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विश्व भर में पानी के बाद अगर किसी पेय पदार्थ का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है, तो वह चाय ही है। चाय में कैफीन काफी ज्यादा होती है, इसे पौधों और पत्तियों से तैयार किया जाता है। गर्म जलवायु में चाय के पौधे अच्छे से विकास करते है, यदि आप भी चाय की खेती के बारे में जानकारी चाहते है, तो ग्रामिक के इस आर्टिकल में जानें कि चाय की खेती कैसे की जाती है।
चाय की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान
चाय की खेती के लिए हल्की अम्लीय भूमि की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, क्योकि जलभराव वाली भूमि में इसके पौधों के खराब होने की संभावना रहती है। चाय की खेती ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती के लिए भूमि का P.H. मान 5.4 से 6 के बीच होना चाहिए।
चाय की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु को उपयुक्त माना जाता है। इसके पौधों को गर्मी के साथ-साथ बारिश की भी जरूरत होती है। शुष्क और गर्म जलवायु में चाय के पौधों का विकास अच्छा होता है। इसके अलावा छायादार जगहों पर भी इसके पौधों की बढ़वार अच्छी होती है। तापमान की बात करें तो चाय के पौधे न्यूनतम 15 डिग्री व अधिकतम 45 डिग्री तापमान तक सहन कर सकते है।
चाय के खेत की तैयारी व ज़रूरी उवर्रक
चाय की खेती के लिए सबसे पहले पंक्ति बनाकर गड्ढे तैयार किये जाते हैं। गड्ढों से गड्ढों के बीच की दूरी दो से तीन फ़ीट रखी जाती है। इसके अलावा पंक्तियों के बीच की दूरी एक से डेढ़ मीटर होनी चाहिए।
इसके बाद तैयार गड्डो में 15 किलो पुरानी गोबर की खाद व रासायनिक खाद के तौर पर 90 किलो नाइट्रोजन, 90 किलो सुपर फास्फेट और 90 किलो पोटाश को मिट्टी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के अनुपात में तैयार गड्डो में डालें।
आपको बता दें कि ये गड्डे पौधों की रोपाई से एक महीने पहले तैयार किये जाते है। आप हर बार चाय के पौधों की कटाई के बाद इन खाद का छिड़काव जरूर करें।
चाय की खेती का सही समय व तरीका
चाय की खेती पौध के रूप में की जाती है। इसके लिए आप कलम विधि से तैयार पौधों को ले सकते हैं,और तैयार गड्डो में पौधों को पॉलीथिन से निकालकर उनकी रोपाई करें, फिर इन पौधों के चारों तरफ मिट्टी डाल कर ढँक दें। चाय की खेती के लिए सही समय की बात करें तो इसके पौधों की रोपाई के लिए सभी सही समय अक्टूबर नवंबर का महीना माना जाता है।
चाय के पौधों की सिंचाई
चाय के पौधों की समय पर सिंचाई करना बहुत ज़रूरी माना जाता है। हालांकि यदि आपके क्षेत्र में बारिश पर्याप्त मात्रा में हो रही है, तो फिर अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है।
यदि बारिश समय पर न हो रही हो तो आप फव्वारा विधि से चाय के पौधों की सिंचाई करें। यदि तापमान अधिक है, तो हर दिन पौधों की हल्की सिंचाई करें, वहीं तापमान सामान्य होने पर आप जरूरत के अनुसार ही सिंचाई करे।
चाय की खेती में खरपतवार नियंत्रण
चाय के पौधों में खरपतवार हटाने के लिए आप समय समय पर खेत की निराई गुड़ाई करते रहें। इसके पौधों की पहली गुड़ाई 20 से 25 दिन बाद करें। इसके बाद जब पौधा पूरी तरह से विकसित हो जाए तो उस दौरान इसके पौधों पर खरपतवार पर नियंत्रण के लिए तीन से चार बार खेत की गुड़ाई करें।
चाय के पौधों के प्रमुख रोग
चाय के पौधों में भी कई रोगों का खतरा होता है। यदि समय पर इनका नियंत्रण न किया जाए तो पैदावार कम हो सकती है। इसके पौधों में शैवाल, काला विगलन कीट रोग, शीर्षरम्भी क्षय, मूल विगलन, चारकोल विगलन, गुलाबी रोग, भूरा मूल विगलन रोग, फफोला अंगमारी, अंखुवा चित्ती, काला मूल विगलन और भूरी अंगमारी जैसे रोगों का खतरा अधिक होता है।
इनके प्रकोप के कारण चाय के पौधे बुरी तरह प्रभावित होते हैं। पौधों को इन रोगो से बचाने के लिए आप विशेषज्ञ द्वारा सुझाए गए रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करें।
चाय पत्ती की तुड़ाई व लाभ
रोपाई के लगभग एक साल बाद चाय की पत्तियां कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इसके बाद आप चाय की पत्तियों की तुड़ाई साल में तीन बार कर सकते हैं। इसकी पहली तुड़ाई मार्च में की जा सकती है, इसके बाद आप हर 3 4 महीने के अंतराल में आप इसकी तुड़ाई कर सकते हैं।
चाय की उन्नत किस्मों की खेती करके आप प्रति हेक्टेयर 600 से 800 किलो तक की उपज ले सकते हैं। बाजार में इसकी मांग और मूल्य दोनों काफी अच्छे होते हैं, जिससे किसानों को इस फसल से बड़ा मुनाफा हो सकता है।
FAQ
भारत में चाय का सबसे अधिक उत्पादन असम राज्य में होता है। ये राज्य देश की आधी से ज्यादा चाय का उत्पादन अकेले करता है।
चाय की खेती मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में की जाती है। इसकी खेती के लिए नवम्बर से दिसंबर का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है।
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