आगामी मौसम में धान की पराली जलाने पर प्रभावी नियंत्रण के लिए, माननीय मंत्री ने निर्देश दिया कि राज्यों को सूक्ष्म स्तर पर एक व्यापक कार्य योजना बनानी चाहिए और मशीनों के प्रभावी इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए तंत्र स्थापित करने के साथ ही सीआरएम मशीनों के साथ बायो-डीकंपोजर के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। इसके अलावा बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों, बायोएथनॉल संयंत्रों आदि जैसे आसपास के उद्योगों की मांग के आधार पर पराली का बाहरी उपयोग भी कर सकते हैं।किसानों को जागरूक करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक/प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया के साथ-साथ किसान मेलों, प्रकाशनों, संगोष्ठियों, सलाह के माध्यम से किसानों के बीच जन जागरूकता के लिए आईईसी गतिविधियां की जाएं।
गेहूं की कटाई के बाद इस बार पराली जलाने से रोकने के लिए सरकार अभी से तैयारी में है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की राज्य सरकारों से निकट भविष्य में पराली जलाने पर पूरी तरह अंकुश लगाने के लिए प्रयास करने की बात की गई है।
पराली से निपटने के लिए क्या है तैयारी
यह बताया गया कि 2022-23 के दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में 700 करोड़ रुपये परिव्यय के साथ कृषि एवं किसान कल्याण विभाग फसल अवशेषों के उसी स्थान पर प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा देते हुए केंद्रीय क्षेत्र की योजना का कार्यान्वयन जारी रखे हुए हैं।
अब तक 240 करोड़, 191.53 करोड़, 154.29 करोड़ और 14.18 करोड़ रुपये पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और आईसीएआर को पहली किस्त के रूप में जारी हो चूका है। चालू वित्त वर्ष के दौरान, इन राज्यों में बड़े पैमाने पर बायो-डीकंपोजर तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के प्रावधान भी किए गए हैं।
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलने के कारण दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ने वाले वायु प्रदूषण को कम करने और फसल के अवशेषों का उसी स्थान पर प्रबंधन करने के लिए सब्सिडी के साथ आवश्यक मशीनरी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह योजना 2018-19 में शुरू की गई थी। इस योजना के तहत फसल अवशेष प्रबंधन वाली मशीनों की खरीद के लिए व्यक्तिगत रूप से किसानों को मूल्य के 50 फीसदी के दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और परियोजना लागत का 80 फीसदी किसानों, पीएफओ और पंचायतों की सहकारी समितियों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना के लिए दिया जाता है। राज्यों और आईसीएआर को किसानों और अन्य हितधारकों को जागरूक करने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियां करने के लिए धनराशि उपलब्ध कराई जाती है।
यह योजना सुपर स्ट्रॉ प्रबंधन प्रणाली, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, मल्चर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, हाइड्रॉलिकली रिवर्सिबल मोल्ड बोर्ड हल, क्रॉप रीपर और रीपर बाइंडर जैसी मशीनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देती है, जिससे फसल अवशेषों का उसी जगह पर प्रबंधन किया जा सके। इसके साथ ही पराली की गांठों को इकट्ठा करने के लिए बेलर्स एवं रेक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाता है। योजना के तहत ‘स्मार्ट सीडर’ मशीन को भी शामिल किया गया है।
2018-19 से 2021-22 की अवधि के दौरान 2440.07 करोड़ रुपये जारी हो चूका है (हरियाणा- 693.25 करोड़, उत्तर प्रदेश- 533.67 करोड़, दिल्ली- 4.52 करोड़, आईसीएआर और अन्य केंद्रीय एजेंसियां- 61.01 करोड़ और सबसे बड़ा हिस्सा पंजाब राज्य को 1147.62 करोड़ रुपये दिया गया है)।
इन धनराशियों में से पिछले 4 वर्षों के दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की राज्य सरकारों ने छोटे और सीमांत किसानों को किराये पर मशीनें और उपकरण उपलब्ध कराने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी के 38422 से ज्यादा कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए हैं (पंजाब- 24201, हरियाणा- 6775 और उत्तर प्रदेश- 7446)। इन सीएचसी और चार राज्यों के किसानों को व्यक्तिगत रूप से कुल 2.07 लाख से ज्यादा फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों की आपूर्ति की गई है (पंजाब-89151, हरियाणा-59107, यूपी- 58708 और दिल्ली-247), इसमें 3243 से अधिक बेलर्स एवं रेक भी शामिल हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा विकसित पूसा डीकंपोजर को धान की पुआल को उसी स्थान पर तेजी से गलाने में प्रभावी पाया गया है। यह कैप्सूल रूप में भी उपलब्ध है। साल 2021 के दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में लगभग 5.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में डीकंपोजर का इस्तेमाल किया गया, जो लगभग 35 लाख टन पराली का प्रबंधन करने के बराबर है। सैटलाइट इमेजिंग और निगरानी के जरिए पाया गया कि 92 प्रतिशत क्षेत्र में डीकंपोजर के जरिए पराली का निपटारा किया गया जबकि केवल 8 फीसदी हिस्से में पराली जलाई गई।
आगामी मौसम में धान की पराली जलाने पर प्रभावी नियंत्रण के लिए, माननीय मंत्री ने निर्देश दिया कि राज्यों को सूक्ष्म स्तर पर एक व्यापक कार्य योजना बनानी चाहिए और मशीनों के प्रभावी इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए तंत्र स्थापित करने के साथ ही सीआरएम मशीनों के साथ बायो-डीकंपोजर के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। इसके अलावा बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों, बायोएथनॉल संयंत्रों आदि जैसे आसपास के उद्योगों की मांग के आधार पर पराली का बाहरी उपयोग भी कर सकते हैं।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सभी हितधारकों को शामिल करते हुए इलेक्ट्रॉनिक/प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया के साथ-साथ किसान मेलों, प्रकाशनों, संगोष्ठियों, सलाह के माध्यम से किसानों के बीच जन जागरूकता के लिए आईईसी गतिविधियां की जाएं। अगर राज्य स्तर पर समग्र रूप से सभी कदम उठाए जाते हैं तो आने वाले सीजन के दौरान पराली जलाने पर प्रभावी ढंग से काबू पाया जा सकता है।
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