Seeds Animal Husbandry

बरसीम की खेती की पूरी जानकारी

बरसीम की खेती
Written by Gramik

बरसीम एक जल्दी बढ़ने वाली और अधिक गुणवत्ता वाली पशुओं के चारे की फसल है। इसके फूल पीले-सफेद रंग के होते हैं। बरसीम अकेले या अन्य मसाले वाली फसलों के साथ उगाई जाती है। इसे अच्छी गुणवत्ता वाला आचार बनाने के लिए रायी घास या जई के साथ भी मिलाया जा सकता है।

बरसीम की खेती

बरसीम की प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

  • BL 1 :- यह जल्दी उगने वाली दरमियानी किस्म है। इसका बूटा बढ़िया  होता है, जो मई के अंतिम सप्ताह तक भी हरा चारा देता है। इसका हरा चारा 380 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
  • BL 10:- यह लंबे समय वाली किस्म है जो जून के पहले पखवाड़े तक हरा चारा देती है। यह तना गलन को सहनेयोग्य किस्म है, जिसकी पैदावार 410 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • BL 42:- यह जल्दी उगने वाली किस्म है, जिसका जमाव अच्छा होता है। यह किस्म तना गलन रोग को सहने योग्य किस्म है। इसका हरा चारा जून के पहले सप्ताह तक मिलता है। इसकी पैदावार 440 क्विंटल प्रति एकड़ है।     
  • BL 43: यह अगेती पकने वाली किस्म है। इसके हरे चारे की औसतन पैदावार 390 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  • Mescavi :- यह किस्म सी सी एस, हिसार की तरफ से तैयार की गई है और यह उपजाऊ क्षेत्रों में उगाई जाती है।
  • Wardan :- यह किस्म आई जी एफ आर आई, झांसी की तरफ से तैयार की गई है और यह उपजाऊ क्षेत्रों में उगाई जाती है। 
  • BL 22 :- यह किस्म पी ए यू, लुधियाणा की तरफ से बनाई गई है और यह शुष्क और पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाती है।
  • HFB 600 :- यह किसम सी सी एस, हिसार की तरफ से तैयार की गई है और यह उपजाऊ क्षेत्रों में उगाई जाती है। 
  • BL 180 :- यह किस्म पी ए यू, लुधियाणा की तरफ से बनाई गई है और यह उपजाऊ क्षेत्रों में उगाई जाती है।

ज़मीन की तैयारी

बिजाई के लिए ज़मीन समतल होनी चाहिए। फसल के विकास के लिए ज़मीन में पानी ज्यादा देर खड़ा नहीं रहने देना चाहिए। प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरना चाहिए।

मिट्टी

यह दरमियानी से भारी जमीनों में उगने वाली फसल है परंतु हल्की दोमट जमीनों में इसे लगातार पानी देना पड़ता है। यह मिट्टी की उपजाऊ शक्ति, भौतिक और रासायनिक क्रिया को सुधारती है।

बरसीम की बिजाई

बिजाई का समय

सितंबर के आखिरी हफ्ते से लेकर अक्तूबर का पहला हफ्ता बिजाई के लिए सही समय है।

बीज की गहराई

यह मौसम के हालातों पर निर्भर करती है। बीज की गहराई 4-5 से.मी. होनी चाहिए। इसकी बिजाई शाम के समय करनी चाहिए।

बिजाई का ढंग

बरसीम की बिजाई प्रसारण द्वारा की जाती है।

बरसीम के बीज

बरसीम की खेती

बीज की मात्रा

बीज नदीन रहित होने चाहिए। बीजने से पहले बीजों को पानी में भिगो देना चाहिए और जो बीज पानी के ऊपर तैरने लग जाये उन्हें निकाल दें। बीज की मात्रा 8-10 किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए। अच्छी गुणवत्ता के चारे के लिए बरसीम के बीजों के साथ सरसों के 750 ग्राम बीज में मिलायें।

बीज का उपचार

बिजाई से पहले बीज का उपचार राइज़ोबियम से कर लेना चाहिए। बिजाई से पहले राइज़ोबियम के एक पैकेट में 10 प्रतिशत गुड़ मिलाकर घोल तैयार कर लेना चाहिए। फिर इस घोल को बीज के ऊपर छिड़क देना चाहिए और बाद में बीज को छांव में सुखा देना चाहिए।

खाद

बिजाई के समय नाइट्रोजन, फासफोरस 10:30 किलोग्राम (यूरिया 22 किलोग्राम और सुपरफास्फेट 185 किलोग्राम) प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

खरपतवार नियंत्रण

बोई बरसीम का खतरनाक नदीन है। इसकी रोकथाम के लिए फलूक्लोरालिन 400 मि.ली. को प्रति 200 ली. पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें।

सिंचाई

पहला पानी हल्की ज़मीनों में 3-5 दिनों में और भारी जमीनों में 6-8 दिनों के बाद लगाएं। सर्दियों में 10-15 दिनों के फासले पर और गर्मियों में 8-10 दिनों के फासले पर पानी लगाएं।

हानिकारक कीट और रोकथाम

घास का टिड्डा

यह कीट पत्तों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह ज्यादातर मई जून के महीने में हमला करता है। इस की रोकथाम के लिए 500 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 80-100 ली. पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें। छिड़काव के बाद 7 दिनों तक पशुओं के लिए प्रयोग ना करें।

चने के सूण्डी 

यह फसल के दानों को खाती है। इसकी रोकथाम के लिए, फसल को टमाटर, चने और पिछेती गेहूं के नजदीक ना बोयें। इसकी रोकथाम के लिए क्लोरैनट्रानीलिप्रोल 18.5 एस सी 50 मि.ली. या स्पिनोसैड 48 एस सी 60 मि.ली. को 80-100 पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

बीमारियां और रोकथाम

तने का गलना 

यह मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारी है। इसके कारण ज़मीनी स्तर के नज़दीक का तना गल जाता है। मिट्टी के नजदीक सफेद रंग की फंगस विकसित होती देखी जा सकती है।

प्रभावित पौधों को निकालें और नष्ट कर दें। कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

फसल की कटाई

फसल बीजों के 50 दिनों के बाद कटाई के योग्य हो जाती है। सर्दियों में 40 दिनों के फासले और बसंत में 30 दिनों के फासले पर कटाई करें। पशुओं के लिए आचार बनाने के इसे 20 प्रतिशत मक्की में मिलाकर तैयार किया जाता है।

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