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सूरजमुखी का नाम “हैलीएन्थस” है जो दो शब्दों से बना हुआ है। हैलीअस मतलब सूरज और एन्थस मतलब फूल। फूल, सूरज की दिशा होने में मुड़ जाने के कारण इसे सूरजमुखी कहा जाता है। यह देश की महत्तवपूर्ण तिलहनी फसल है। इसका तेल हल्के रंग, अच्छे स्वाद और इसमें उच्च मात्रा में लिनोलिक एसिड होता है, जो कि दिल के मरीज़ों के लिए अच्छा होता है। सूरजमुखी के बीज में खाने योग्य तेल की मात्रा 48-53 प्रतिशत होती है।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
- Jwalamukhi – यह दरमियाने कद की किस्म है। पौधे का कद 170 सैं.मी. है। फसल 120 दिनों में पक जाती है। इसकी औसत पैदावार 7.3 क्विंटल प्रति एकड़ है। तेल की मात्रा 42 प्रतिशत है।
- GKSFH 2002 – यह दरमियाने कद की दोगली किस्म है। फसल 115 दिनों में पक जाती है। इसकी औसत पैदावार 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है। तेल की मात्रा 42.5 प्रतिशत है।
- PSH 569 – पौधे का कद 141 सै.मी. है। फसल 98 दिनों में पक जाती है। यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए अनुकूल है। इसकी औसत पैदावार 7.44 क्विंटल प्रति एकड़ है और 36.3 प्रतिशत तेल होता है।
- PSH 996 – यह दरमियानी ऊंची 141 सै.मी. दोगली किस्म है। फसल 96 दिनों में पक जाती है। इसकी औसत पैदावार 7.8 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसके बीज में 35.8 प्रतिशत तेल होता है। यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए अनुकूल है।
दूसरे राज्यों की किस्में
किस्में : DRSF 108, PAC 1091, PAC-47, PAC-36, Sungene-85, Morden
हाइब्रिड: KBSH 44, APSH-11, MSFH-10, BSH-1, KBSH-1, TNAU-SUF-7, MSFH-8, MSFH-10, MLSFH-17, DRSH-1, Pro.Sun 09.
ज़मीन की तैयारी – सीड बैड तैयार करने के लिए दो से तीन बार जोताई करके सुहागा फेरें। अच्छी उपज के लिए बिजाई अंत जनवरी तक पूरी कर लें। बिजाई में देरी करने से, यदि बिजाई फरवरी के महीने में की गई हो तो रोपण विधि का प्रयोग करें, क्योंकि सीधी बिजाई करने से उपज में कमी आती है और देरी से बिजाई करने पर कीटों और बीमारियों का हमला बढ़ जाता है।
मिट्टी – इसे मिट्टी की कई किस्मों जैसे रेतली दोमट से काली मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह उपजाऊ और जल निकास वाली मिट्टी में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। यह फसल हल्की क्षारीय मिट्टी को भी सहनेयोग्य है। अम्लीय और जल जमाव वाली मिट्टी में इसकी खेती करने से परहेज़ करें। मिट्टी की पी एच लगभग 6.5-8 होनी चाहिए।
बिजाई :-
बिजाई का समय – अधिक पैदावार लेने के लिए फसल को जनवरी के आखिर तक लगा दें। यदि बिजाई फरवरी महीने में करनी हो तो पनीरी से करें क्योंकि इस समय सीधी बिजाई वाली फसल को कीड़े और बीमारियां ज्यादा लगती हैं।
फासला – दो पंक्तियों में 60 सै.मी. और दो पौधों के बीच में 30 सै.मी. की दूरी रखें।
बीज की गहराई – बीजों को 4-5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
बिजाई का ढंग – बिजाई गड्ढा खोदकर की जाती है। इसके इलावा बीजों को बिजाई वाली मशीन से बैड बनाकर या मेड़ बनाकर की जाती है।
देर से बीजने वाली फसल के लिए पनीरी का प्रयोग करें और 1 एकड़ खेत के लिए 30 वर्ग मीटर क्षेत्र की पनीरी का प्रयोग किया जाता है। 1.5 किलो एस एस पी डालें और बैडों को पलास्टिक की शीट हटा दें और 4 पत्तों वाले बूटों को खेत में लगाएं। पनीरी को उखाड़ने से पहले सिंचाई करें।
बीज :-
बीज की मात्रा – बिजाई के लिए 2-3 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज का प्रयोग करें। हाइब्रिड के लिए 2-2.5 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
बीज का उपचार – बिजाई से पहले बीज को 24 घंटों के लिए पानी में डालें। फिर छांव में सुखाएं और 2 ग्राम प्रति किलो थीरम से उपचार करें। इससे बीज को मिट्टी के कीड़ों और बीमारियों से बचाया जा सकता है। फसल को पीले धब्बों के रोगों से बचाने के लिए बीज को मैटालैक्सिल 6 ग्राम या इमीडाक्लोपरिड 5-6 मि.ली. प्रति किलो बीज से उपचार करें।
खाद – बिजाई से 2-3 सप्ताह पहले 4-5 टन रूड़ी की खाद डालें। ज़मीन में 24 किलो नाइट्रोजन (50 किलो यूरिया) 12 किलो फासफोरस (75 किलो एस एस पी) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। सही मात्रा में खाद डालने के लिए मिट्टी की जांच करवाएं। आधी नाइट्रोजन, पूरी फासफोरस और पोटाश बिजाई के समय और बाकी नाइट्रोजन बिजाई से 30 दिनों के बाद डालें। सिंचित क्षेत्रों में बाकी नाइट्रोजन को दो भागों में बिजाई से 30 दिनों बाद डालें।
WSF– फसल की वृद्धि के लिए 19:19:19 की 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे 5-6 पत्ते आने पर और 8 दिनों के फासले पर दो बार करें। फूल खिलने के समय 2 ग्राम प्रति ली. बोरोन की स्प्रे करें।
खरपतवार नियंत्रण
सूरजमुखी के पौधे को पहले 45 दिन नदीन मुक्त रखें और गंभीर अवस्थाओं में फसल पर सिंचाई करें। बिजाई के 2-3 सप्ताह बाद पहली गोडाई और 6 सप्ताह बाद दूसरी गोडाई करें। नदीनों को रोकने के लिए पैंडीमैथालीन 1 ली. को 150-200 ली. पानी में फसल के उगने से पहले बिजाई के 2-3 दिनों में स्प्रे करें। फसल को गिरने से बचाने के लिए 60-70 सै.मी. लंबे बूटों की जड़ों को फूल निकलने से पहले मिट्टी लगाएं। जब फसल 60-70 लंबी हो जाये तो फसल को तने टूटने वाली बीमारी से बचाने के लिए फूल बनने से पहले जड़ों में मिट्टी लगादें।
सिंचाई
मिट्टी की किस्म और मौसम के अनुसार 9-10 सिंचाई करें। पहली सिंचाई बिजाई से 3 महीने बाद करें। फसल को 50 प्रतिशत फूल पड़ने पर, दानों के नर्म और सख्त समय पर सिंचाई अति जरूरी है। इस समय पानी की कमी से पैदावार कम हो सकती है। बहुत ज्यादा और लगातार सिंचाई करने से उखेड़ा और जड़ों का गलना जैसी बीमारियां लग सकती हैं। भारी जमीनों में सिंचाई 20-25 दिन और हल्की ज़मीनों में 8-10 दिनों के फासले पर करें।
मधु मक्खी बीज बनने में मदद करती है। यदि मधु मक्खियां कम हो तो सुबह 8-11 समय 7-10 दिनों के अंतर पर हाथों से पहचान करें। इसलिए हाथों को मलमल के कपड़े से ढक लें।
फसल की कटाई – पत्तों के सूखने और फूलों के पीले रंग के होने पर कटाई करें। कटाई में देरी ना करें क्योंकि इससे पत्ते गिर जाते हैं और दीमक का खतरा बढ़ जाता है।
कटाई के बाद – फूल तोड़ने के बाद उन्हें 2-3 दिनों के लिए सुखाएं। सूखे हुए फूलों में से बीज आसानी से निकल जाते हैं। गहाई मशीन के साथ की जा सकती है। गहाई के बाद बीज को भंडारण से पहले सुखाएं और उनमें पानी की मात्रा 9-10 प्रतिशत होनी चाहिए।
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