Informative

Cotton Cultivation: कपास की खेती कब व कैसे करें? जानें ज़रूरी बातें!

कपास की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन पर आपका स्वागत है!

कपास की खेती नगदी फसल के रूप में होती है। इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है। भारत के  कई राज्यों में कपास की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। यूं तो बाजार में कपास की कई प्रजातियाँ उपलब्ध हैं, लेकिन लम्बे रेशों वाली कपास की मांग अधिक होती है। इसकी ज्यादा पैदावार तटीय इलाकों में होती है। आपको बता दें कि कपास का प्रयोग प्रमुख रूप से कपड़ा बनाने में किया जाता है, और इसके बीज से तेल भी निकाला जाता है।

कपास की खेती

चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में कपास की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

कपास की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

कपास की फसल लंबी अवधि वाली फसल है। इसकी खेती के लिए स्वच्छ, गर्म और शुष्क जलवायु अच्छी होती है। कपास के बीजों के अंकुरण के लिए आवश्यक तापमान 18 से 20 डिग्री सेल्सियस और पौधों के अच्छे विकास के लिए 20 से 27 डिग्री सेल्सियस होता है। कपास के लिए न्यूनतम और अधिकतम तापमान 15 से 35 डिग्री सेल्सियस और आर्द्रता 75 प्रतिशत से कम होनी चाहिए।

कपास के लिए उपयुक्त मिट्टी

सही मिट्टी का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कपास की फसल लगभग छह महीने तक खेत में रहती है। कपास की खेती के लिए काली, मध्यम से गहरी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का चयन करें। कपास को उथली, हल्की खारी और दोमट मिट्टी में लगाने से बचें। पोषक तत्वों की उपलब्धता और मिट्टी की सतह के बीच संबंध के कारण मिट्टी की सतह लगभग 6 से 8.5 होनी चाहिए।

कपास की खेती कब करें?

कपास खरीफ की फसल है। इसकी बुवाई मुख्य रूप से अप्रैल-मई में की जाती है। आपको बता दें कि इसकी बुवाई समय पर करना ज़रूरी होता है। देर से बिजाई करने पर बारिश या कीटों और बीमारियों के प्रकोप के कारण नुकसान हो सकता है।

कपास की खेती

कपास की विकसित किस्में

वर्तमान समय में बाजार में कपास की कई विकसित किस्मे मिलती है। रेशों के आधार पर इन्हे तीन भागो में बांटा गया है। 

छोटे रेशें वाली कपास 

इस किस्म के कपास की रेशें 3.5 सेंटीमीटर से भी कम लम्बे होते है। यह उत्तर भारत में अधिक उगाई जाने वाली किस्म है यह असम, हरियाणा, राजस्थान, त्रिपुरा, मणिपुर, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मेघालय में अधिक उगाई जाती है। उत्पादन की बात करे तो कपास के कुल उत्पादन का 15% उत्पादन इस राज्यों से होता है।

कपास की खेती

मध्यम रेशें वाली कपास 

इस श्रेणी में आने वाले कपास के रेशों की लम्बाई 3.5 से 5 सेंटीमीटर के मध्य होती है। यह कपास की मिश्रित श्रेणी में आता है, इस तरह की किस्म का उत्पादन भारत के लगभग हर हिस्से में होता है। इस तरह के कपास का उत्पादन का लगभग 45% हिस्सा उत्पादित होता है।

बड़े रेशेदार कपास

कपास की श्रेणियों में इस कपास को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, इस कपास के रेशे की लम्बाई 5 सेंटीमीटर से अधिक होती है। यह रेशा उच्च कोटि के कपड़ो को तैयार करने में उपयोग होता है। यह किस्म भारत में दूसरे नंबर पर उगाई जाती है, तटीय हिस्सों में इसकी खेती को मुख्य रूप से किया जाता है, इसलिए यह समुद्री द्वीपीय कपास भी कहलाता है। कपास के कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 40% तक की होती है।

कपास की खेती में खरपतवार पर नियंत्रण

कपास की खेती में जब पौधों में फूल लगने वाले हो तब खरपतवार पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उस समय कई तरह के खरपतवार उग आते हैं, जिसमें कीटों के जन्म लेने की भी संभावना बढ़ जाती है। यही कीट पौधों में कई तरह की बीमारियां फैलाते हैं।

कपास की खेती

इसके लिए समय समय पर कपास के खेत की निराई गुड़ाई करते रहें। खेत में बीज लगाने के 25 दिन के बाद से ही निराई गुड़ाई शुरू कर दें। इससे पौधों के विकास में किसी तरह की रुकावट नहीं आती है, और पौधे अच्छे से विकसित होते हैं।

कपास के खेत में उवर्रक की सही मात्रा 

कपास की फसल में खाद एवं उर्वरको का प्रयोग जरूरी है नहीं तो उत्पादन मे कमी आ सकती है। खाद एवं उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए यदि मृदा में कार्बनिक तत्वों की कमी हो तो उनकी पूर्ति करे। खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई में कुछ मात्रा गोबर की खाद सड़ी खाद में मिलाकर प्रयोग करना है।

यदि बीज संकर बीटी कपास के हैं, तो उसमें जिंक सल्फेट की पर्याप्त मात्रा को मिलाकर खेत में छिड़काव करें। वहीं अमेरिकन किस्म के कपास में फास्फोरस, डीएपी और सल्फर की पर्याप्त मात्रा का छिड़काव करने से अच्छी पैदावार होती है।

कपास की सिंचाई का तरीका 

कपास की खेती में बहुत ही कम पानी की जरूरत होती है। यदि फसल बारिश के मौसम में की गयी है तो इसे पहली सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, और यदि खेती बारिश के मौसम में नहीं की गयी है तो 45 दिन के बाद सिंचाई करें।

कपास के पौधे अधिक धूप में अच्छे से विकसित होते हैं, इसलिए पहली सिंचाई करने के बाद जरूरत पड़ने पर ही इसकी सिंचाई करनी चाहिए। हालांकि पौधों में फूल लगने के वक़्त खेत में नमी की उचित मात्रा बनी रहनी चाहिए, जिससे पौधों के फूल झड़ें नहीं। लेकिन अधिक पानी देने से भी फूलों के ख़राब होने का खतरा हो सकता है।

FAQ

कपास बोने का सही समय क्या है?

कपास खरीफ की फसल है। इसकी बुवाई मुख्य रूप से अप्रैल-मई में की जाती है।

कपास की तैयार होने में कितना समय लगता है?

कपास की फसल सामान्यतः 160 से 180 दिन की अवधि में तैयार होती है।

कपास की खेती कहां की जाती है?

सबसे ज़्यादा कपास महाराष्ट्र व गुजरात में उगाया जाता है। इसके साथ ही पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भी कपास की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

खेती से संबंधित और भी ब्लॉग पढ़ने के लिए किसान साथी ग्रामिक दिये गये लिंक पर क्लिक करें –
गन्ने की खेती
शिमला मिर्च की खेती
काले टमाटर की खेती
बेबी कॉर्न की खेती

https://shop.gramik.in/

About the author

Gramik

Leave a Comment