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क्या आप भी अपनी सोयाबीन की फसल में कीट नियंत्रण करना चाहते हैं व रोगों के हमले से बचाना चाहते हैं? अगर हां, तो आप सही जगह पर हैं! इस ब्लॉग में हम आपके लिए लाए हैं कुछ ऐसे अचूक उपाय, जो आपकी फसल को बचाने में कारगर साबित होंगे।
गर्डल बीटल से लेकर फाइटोफ्थोरा रूट रोट तक, इन सभी समस्याओं का समाधान यहां मिलेगा। तो ये ब्लॉग पढ़िए और जानिए कैसे आप अपनी फसल की देखरेख कर उससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, और अपनी मेहनत व लागत को बेकार जाने से बचा सकते हैं।
सोयाबीन की फसल में कीट नियंत्रण
गर्डल बीटल कीट
सोयाबीन की फसल में गर्डल बीटल एक हानिकारक कीट है। ये पीले रंग के कैटरपिलर होते हैं, जो पत्तियों और तनों को नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट की सुंडी तथियोक्लोरोपिड 21.7 एसएस का 750 मिली या प्रोपोकोनोफोस 50 ईसीने के अंदर रहकर पौधों को खा जाती है, जिससे पत्तियां सूख जाती हैं और तना और टहनियां मुरझा जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% ई.सी. 1.25 liter का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
सेमीलूपर कीट
सेमीलूपर कीट सोयाबीन के पत्तों को नुकसान पहुंचाते हैं। शुरुआत में ये सुंडी पत्तियों पर छोटे-छोटे छेद करती हैं और बड़ी होते-होते पत्तों में बड़े छेद कर देती हैं। इनके प्रकोप से फसल को भारी नुकसान होता है, खासकर फूल आने से पहले और फली बनने की अवस्था में। नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी 250 ग्राम/हे या स्पिनाटोरम 11.7 एस.ए.सी. का 250 मिली/हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।
तना मक्खी (स्टेम फ्लाई)
तना मक्खी सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीटों में से एक है। यह काले रंग का कीट है जिसकी सुंडी तने तक पहुंचकर टेढ़ी सुरंग बनाकर तने को खा जाती है। इसके प्रकोप से पौधे सूख जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए बीटासीफ्लुथ्रिन 8.49 + इमिडोक्लोप्रिड 19.81 प्रतिशत ओडी 350 मिली प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें।
टोबैको कैटरपिलर
टोबैको कैटरपिलर कीट पत्तियों को चबाकर नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे पत्तियां जालीदार हो जाती हैं। इसका प्रकोप फूल आने से पहले और फली बनने के समय अधिक होता है। नियंत्रण के लिए इमेमेक्टिन बेंजोएट 5एसजी का 250 ग्राम या फ्लूबेंडामाइड 39.35एससी का 150 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
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कृषि यंत्रों का प्रयोग
फेरोमोन ट्रैप या लाइट ट्रैप के प्रयोग से भी कीट नियंत्रण किया जा सकता है। यह उपकरण कीटों को आकर्षित कर उन्हें पकड़ने में मदद करता है।
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सोयाबीन की फसल में लगने वाले रोग
फाइटोफ्थोरा रूट रोट
सोयाबीन के प्रमुख रोगों में से एक है फाइटोफ्थोरा रूट रोट। इस रोग में पौधों की जड़ें काली हो जाती हैं और सड़ने लगती हैं। पौधे पीले पड़ने लगते हैं और आखिर में मुरझा कर मर जाते हैं। यह रोग मुख्यतः फाइटोफ्थोरा सोजा नामक कवक के कारण होता है और जलजमाव वाली मिट्टी में इसका प्रकोप अधिक होता है।
इस रोग के प्रबंधन के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था, प्रतिरोधी किस्मों का चयन और रोगाणुरोधी फफूंदनाशकों जैसे roko 1 kg Thiophanate methyl 70 % WP/ हैक्टेयर का उपयोग किया जा सकता है।
चारकोल रोट
चारकोल रोट भी एक गंभीर रोग है जिसमें पौधे मुरझा जाते हैं, जड़ और तने पर काले रंग की फफूंद की उपस्थिति होती है और पौधों की ऊपरी हिस्से की मृत्यु दर बढ़ जाती है। यह रोग मैक्रोफोमिना फेजियोलिना नामक कवक के कारण होता है और गर्म एवं शुष्क मौसम में इसका प्रकोप अधिक होता है।
इसके प्रबंधन के लिए उचित सिंचाई प्रबंधन, फसल चक्र अपनाना और प्रतिरोधी किस्मों का चयन किया जा सकता है, साथ ही roko 1 kg /Thiophanate methyl 70 % WP हैक्टेयर का उपयोग किया जा सकता है।
बैक्टीरियल ब्लाइट
बैक्टीरियल ब्लाइट एक जीवाणु जनित रोग है जिसमें पत्तियों पर छोटे, भूरे धब्बे दिखते हैं जो बाद में बड़े होकर पत्तियों को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं। यह रोग जैन्थोमोनास कैम्पेस्ट्रिस नामक जीवाणु के कारण होता है। इसके प्रबंधन के लिए रोगमुक्त बीजों का चयन, प्रभावित पौधों का नाश करना और तांबा आधारित जीवाणुनाशकों जैसे saaf 1 kg/Carbendazim 12% and Mancozeb 63% WP हैक्टेयर का उपयोग किया जा सकता है।
पाउडरी मिल्ड्यू
पाउडरी मिल्ड्यू एक और महत्वपूर्ण रोग है जिसमें पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसा दिखता है और पत्तियां पीली होकर समय से पहले गिर जाती हैं। यह रोग एरीसिपे पॉलिजोनी नामक कवक के कारण होता है। इसके प्रबंधन के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन, फफूंदनाशकों जैसे nativo 250 g m/ Tebuconazole 50%+ Trifloxystrobin 25% WG हैक्टेयर का प्रयोग और उचित सिंचाई प्रबंधन आवश्यक होता है।
सोयाबीन में रोग प्रबंधन के लिए कुछ सामान्य उपाय
सोयाबीन की फसल में रोगों के प्रबंधन के लिए कुछ सामान्य उपाय भी अपनाए जा सकते हैं। फसल चक्र अपनाना, खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखना और प्रभावित पौधों को तुरंत नष्ट करना, जलजमाव से बचने के लिए खेतों में अच्छी जल निकासी व्यवस्था करना, फसलों को समय पर बोना और रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना आवश्यक है। इसके अलावा, उचित फफूंदनाशकों और जीवाणुनाशकों का उपयोग भी संतुलित और सुरक्षित मात्रा में करना चाहिए।
सोयाबीन बीज की 4 उन्नत किस्म के बारे में जानने के लिए ग्रामिक का ये ब्लॉग पढ़ें।
FAQs
सोयाबीन की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। यह फसल 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अच्छी तरह से उगती है। 60-90 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा भी आवश्यक होती है।
सोयाबीन के लिए दोमट मिट्टी, जल निकासी वाली और जैविक पदार्थों से भरपूर मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। पीएच स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
सोयाबीन की बुवाई मानसून की शुरुआत (जून के अंत से जुलाई तक) में करनी चाहिए, ताकि फसल को पर्याप्त पानी मिल सके और अच्छा विकास हो सके।
सोयाबीन की फसल में पीला मोज़ेक, झुलसा रोग, जड़ गलन आदि रोग लग सकते हैं। इसके अलावा सफेद मक्खी, जेसिड और हरा तेला जैसे कीट भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का चयन, सही समय पर बुवाई, संतुलित उर्वरक का प्रयोग, समय पर सिंचाई और कीट-रोगों का नियंत्रण करके सोयाबीन की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है।
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