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सरसों एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से खाद्य तेल के रूप में किया जाता है। हालांकि यह फसल कीटों और रोगों से प्रभावित होती है, जिससे इसकी पैदावार में भारी गिरावट आती है।
यदि इन कीटों का सही समय पर नियंत्रण किया जाए, तो सरसों की उपज में वृद्धि हो सकती है। तो चलिए इस लेख में जानते हैं सरसों की खेती कुछ प्रमुख कीटों और उनके नियंत्रण के उपाय, जिन्हें अपनाकर किसानों को लाभ हो सकता है।
1. माहू कीट
माहू कीट छोटे आकार के, सफेद-हरे रंग के होते हैं और इनकी पीठ पर दो नलिकाकार संरचनाएँ होती हैं। यह कीट आमतौर पर पौधों के पत्तों, तनों, पुष्पों और फलियों पर समूह बनाकर रहते हैं और रस चूसने के लिए अपने चूसक अंग का उपयोग करते हैं।
इनकी गतिविधि से पौधे कमजोर हो जाते हैं, जिससे पत्तियाँ पीली व बदरंग हो जाती हैं और फलियों की संख्या में कमी आ जाती है। इसके परिणामस्वरूप दाने छोटे और कम हो जाते हैं, और ये कीट पौधों से मीठा रस भी छोड़ते हैं, जिससे काले फफूंद का विकास होता है, जो प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बाधित करता है।
इसकी रोकथाम के लिए किसानों को नाइट्रोजन उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह माहू कीटों के विकास को बढ़ावा देता है। साथ ही खेत का नियमित निरीक्षण करना चाहिए, क्योंकि यह कीट सबसे पहले खेत की किनारी पर फैलते हैं।
यदि माहू कीटों की संख्या 10% पौधों में 26-28 प्रति 10 सेंटीमीटर तक पहुँच जाए, तो फसल पर ऑक्सी-डेमेटन मिथाइल या डाइमेथोएट जैसे कीटनाशकों का 2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें। इसके अलावा प्राकृतिक मित्र कीटों जैसे लेडीबर्ड बीटल, सिरफिड्स और क्राइसोपरला की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि ये कीटों की संख्या को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
2. चितकबरा बग
चितकबरा बग का शरीर ढाल के आकार का होता है और इसका रंग काले और लाल के मिश्रण में होता है। यह कीट पौधों से रस चूसकर उन्हें कमजोर करता है। इसके चूसने की प्रक्रिया से पौधों के विकास में रुकावट आ जाती है, और विशेष रूप से जब यह कीट पौधों के शुरुआती विकास के दौरान हमला करते हैं, तो पौधे मुरझा जाते हैं और सूखने लगते हैं। इसके अलावा, यह कीट लारयुक्त पदार्थ छोड़ता है, जिससे फलियों में सड़न और खराबी उत्पन्न होती है।
इसकी रोकथाम के लिए किसानों को गहरी जुताई करनी चाहिए, क्योंकि चितकबरा बग के अंडे जमीन में होते हैं और गहरी जुताई से इन अंडों को नष्ट किया जा सकता है। इसके साथ ही जल्दी बुआई करना फसल को जल्दी विकसित करने में मदद करता है, जिससे कीटों का हमला कम होता है।
बुआई के बाद सिंचाई का प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि चार सप्ताह तक नियमित सिंचाई से कीटों का प्रकोप कम किया जा सकता है। यदि कीटों का हमला बढ़ जाता है, तो डाइमेथोएट 30 ईसी का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करके इस कीट की संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
3. लीफ माइनर और अन्य कीट
लीफ माइनर और अन्य कीटों का प्रकोप मुख्य रूप से सरसों की पत्तियों और तनों पर होता है। ये कीट पत्तियों के अंदर सुरंगें बना कर उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं, जिसके कारण पत्तियाँ मुरझा जाती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है। इस प्रकार, इन कीटों से पौधों को भारी नुकसान होता है, जिससे फसल की पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
इनकी रोकथाम के लिए पीले स्टिकी ट्रैप का प्रयोग किया जा सकता है। ये ट्रैप कीटों को आकर्षित करके उन्हें फंसा लेते हैं, जिससे उनकी संख्या नियंत्रित रहती है। इसके अलावा, क्राइसोपरला और सिरफिड्स जैसे प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण करना भी लाभकारी हो सकता है, क्योंकि ये कीटों को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।\
अन्य सामान्य उपाय
कीटों के नियंत्रण के लिए कुछ सामान्य उपाय भी हैं, जिन्हें अपनाकर फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है। सबसे पहले कटाई के बाद फसल के अवशेषों को जलाना चाहिए, क्योंकि यह अगले साल की फसल में कीटों के प्रकोप को कम करता है। इसके अलावा, सही समय पर फसल की कटाई करना जरूरी है, ताकि कीटों को पनपने का मौका न मिले।
सिंचाई का प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है। इसलिए फसल में ज्यादा पानी भरने से बचना चाहिए, क्योंकि यह कीटों के लिए एक उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है। सिंचाई को नियंत्रित करना और खेत को सही समय पर सूखा रखना कीटों के प्रकोप को कम करने में मदद करता है।
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