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मूंगफली की खेती भारतीय किसानों के बीच एक लोकप्रिय और लाभदायक खेती है। यह एक प्रमुख तिलहनी फसल है जो मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में उगाई जाती है। मूंगफली की खेती न केवल कृषि अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह किसानों के लिए भी एक स्थायी आजीविका का स्रोत बन सकती है। इसके लिए किसानों को उन्नत कृषि तकनीकों जैसे- खेती की प्रक्रिया, कीट व रोग प्रबंधन, उचित सिंचाई आदि के बारे में जागरूक होना ज़रूरी है।
चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में मूंगफली की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व मिट्टी
मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का होना अत्यंत आवश्यक है। मूंगफली गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह से उगती है। इसे 20-30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है और 500-1000 मिमी वार्षिक वर्षा वाली क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छी होती है। मूंगफली की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है क्योंकि इसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था होती है और जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
मिट्टी की तैयारी
मूंगफली की खेती की शुरुआत मिट्टी की तैयारी से होती है। खेत की गहरी जुताई कर उसमें मौजूद खरपतवारों और पिछली फसल के अवशेषों को निकाल दिया जाता है। इसके बाद, खेत में 4-5 बार हल्की जुताई की जाती है ताकि मिट्टी की संरचना ठीक हो सके और इसे समतल बनाया जा सके। बुवाई के पहले खेत में उचित मात्रा में जैविक खाद मिलाई जाती है, जिससे मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है।
बुवाई का सही समय व विधि
मूंगफली की बुवाई का सही समय और विधि भी इसके उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। खरीफ फसल के लिए मूंगफली की बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक की जाती है, जबकि रबी फसल के लिए अक्टूबर से नवंबर तक बुवाई की जाती है। बुवाई के समय बीज की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके लिए रोगमुक्त बीजों का चयन करें, और बुवाई के पहले बीजों को फफूंदनाशक व जीवाणुनाशक से उपचारित कर लें, जिससे बीज जनित रोगों से बचाव हो सके।
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मूंगफली की बुवाई कतारों में की जाती है और कतारों के बीच की दूरी 30-45 सेंटीमीटर तथा पौधों के बीच की दूरी 10-15 सेंटीमीटर रखी जाती है। इससे पौधों को पर्याप्त स्थान मिलता है और उनकी जड़ें अच्छी तरह से फैल पाती हैं। बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए ताकि बीजों को अंकुरित होने के लिए पर्याप्त नमी मिल सके।
मूंगफली की फसल में सिंचाई
मूंगफली की खेती में सिंचाई का भी महत्वपूर्ण स्थान है। बुवाई के बाद पहली सिंचाई आवश्यक होती है। इसके बाद फसल की वृद्धि के विभिन्न चरणों पर नियमित अंतराल पर सिंचाई की जाती है। फूल आने और फल बनने के समय पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि इस समय पौधों को अधिक नमी की आवश्यकता होती है। कुल मिलाकर, मूंगफली की फसल को 4-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है, लेकिन सिंचाई की संख्या मौसम और मिट्टी की नमी की स्थिति पर निर्भर करती है।
मूंगफली की खेती में खरपतवार प्रबंधन
मूंगफली की फसल में खरपतवार प्रबंधन भी आवश्यक है क्योंकि खरपतवार फसल की वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की तैयारी के समय उचित जुताई और निराई-गुड़ाई की जाती है। रासायनिक खरपतवारनाशकों का भी उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक और अनुशंसित मात्रा में ही करना चाहिए।
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मूंगफली की फसल में कीट व रोग प्रबंधन
मूंगफली की फसल को कई कीट और रोगों से खतरा होता है, जिनसे बचाव के लिए समय पर उचित प्रबंधन आवश्यक है। चलिए इन कीटों व रोगों के नियंत्रण के बारे में जानते हैं।
सफेद मक्खी (Whitefly)
यह कीट पौधों के पत्तों का रस चूसता है, जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधों की वृद्धि रुक जाती है। इसे नियंत्रित करने के लिए नीम के तेल का छिड़काव किया जा सकता है।
थ्रिप्स (Thrips)
यह कीट पत्तियों पर सफेद धब्बे बनाता है और पत्तियां मुड़ जाती हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए अनुशंसित कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
लाल मकड़ी (Red Spider Mite)
यह कीट पत्तियों के नीचे की ओर जाल बुनता है और रस चूसता है, जिससे पत्तियां सूख जाती हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए सल्फर आधारित कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है।
तना गलन (Stem Rot)
यह एक फफूंद जनित रोग है जो तनों और जड़ों को प्रभावित करता है। इसे नियंत्रित करने के लिए खेत की अच्छी जल निकासी व्यवस्था होनी चाहिए और फफूंदनाशक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
तुषार झुलसा (Leaf Spot)
यह रोग पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे बनाता है जो बाद में बढ़कर बड़े धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए तांबा आधारित फफूंदनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
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मूंगफली की कटाई
मूंगफली की फसल की कटाई और गहाई भी एक महत्वपूर्ण चरण है। कटाई का सही समय तब होता है जब पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और अधिकांश फल पक चुके होते हैं। मूंगफली की कटाई हाथ से या मशीनों की सहायता से की जा सकती है। कटाई के बाद पौधों को कुछ दिनों तक धूप में सुखाया जाता है ताकि फलों में नमी की मात्रा कम हो जाए। इसके बाद, मूंगफली के फल पौधों से अलग कर लिए जाते हैं, फिर उनका भंडारण किया जाता है।
उपज बढ़ाने के उपाय
मूंगफली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए किसानों को फसल की देखभाल में निरंतरता रखनी चाहिए और समय-समय पर कृषि वैज्ञानिकों से परामर्श लेना चाहिए। उन्नत कृषि तकनीकों और उचित प्रबंधन के साथ मूंगफली की खेती से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है।
दलहनी फसलों की खेती के बारे में उपयोगी जानकारी के लिए ग्रामिक पर ये ब्लॉग्स पढ़ें।
FAQ
मूंगफली की खेती का सही समय गर्मी के मौसम में होता है, विशेष रूप से अप्रैल से जून के बीच।
मूंगफली की खेती के लिए हल्की रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो।
मूंगफली की खेती में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश युक्त उर्वरक उपयोगी होते हैं। जैविक खाद का प्रयोग भी लाभकारी होता है।
मूंगफली की खेती में सिंचाई की आवश्यकता होती है, विशेषकर बीज बोने के बाद और फसल के विकास के दौरान। सामान्यतः 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
मूंगफली की फसल में तना गलन, पत्ता धब्बा, और जड़ गलन जैसे रोग हो सकते हैं। इसके अलावा, सफेद मक्खी और जैसिड जैसे कीट भी प्रभावित कर सकते हैं।
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