की उपज में भारी कमी आ जाती है। जब बालियां निकलने लगती हैं, तो यह रोग पौधे की गांठों को कमजोर कर देता है, जिससे उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।
गर्दन तोड़ रोग के लक्षण
इस रोग से प्रभावित धान की पत्तियों पर नीले या बैंगनी रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, यह धब्बे आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं, जिससे पत्तियां सूख जाती हैं। तनों की गांठें काली हो जाती हैं, और पौधा झुकने लगता है। जब रोग अपनी तीसरी और सबसे गंभीर अवस्था में पहुंचता है, जिसे “ग्रीवा गलन” कहते हैं, तब बालियों के डंठल काले हो जाते हैं और बालियां सफेद पड़ जाती हैं। इस स्थिति में बालियों में दाने हल्के और खाली रह जाते हैं।
कब फैलता है यह रोग?
गर्दन तोड़ रोग तब फैलता है जब रात का तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, और सप्ताहभर तक नमी बनी रहती है। यह रोग विशेष रूप से 15 जुलाई के बाद रोपी गई फसल में अधिक होता है। मौसम के अचानक बदलाव और नमी इस बीमारी के प्रमुख कारण होते हैं।
गर्दन तोड़ रोग से बचाव के उपाय
जब धान की पत्तियों पर इस रोग के लक्षण दिखने लगें, तो तुरंत Tricyclazole 75% WP (बीम) 120-160 ग्राम या Tebuconazole 50% + Trifloxystrobin 25% WG ( नटिवों ) 100 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। इसके अलावा जब बालियों पर 50 प्रतिशत फूल निकलने लगें, तब इस घोल का छिड़काव दोहराएं। छिड़काव का समय दोपहर के बाद का होना चाहिए।
FAQs
गर्दन तोड़ रोग एक फंगल संक्रमण है, जो धान की फसल की गांठों और तनों पर हमला करता है, जिससे पौधे सूखने लगते हैं और फसल उत्पादन कम हो जाता है।
धान की पत्तियों पर नीले या बैंगनी रंग के धब्बे उभरते हैं, तनों की गांठें काली पड़ जाती हैं, और बालियों के डंठल कमजोर होकर काले हो जाते हैं।
यह रोग तब फैलता है जब रात का तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस होता है और लगातार नमी बनी रहती है, खासकर 15 जुलाई के बाद रोपी गई फसल में।
Tricyclazole 75% WP(बीम) 120-160 ग्राम या Tebuconazole 50% + Trifloxystrobin 25% WG ( नटिवों ) 100 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करने से इस रोग से बचाव किया जा सकता है। छिड़काव बालियों के 50 प्रतिशत फूल निकलने के समय किया जाना चाहिए।
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