Informative Economy Grains Plant Diseases Seeds

चने की खेती से चाहिए अच्छी उपज, तो ये बातें गांठ बांध लें!

चने की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!

किसान साथियों, अगर आप चने की खेती से अच्छी उपज लेना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको अच्छी मिट्टी, समय पर सिंचाई और उचित देखभाल और अच्छे चने के बीज की आवश्यकता होगी। इसी क्रम में हरियाणा सरकार ने चने की खेती करने वाले किसानों के लिए कुछ ज़रूरी एडवाइजरी जारी की है। चलिए इस ब्लॉग में विस्तार से जानते हैं-

चने की खेती

ज़रूरत के मुताबिक करें सिंचाई

किसान साथी चने की फसल में फूल आने से पहले जरूरत के मुताबिक ही सिंचाई करें।

चने की छटाई करें

बारिश न होने पर चने की शीर्ष शाखाएं तोड़ लें, यानि पौधों की छटाई कर लें। ऐसा करने से चने के पौधे में फूलों व पत्तियों का सही विकास होता है।

चने की खेती में रोगों/ कीटों की करें रोकथाम

चने की खेती

चने की खेती में कटुआ सुंडी कीट (Cut worm)

किसानों को चने की फसल में लगने वाले रोगों का भी ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। आमतौर पर चने की फसल में कटुआ सुंडी कीट देखा जाता है, जो फसल को काफ़ी नुकसान पहुंचा सकता है। इसके बचाव के लिए किसान साथी 50 मिली साईपर मेथ्रीन 25ई.सी को 100 लीटर पानी में घोल बनाकर खेत में छिड़काव करें। ये मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से बताई जा रही है। खेत का एरिया ज़्यादा या कम होने पर मात्रा भी कम या ज़्यादा होगी।

फली छेदक सुंडी कीट (Gram pod borer)

इसके अलावा चने की फसल में फली छेदक सुंडी कीट का भी प्रकोप देखा जाता है। इसके बचाव के लिए किसान साथी 200 मिली मोनोक्रोटोफॉस 36एस.एल 100 लीटर पानी की मात्रा में घोल बना लें, फिर प्रति एकड़ के हिसाब से फसल में इसका छिड़काव करें।

उखटा रोग (विल्ट/Blight)

इस बीमारी के लक्षण जल्दी बुवाई की गयी फसल में बुवाई के 20-25 दिनों बाद दिखाई देते हैं। वहीं देर से बोये गये चने में रोग के लक्षण फरवरी- मार्च में दिखते हैं। पहले प्रभावित पौधे पीले रंग के हो जाते हैं और नीचे से ऊपर की ओर पत्तियाँ सूखने लगती हैं। बाद में पौधा सूखकर मर जाता है।

इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में नमी कम नही होनी चाहिये। बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही सिंचाई करें, और बुआई के समय रोग रोधी किस्मों जैसै आरएसजी 888ए सी 235 और बीजी 256 की करें।

किट्‌ट (रस्ट/Rust)

इस बीमारी के लक्षण फरवरी व मार्च में दिखाई देते हैं। पत्तियों की ऊपरी सतह परए फलियों पर्णवृतों तथा टहनियों पर हल्के भूरे काले रंग के उभरे हुए चकत्ते बन जाते हैं। इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब नामक फफूंदनाशी की एक कि.ग्रा. या घुलनशील गन्धक की एक कि.ग्रा. या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 1.30 कि.ग्रा. मात्रा को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। 10 दिनों के अन्तर पर 3-4 छिड़काव करने पर्याप्त होते हैं।

पाले से फसल का बचाव

चने की फसल में पाले के प्रभाव के कारण काफी क्षति हो जाती है। पाले के पड़ने की संम्भावना दिसम्बर-जनवरी में अधिक होती है। पाले के प्रभाव से फसल को बचाने के लिए फसल में गन्धक की 0 .1 प्रतिशत मात्रा यानि एक लीटर गन्धक को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। पाला पड़ने की सम्भावना होने पर खेत के चारों और धुआं करना भी लाभदायक रहता है।

फसल की कटाई एवं गहाई

फसल जब अच्छी प्रकार पक जाये तो कटाई करनी चाहिये। जब पत्तियाँ व फलियाँ पीली व भूरे रंग की हो जाये तथा पत्तियाँ गिरने लगे एवं दाने सख्त हो जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिये। कटाई की गई फसल जब अच्छी प्रकार सूख जाये तो थ्रैशर द्वारा दाने को भूसे से अलग कर लेना चाहिये तथा अच्छी प्रकार सुखाकर सुरक्षित स्थान पर भण्डारित कर लेना चाहिये।

चने की खेती में उपज एवं आर्थिक लाभ

उचित देखभाल व उन्नत किस्मों का प्रयोग कर उगायी गयी चने की फसल से 20 से 22 क्विंटल उपज प्रति हैक्टेयर ली जा सकती है। एक हैक्टेयर क्षेत्र में चने की फसल उगाने के लिए लगभग 15-20 हजार रुपए तक का खर्च आता है। यदि चने का बाजार भाव 3000 रूपये प्रति क्विंटल हो तो प्रति हैक्टेयर लगभग 25-30 हजार रूपये तक का लाभ लिया जा सकता है।

चने की खेती से जुड़ा ज़रूरी तथ्य

प्रति वर्ष का अनुपात निकालें तो देश में कुल उगायी जाने वाली दलहन फसलों का उत्पादन लगभग 17.00 मिलियन टन है। चने का उत्पादन कुल दलहन फसलों के उत्पादन का लगभग 45 प्रतिशत होता है। देश में चने की सबसे ज़्यादा उपज मध्य प्रदेश में होती है, जो चने के कुल उत्पादन का 25.3 प्रतिशत होता है। 

इसके बाद आन्ध्र प्रदेश (15.4प्रतिशत), राजस्थान (9.7प्रतिशत), कर्नाटक (9.6प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (6.4प्रतिशत) का नंबर आता है। चने की खेती उन्नत विधियों व अच्छी गुणवत्ता के बीज का चयन करने पर इसकी औसत उपज में दोगुनी बढ़ोत्तरी की जा सकती है।

FAQs

  • चने की खेती कब करें?

    असिंचित अवस्था में चना की बुआई अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह तक कर देनी चाहिए। चना की खेती, धान की फसल काटने के बाद भी की जाती है, बुआई में ज़्यादा देरी करने पर पैदावार कम हो जाती है, और फसल में फली भेदक कीट का खतरा भी बढ़ जाता है।

  • चने की सिंचाई कब करें?

    चने की बुआई के 40 से 60 दिनों बाद पौधों में फूल आने से पहले सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद दूसरी सिंचाई फलियों में दाना बनते समय करनी चाहिए।

  • चने की फसल तैयार होने में कितना समय लगता है?

    चने की फसल तैयार होने में 130 से 145 दिन तक का समय लग सकता है। ये इस बात पर निर्भर करता है कि किस प्रकार की किस्म का चयन किया गया है।

  • चने की अच्छी पैदावार के लिए क्या करें?

    चने के खेत में 15 टन गोबर की खाद या 5 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करें। अच्छी पैदावार के लिए 20 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से काम इस्तेमाल करें। वहीं बारानी क्षेत्रों में बुवाई के 5-6 सप्ताह तक निराई गुड़ाई करते रहें।

  • चने में खरपतवार नाशक कौन सी दवा डालें?

    प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम कॉपर ऑक्सी क्लोराइड मिलाकर चने की फसल में छिड़काव करें।

खेती से संबंधित और भी ब्लॉग पढ़ने के लिए किसान साथी ग्रामिक दिये गये लिंक पर क्लिक करें –लोबिया की खेती
गाजर की खेती
गोभी की खेती

https://shop.gramik.in/

Post Views: 44

Share Your Post on Below Plateforms

About the author

Gramik

Leave a Comment

WhatsApp Icon