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कृषि क्षेत्र में अगर हम पिछले कुछ सालों का आंकलन करें, तो पारंपरिक फसलों से हटके किसान नई फसलों की ओर रूख कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि पारंपरिक फसलों से किसानों को उम्मीद के अनुसार लाभ नहीं मिल पाता। इसी स्थिति को देखते हुए किसान साथी अब कुछ अलग और नई फसलों की तरफ भी रुख कर रहे हैं, और सरकार भी इसके लिए तरह-तरह की मुहिम चलाती रहती है। ऐसे ही बड़े मुनाफे वाले लैवेंडर की खेती को भी खूब बढ़ावा दिया जा रहा है।
चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में लैवेंडर की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं!
लैवेंडर का क्या उपयोग है?
लैवेंडर एक औषधीय गुणों से भरपूर पौधा है, जो एक बार लगाने से कई वर्षों तक चलता है। लैवेंडर के फूल बहुत ही सुन्दर एवं सुंगंधित होते हैं। इसके फूलों से तेल निकाला जाता है, जिसका इस्तेमाल खाने, औषधि, साबुन, इत्र और सौंदर्य प्रसाधन को बनाने में किया जाता है। आपको बता दें कि लैवेंडर के फूल मुख्यतः गहरे नीले, लाल व बैंगनी रंग के होते हैं, और इनके पौधों की ऊंचाई लगभग 2 से 3 फीट तक होती है।
लैवेंडर की खेती कहां की जाती है?
लैवेंडर एक नगदी फसल है, जिसे भूमध्यसागरीय देशों के साथ-साथ, कनाड़ा, सयुंक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान व न्यूजीलैंड आदि देशों में उगाया जाता है। वहीं भारत में लैवेंडर की खेती की बात करें, तो ये प्रमुख रूप से कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में की जाती है।
लैवेंडर की खेती के लिए उपयुक्त समय व तरीक़ा
वैसे तो लैवेंडर की खेती साल के किसी भी महीने में की जा सकती है, लेकिन अप्रैल का महीना इसकी खेती के लिए सबसे उत्तम माना जाता हैं। लैवेंडर की खेती बीज व कलम दोनों तरीक़े से की जा सकती है, लेकिन कलम विधि से खेती करने पर इसके पौधे अच्छी तरह विकसित होते हैं।
आपको बता दें कि नर्सरी में लैवेंडर की पौध नवम्बर-दिसम्बर महीने में तैयार की जाती है। वहीं बीजों के अंकुरण के लिए उपयुक्त तापमान की बात करें, तो इसके लिए 12 से 15 डिग्री के बीच का तापमान उपयुक्त होता है।
लैवेंडर की खेती के लिए बीज
आपको बता दें कि एक हेक्टेयर में लगभग 20 हज़ार लैवेंडर के पौधे लगते हैं। नर्सरी डालने के लिए लैवेंडर के बीज ग्रामिक पर बहुत ही किफायती मूल्य पर उपलब्ध हैं। आप इस लिंक पर क्लिक करके घर बैठे ऑर्डर कर सकते हैं – लैवेंडर के बीज
लैवेंडर की खेती के लिए मिट्टी व जलवायु
लैवेंडर के पौधे अच्छे से विकसित हो सकें, इसके लिए उचित जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। वहीं मिट्टी का पीएच 5.8 से 8.3 के बीच होना चाहिए। किसान साथी इस बात का भी ध्यान रखें कि मिट्टी में बहुत नमी न होने पाए, क्योंकि अधिक नमी होने से पौधे में कई तरह के रोग लग सकते हैं। लैवेंडर के पौधे के अच्छे विकास के लिए 15-20 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है और ये पौधे अधिकतम 20-30 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकते हैं।
लैवेंडर की खेती के लिए खेत की तैयारी
लैवेंडर की खेती करने से पहले हल या कल्टीवेटर से 2-3 बार खेत की गहरी जुताई कर लें। आखिरी जुताई के समय पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा, समतल बना लें। इससे खेत के खरपतवार भी नष्ट हो जाएंगे। किसान साथी इस बात का विशेष ध्यान रखें, कि खेत में जल भराव न होने पाए। खेत की जुताई पूरी करने के बाद खेती करने के लिए ज़रूरत के हिसाब से मेड़ व क्यारियां बना लें।
लैवेंडर की खेती का तरीक़ा
लैवेंडर की खेती करने का तरीका लेमनग्रास तरह ही है (लेमन ग्रास की खेती के बारे में विस्तार से जानने के लिए ग्रामिक का ये ब्लॉग पढ़ें) लैवेंडर के पौधे को मध्यम गर्म जलवायु में उगाया जा सकता है। खेत में इसकी रोपाई करते समय पौधे से पौधे के बीच की दूरी 1 से 2 मीटर के बीच होनी चाहिए। आपको बता दें एक बार लैवेंडर की खेती करने के बाद इसमें 8 से 10 साल तक फूल खिलते रहते हैं। वहीं कटाई की बात करें, तो हर 5-6 महीने पर इसकी कटाई होती है।
लैवेंडर की फसल में उर्वरक का प्रयोग
लैवेंडर के पौधों के अच्छे विकास के लिए किसान साथी प्रति एकड़ के अनुसार 6 टन की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत तैयारी के समय मिट्टी में मिला दें। वहीं आप मिट्टी के परिक्षण के आधार पर कृषि विशेषज्ञ द्वारा सुझाई गई रासायनिक उर्वरक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
लैवेंडर की फसल में खरपतवार नियंत्रण
लैवेंडर की फसल में खरपतवार के नियंत्रण के लिए समय-समय पर ज़रूरत के हिसाब से निराई-गुड़ाई करते रहें। निराई-गुड़ाई की प्रक्रिया आसान बनाने के लिए भी ग्रामिक पर कई गार्डेनिंग टूल्स उपलब्ध हैं।
लैवेंडर की फसल की सिंचाई
लैवेंडर की फसल में सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि खेत में पौधों की रोपाई के तुरंत बाद उनकी सिंचाई करें। इसके बाद खेत में नमी बनाए रखने के लिए ज़रूरत के हिसाब से पानी देते रहें।
लैवेंडर की कटाई
लैवेंडर के पौधे पर फूल पहले साल में ही आने लग जाते हैं, लेकिन पौधों की रोपाई के लगभग 3 साल बाद इसमें फूल अधिक संख्या में आते हैं। आपको बता दें कि लैवेंडर के फूलों की कटाई तब करें, जब पौधों में फूल अच्छी तरह खिल चुके हों।
इन्हें जमीन की सतह से कुछ सेंटीमीटर की दूरी छोड़ते हुए काट लें। ध्यान रहे कि काटी गई शाखाओं की लम्बाई फूल सहित लगभग 12 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए। फूलों की कटाई के बाद उसे ठंडी जगह या न्यूनतम तापमान में रखें, जिससे फूल लंबे समय तक ताज़े बने रखेंगे।
बाजार में लैवेंडर की बढ़ रही है मांग
लेमनग्रास की ही तरह लैवेंडर से भी तेल निकाला जाता है, ऐसे में बाजार में इसकी खूब मांग है। लैवेंडर के फूलों से तेल निकालने के साथ-साथ इसका प्रयोग साज सज्जा में भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। वहीं दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों, खाद्य पदार्थों, साबुन, सेंट आदि में इसके तेल का प्रयोग होने के कारण ये फूल काफ़ी महंगे बिकते हैं, जिससे किसानों को बड़ा मुनाफा होता है।
FAQ
लैवेंडर की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थो से युक्त मिट्टी की आवश्यकता होती है। पहाड़ी, मैदानी व रेतीली भूमि में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।
लैवेंडर को पूरी तरह से तैयार होने में लगभग 3 साल का समय लगता है। हालांकि पौधों में फूल एक साल के अंदर ही आने लगते हैं।
लैवेंडर का तेल बाजार में 10-15 हज़ार रुपए प्रति लीटर बिकता है, अतः किसानों को इसकी खेती से शानदार लाभ मिल सकता है।
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