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किसान साथियों, अगर हम आपसे ये कहें कि आपको अब अगली फसल की बुआई के लिए खेत ना तो जोतने की जरूरत है और ना ही इसे अलग से तैयार करने में लागत लगानी पड़ेगी, तो आपको कैसा लगेगा? आज के इस ब्लॉग में हम आपको खेती की एक ऐसी तकनीक के बारे में विस्तार से बताएंगे जो ना सिर्फ आपकी अगली खेती किफायती बनाने में मदद करेगी बल्कि अच्छा खासा मुनाफा भी दिला सकती है। तो चलिए आज जानते हैं जीरो टिलेज फार्मिंग के बारे में।
क्या है जीरो टिलेज फार्मिंग?
जीरो टिलेज फार्मिंग या नो-टिल फार्मिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें बिना जुताई के या बगैर खेत तैयार किए ही बुआई की जाती है। इस तकनीक में किसान बीज को ड्रिलिंग की मदद से सीधे मिट्टी के अंदर रोप देते हैं।
इसके लिए खास मशीनें आती हैं जो ट्रैक्टर में लगाकर बीज को खेत में बिना जुताई किए ही बो देती हैं। इस तकनीक का उपयोग पारंपरिक टिलिंग फार्मिंग से अलग और किफायती है, लेकिन यह सभी प्रकार की फसलों के लिए नहीं है। इससे खेत तैयार करने में लगने वाला पानी, जुताई का खर्चा और समय भी बहुत बच जाता है।
जीरो टिलेज फार्मिंग की जरूरत
भारत में जीरो टिलेज फार्मिंग 1960 के दशक से ही शुरू हो गई थी, लेकिन इसका विस्तार पर्याप्त रूप से नहीं हुआ। हरित क्रांति के दौरान उत्तर-पश्चिमी भारत में गेहूं और चावल का बेतहाशा उत्पादन हुआ, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आई। रसायनयुक्त खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी के पोषक तत्व कम हो गए और भूमि का क्षरण होने लगा।
इन समस्याओं के समाधान के लिए नो-टिल खेती का विकास किया गया। जीरो टिलेज पद्धति से गेहूं, सरसों, तिल और फलियां जैसी फसलों की बुआई की जा सकती है। यह तकनीक ढलान वाले खेतों या रेतीली मिट्टी वाले क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव को कम करने में मददगार है।
बिना जुताई वाली खेती के फायदे
जीरो टिलेज फार्मिंग के कई फायदे हैं:
- लागत में कमी: यह खेती की लागत को कम करती है और किसानों के पैसे बचाती है।
- मिट्टी की नमी बचती है: इससे मिट्टी की नमी बचाने में मदद मिलती है और खेत तैयार करने के लिए अलग से सिंचाई की जरूरत नहीं होती।
- मिट्टी का कटाव कम होता है: नो-टिलिंग तकनीक से मिट्टी का कटाव कम करने में मदद मिलती है।
- पोषक तत्व संरक्षित रहते हैं: मिट्टी की बार-बार जुताई ना होने के कारण उसके अंदर के पोषक तत्व भी बचे रहते हैं और कार्बन तत्वों की क्रिया भी नहीं टूटती।
- जैविक स्वास्थ्य में सुधार: जीरो टिलेज की वजह से मिट्टी में रहने वाले जीव, जैसे केंचुए और अन्य मित्र-बैक्टीरिया भी जिंदा रहते हैं, जिससे फसल की सेहत बढ़ती है।
जीरो टिलेज खेती के कुछ नुकसान
हालांकि जीरो टिलेज फार्मिंग के कई फायदे हैं, इसके कुछ नुकसान भी हैं:
- शुरुआती लागत अधिक: बिना जुताई के फसल बोने के लिए अलग से मशीन की जरूरत होती है, जिसकी शुरुआती लागत अधिक होती है।
- खरपतवार की वृद्धि: खेत की जुताई नहीं होने के कारण खरपतवार भी बढ़ने लगती है, जिससे निपटने के लिए नियमित रूप से दवाओं का छिड़काव करना पड़ता है।
- रोगों की संभावना: इस तरह की खेती पद्धति से पौधों में रोग फैलने की संभावना थोड़ी ज्यादा रहती है।
- पानी की नालियों की देखभाल: लंबे समय तक खेत की जुताई ना होने के कारण पानी की नालियों को लगातार संवारना पड़ता है।
जीरो टिलेज फार्मिंग कैसे करें?
शून्य जुताई तकनीक का मकसद मिट्टी की मूल संरचना को कम से कम बिगाड़ते हुए फसल की बुआई करना है। इसके लिए कुछ विशेष उपकरणों की मदद से मिट्टी में खांचे बनाए जाते हैं और उनमें तुरंत बीज बो कर ढक दिया जाता है। जीरो टिलेज तकनीक के लिए जिन मशीनों की जरूरत होती है उनमें सीडर मशीन, ड्रिलर, डिस्क हल, डिस्क हैरो और रोटावेटर शामिल हैं।
भारत में बिना जुताई की खेती की स्थिति
भारत में गंगा के मैदानों में जहां गेहूं और चावल की खेती की जाती है, वहां जीरो टिलेज खेती प्रचलित है। आंध्र प्रदेश के दक्षिणी जिलों में भी इस तकनीक का उपयोग चावल और मक्का की फसल में किया जाता है। बिना जुताई की खेती खरीफ की फसलें जैसे धान, मक्का, सोयाबीन, कपास, अरहर, मूंग और बाजरा के लिए भी मुनासिब है।
इसके अलावा, रबी की फसलें जैसे गेहूं, चना, सरसों और मसूर के लिए भी यह तकनीक कारगर है। देशभर में जीरो टिलेज खेती के लिए कई तरह के उपकरण उपलब्ध हैं जिन पर राज्य एवं केंद्र सरकार उचित सब्सिडी भी देती है।
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खेती की एक अन्य आधुनिक तकनीक नेचुरल ग्रीन हाउस के बारे में जानने के लिए ये ब्लॉग पढ़ें।
FAQ
जीरो टिलेज फार्मिंग एक कृषि पद्धति है जिसमें भूमि की जुताई नहीं की जाती है। इसके बजाय, फसल अवशेषों को मिट्टी के ऊपर ही छोड़ दिया जाता है और बीज सीधे मिट्टी में बो दिए जाते हैं।
जीरो टिलेज फार्मिंग के कई लाभ हैं, जैसे मिट्टी के अपरदन में कमी, पानी की बचत, ईंधन और श्रम की बचत, जैविक सामग्री और मिट्टी की संरचना में सुधार आदि।
जीरो टिलेज फार्मिंग के लिए सीड ड्रिल मशीन की आवश्यकता होती है जो सीधे बिना जुताई की मिट्टी में बीज बो सकती है। इसके अलावा, खरपतवार नियंत्रण के लिए हर्बिसाइड का उपयोग किया जा सकता है।
लगभग सभी फसलें जीरो टिलेज पद्धति से उगाई जा सकती हैं। मुख्यतः गेहूं, मक्का, सोयाबीन, धान, और दालें आदि फसलें इस पद्धति से उगाई जाती हैं।
जीरो टिलेज फार्मिंग ज़्यादातर मिट्टी के लिए उपयुक्त होती है। हालांकि, अधिक रेतीली या भारी मिट्टी में ये तकनीक कम प्रभावी हो सकती है।
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