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राजमा एक दलहनी फसल है, जिसकी कच्ची फलियों को सब्जी में डालकर प्रयोग किया जाता है, और पकने के बाद इसे दाल के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। राजमा के पौधों को विकास करने के लिए सहारे की जरूरत पड़ती है, क्योकि इसके पौधे लताओं के रूप में बढ़ते है। भारत में राजमा की खेती की बात करें उत्तर, दक्षिण और पूर्वी राज्यों में इसे प्रमुखता से उगाया जाता है। वहीं इसकी खासियत ये भी है कि राजमा की खेती रबी और खरीफ दोनों समय में की जा सकती है।
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चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में राजमा की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं!
राजमा की खेती के लिए उपयुक्त भूमि व जलवायु
राजमा की खेती के लिए के लिए उपयुक्त मिट्टी की बात करें तो इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। वहीं इस फसल के लिए उपयुक्त P.H. मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए, वहीं जलवायु आद्र और शुष्क होना चाहिए। राजमा के पौधों के उचित विकास के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है। ज्यादा गर्म व सर्द जलवायु इसके पौधों के लिए हानिकारक होती है। अंकुरण के समय 20 से 25 तापमान और अंकुरण के बाद 10 से 30 डिग्री तापमान फसल के लिए उपयुक्त होता है।
खेत की तैयारी व उवर्रक
राजमा की खेती के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करें। इससे पुरानी फसल के अवशेष खेत से खत्म हो जाएंगे। जुताई के कछ समय बाद खेत में 10 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डालें, फिर दो से तीन तिरछी जुताई करें। खाद डालने के बाद उसमे पानी लगाकर पलेव कर दें, फिर जब मिट्टी सूखने लगे तो उसमे रोटावेटर चलायें। इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी। अब पाटा लगाकर भूमि को समतल कर लें। इस तरह आपाक खेत राजमा की खेती के लिए तैयार हो जाएगा।
राजमा की बुवाई का सही समय और तरीका
राजमा के बीजो की रोपाई के लिए सबसे अच्छा तरीका ड्रिल विधि है। इसके बीजो की रोपाई पंक्तियों में की जाती है, इसलिए पहले खेत में एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी पर पंक्तियाँ बना लें। इसके बाद 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी पर बीजो की बुवाई करें। राजमा के बीजो की रोपाई से पहले उन्हें कार्बेन्डाजिम या गोमूत्र से उपचारित करने पर इसमें रोग लगने की संभावनाएँ कम रहेंगी।
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राजमा के पौधों की सिंचाई
राजमा के पौधों की पहली सिंचाई को बीज बोने के लगभग 20 से 25 दिन बाद करें। इस फसल को बाद में सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं होती है, लेकिन यदि आपने राजमा की बुवाई सूखी भूमि में की है, वे खेत में नमी बनाये रखने के लिए बुवाई से लेकर बीजो के अंकुरण तक हल्की सिंचाई करते रहें। राजमा की फसल में कुल 4-5 सिंचाई पर्याप्त होती है।
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राजमा की खेती में खरपतवार की रोकथाम
राजमा की खेती में खरपतवार की रोकथाम के लिए रासायनिक व प्राकृतिक दोनों विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। रासायनिक विधि से खरपतवार खत्म करने के लिए बुवाई के तुरंत बाद विशेषज्ञ द्वारा सुझाई गई मात्रा में पेन्डीमेथलीन का छिड़काव करें। वहीं प्राकृतिक विधि द्वारा खरपतवार की रोकथाम करने के लिए आप समय समय पर खेत में निराई – गुड़ाई करते हैं।
राजमा की फसल में लगने वाले रोग
राजमा के पौधों में कई तरह के रोग लगने की संभावना होती है, जो पौधों के विकास व उपज दोनों के लिए हानिकारक होता है। तना गलन रोग, फली छेदक के अलावा भी पौधों में कई तरह के रोग पाए जाते है, जैसे – माहू, कोणीय धब्बा आदि।
राज़मा की फसल की कटाई
राजमा के पौधों को तैयार होने में तक़रीबन 120 से 130 का समय लग जाता है, इसके बाद जब इसकी पत्तियां पीले रंग की हो जाएँ, तो इसके पौधों को भूमि के पास से काट लें। पौधों की कटाई के बाद उन्हें अच्छी तरह से धूप में सुखकर बीजों को निकाल लें। किसान साथी एक हेक्टेयर के खेत में औसत 25 क्विंटल की पैदावार प्राप्त कर सकते है।
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FAQ
भारत में राजमा की खेती अलग-अलग क्षेत्रों की जलवायु के हिसाब से की जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी खेती को खरीफ में होती है, वहीं उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में इसकी रोपाई नवंबर में होती है।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु भारत के मुख्य राजमा उत्पादक राज्य हैं।
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