सोयाबीन एक दलहनी एवं तिलहनी फसल है, क्योंकि इसमें तेल एवं प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। भारत में सोयाबीन की खेती कुछ ही दशक पूर्व से ही की जा रही है। शाकाहारी मनुष्यों के लिए इसको मांस कहा जाता है क्योंकि इसमें बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है।
इसके दाने में 38-42% प्रोटीन पाया जाता है जो अन्य दालों की अपेक्षा बहुत अधिक है। इसके अतिरिक्त इसमें 19.5% वसा व 20.9% कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है।
सोयाबीन की फसल के लिए आवश्यक जलवायु
सोयाबीन के लिए गर्म – नम जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। बीज अंकुरण के लिए 40°F तथा उचित वृद्धि के लिए 75-80°F तापक्रम उपयुक्त रहता है। कम तापक्रम पर फूल कम लगते हैं. फसल पकते समय अधिक वर्षा हानिकारक होती है। जड़ों में पानी नहीं भरना चाहिए क्योंकि जड़ों के लिए अधिक पानी हानिकारक होता है।
सोयाबीन की उन्नतशील किस्में
उत्तरी क्षेत्र – ब्रेग, शिलाजीत, अलंकार, बी.के.- 262, बी.के.- 308, बी.के.- 327, बी.के.- 416
मध्यवर्ती क्षेत्र –जवाहर, गौरव, दुर्ग, ब्रेग, अंकुर, पी.के.- 472
दक्षिणी क्षेत्र – KHSB-2 , MACS-13
मध्य प्रदेश में 110 से 115 दिनों में तैयार होने वाली जातियां – दुर्गा, जे.एस.80-21 और पंजाब-1 हैं। इन किस्मों के अलावा टाइप-49, VLS-1, J-231, J-202, PK-330, NP-04, ली, सीमैस आदि किस्में प्रचलित हैं।
सोयाबीन की फसल के लिए आवश्यक भूमि
सोयाबीन की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है लेकिन हल्की मृदाएं अच्छी मानी जाती हैं।दोमट, मटियार दोमट और अधिक उर्वरता वाली कपास की काली मृदाएं वास्तव में आदर्श मानी जाती हैं।
भूमि का PH मान 6.6 से 7.5 होना चाहिए तथा मृदा में वर्षा का पानी ना भरे, अन्यथा जड़ों का विकास अच्छा नहीं होगा जड़े सड़ जाएंगी।
सोयाबीन की फसल के लिए खेत की तैयारी करना
गहरी भूमियों में मिट्टी पलटने बाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिए इसके बाद दो–तीन बार हैरो चलाना चाहिए।
इसके बाद खेत में पाटा या पटेला चलाकर खेत को समतल कर लेते है जिससे खेत में कहीं भी गड्ढे उबड़ – खाबड़ हो तो खेत की भूमि समतल हो जाती है।
खेत ढालदार होना चाहिए जिससे बरसात का पानी खेत में भरे नहीं। बुवाई करते समय खेत में नमी होनी चाहिए। अतः पलेवा करके बुवाई करनी चाहिए।
सोयाबीन की बुवाई करने का सही समय एवं सही ढंग –
जल्दी बुवाई करने पर पौधों की वृद्धि अधिक होती है तथा उपज सीमित रह जाती है और देर से बुवाई करने पर पौधों की वृद्धि कम होती है इसलिए इसको सही समय पर बोना चाहिए।
सोयाबीन की खेती की निम्नलिखित समय पर बुवाई करनी चाहिए-
उत्तरी क्षेत्र – उत्तरी क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई मई के अंतिम सप्ताह से लेकर मध्य जून तक की जाती है।
मध्य क्षेत्र – मध्य क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक की जाती है।
सोयाबीन के बीज खरीफ की फसल में 45 सेंटीमीटर की दूरी पर तथा बसंतकालीन फसल में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बोने चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी 4 – 5 सेंटीमीटर होनी चाहिए ताकि पौधों का विकास अच्छा हो सके।भावर भूमि में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
सोयाबीन की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट
फली छेदक – यह कीट धीरे धीरे पत्तियों को खाकर पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं।इसकी रोकथाम के लिए कार्बराइल 50%, घुलनशील चूर्ण 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कना चाहिए।
तना छेदक – इस कीट के प्रभाव से तना सूख जाता है तथा पत्तियां झुक जाती हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए थिमेट 10% पाउडर 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुवाई से पूर्व खेत में मिलाना चाहिए।
सफेद मक्खी – यह मक्खी पत्तियों का रस चूस कर पीला मोजेक रोग के विषाणु फैलाती है।इसकी रोकथाम के लिए मेटासिस्टॉक्स (1%) या मेलाथियान (0.1%) 500 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर में मिलाकर छिड़कना चाहिए।
चक्र भ्रंग – इस कीट की मादा कोमल तने तथा पत्ती के डंठल पर 3 से 7 सेंटीमीटर की दूरी पर चक्र बनाती है जिससे पौधे की ऊपरी पत्ती तथा बाद में पूरा पौधा सूख जाता है।
इसके लिए (0.05%) किवनालफास तथा (0.07%) इंडोसल्फान या (0.03%) मिथाइल डेमेटान का छिड़काव करना चाहिए।
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