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आधुनिकता की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाते हुए कृषि क्षेत्र में भी नये प्रयोगों का दौर जारी है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर ने चुकंदर और पशुओं के चारे से इथेनॉल बनाने की तैयारी कर ली है। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान की निदेशक, डॉ. सीमा परोहा ने मीडिया से बात चीत में कहा कि उन्हें गन्ना एवं कृषि विभाग से बीजों की जांच के लिए प्राप्त होते हैं, जिन्हें विशेष तापमान में रखकर परखा जाता है।
उन्होंने बताया कि चुकंदर की जांच में उच्च मात्रा में एल्कोहल पाया गया है, जिससे इथेनॉल का उत्पादन संभव है। गन्ने के मुकाबले, चुकंदर से ज्यादा इथेनॉल बनाया जा सकता है। आपको बता दें कि वर्तमान में, मक्का और गन्ने से इथेनॉल तैयार किया जा रहा है, जबकि अब चुकंदर और पशुओं के चारे से भी इसका उत्पादन संभव हो सकेगा।
चीनी मिलों में डिफ्यूजर की आवश्यकता
चुकंदर की खेती अब किसानों के लिए दोगुना लाभकारी फसल बनने जा रही है। चीनी मिलों में चुकंदर की मांग बढ़ने के कारण इसकी खेती में पानी की कम खपत और शीघ्र पैदावार से किसान अधिक लाभ कमा सकेंगे। इसमें खाद की कम आवश्यकता होती है। इसके अलावा चुकंदर की हरी पत्तियां जानवरों को बहुत पसंद आती हैं।
हालांकि, इसके लिए चीनी मिलों में डिफ्यूजर लगाने की आवश्यकता होगी, जो महंगा होता है। संस्थान ने इसकी रिपोर्ट केंद्र और राज्य सरकार को सौंप दी है। यूरोप और जर्मनी जैसे देशों में चुकंदर से चीनी और इसके वेस्ट प्रोडक्ट से इथेनॉल का उत्पादन होता है। जल्द ही हम भी इस तकनीक का उपयोग कर किसानों की आय में वृद्धि करेंगे।
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चुकंदर की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय
उत्तर प्रदेश के कई किसान आज चुकंदर की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। बाराबंकी जिले के सहेलियां गांव के किसान प्रदीप कुमार ने चार साल पहले गाजर और चुकंदर की खेती शुरू की थी, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ। वर्तमान में, वह लगभग 3 बीघे में चुकंदर की खेती कर रहे हैं और प्रतिवर्ष 2 से 3 लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं। उनकी इस सफलता को देखकर गांव के अन्य किसान भी चुकंदर की खेती करने लगे हैं।
3 महीने में 3 लाख की कमाई
किसान प्रदीप कुमार ने बताया कि पहले वे पारंपरिक खेती करते थे, जिससे कोई मुनाफा नहीं हो रहा था। आज 3 बीघे में चुकंदर की खेती से 2 से 3 लाख रुपये का मुनाफा हो रहा है। इस खेती में लागत करीब 5 से 6 हजार रुपए आती है, जिसमें बीज और जुताई का खर्च शामिल है। यदि बाजार में अच्छा भाव मिल जाए तो मुनाफा और भी बढ़ सकता है। चुकंदर का छिलका पशुओं के लिए अत्यंत लाभदायक होता है और एक अच्छा चारा साबित होता है।
चुकंदर की खेती के तरीके
आपको बता दें कि चुकंदर की बुवाई से पहले खेत की कई बार जुताई की जाती है। फिर 4 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद डाली जाती है और जमीन को समतल किया जाता है। गर्मी के मौसम में चुकंदर की खेती के लिए सबसे पहले बेहतर किस्म का चुनाव करें। चुकंदर एक कंदवर्गीय फसल है, इसलिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई की जाती है और जरूरत के हिसाब से सिंचाई भी करनी पड़ती है। बुवाई के 120 दिन बाद फसल तैयार हो जाती है।
FAQ
चुकंदर की खेती के लिए ठंडी और शीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। तापमान 15-25 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। गर्मियों में बहुत अधिक तापमान से बचना चाहिए।
चुकंदर की बुवाई के लिए अक्टूबर-नवंबर का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इससे फसल को ठंडे मौसम का लाभ मिलता है और अच्छी उपज मिलती है।
चुकंदर की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 6-7 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में अच्छी जल निकासी होनी चाहिए।
चुकंदर की खेती में लगभग 6-8 सिंचाई की आवश्यकता होती है। बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें और फिर 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
चुकंदर की खेती में प्रमुख कीट जैसे एफिड, कटवर्म और सफेद मक्खी होते हैं। प्रमुख रोगों में पाउडरी मिल्ड्यू, डाउनी मिल्ड्यू और रूट रॉट शामिल हैं।
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