Animal Husbandry Seeds

पशुओं के स्वास्थ्य व दुग्ध उत्पादन क्षमता में सुधार के लिए करें हरे चारे की खेती!

हरे चारे की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है। 

पशुपालन को कृषि का मजबूत स्तम्भ माना जाता है, लेकिन आज के समय में भारत में कुल 5% भूमि पर ही हरे चारे की खेती की जाती है, जो पशुओं की संख्या के अनुपात में काफी कम आंकड़ा है। हरे चारे की खेती पशुपालन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इससे न सिर्फ पशुओं को ज़रूरी पोषण मिलता है, और उनका स्वास्थ्य अच्छा होता है, बल्कि उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोत्तरी होती है।

इस ब्लॉग में हम हरे चारे की किस्मों, उनकी खेती के तरीकों, और इन्हें खिलाने से होने वाले लाभ पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

हरे चारे की किस्में

नेपियर घास (Napier Grass)

नेपियर घास, जिसे “हाथी घास” भी कहा जाता है, एक ऐसी घास है जो तेजी से बढ़ती है और इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। यह घास विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है। नेपियर घास की लंबाई 3 से 4 मीटर तक हो सकती है, और यह बहुत ही कम समय में बड़ी मात्रा में हरा चारा प्रदान कर सकती है। ग्रामिक से इस मल्टी कटिंग घास के बीज आप बेहद किफायती मूल्य पर खरीद सकते हैं। 

हरे चारे की खेती नेपियर घास

नेपियर घास की खेती का तरीका

नेपियर घास की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी उत्तम मानी जाती है। इसकी बुवाई के लिए मानसून का मौसम सबसे उपयुक्त है, लेकिन इसे साल भर उगाया जा सकता है। नेपियर घास के कंद या कटिंग को 60 सेमी की दूरी पर रोपित किया जाता है। नियमित सिंचाई और निराई-गुड़ाई से इसकी वृद्धि अच्छी होती है।

नेपियर घास की खेती के बारे में विस्तार से जानने के लिए ये ब्लॉग पढ़ें। 

बरसीम (Berseem)

बरसीम, जिसे त्रिफला घास भी कहा जाता है, एक उत्कृष्ट हरा चारा है। यह प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है। बरसीम की खेती मुख्य रूप से सर्दियों में की जाती है क्योंकि यह ठंडे मौसम में अच्छे से विकास करती है। इसका पौधा लगभग 30 से 60 सेमी ऊंचाई तक बढ़ता है और इसकी पत्तियाँ मुलायम और रसदार होती हैं।

हरे चारे की खेती बरसीम

बरसीम की खेती का तरीका

बरसीम की बुवाई के लिए अक्टूबर से नवंबर का समय सबसे उत्तम होता है। इसके बीजों को खेत में 1 से 1.5 सेमी गहराई पर बोया जाता है। बरसीम की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, और इसे अच्छी जल निकासी की आवश्यकता होती है। पहली कटाई 50-60 दिन में की जा सकती है, और इसके बाद हर 25-30 दिन में कटाई की जा सकती है।

बरसीम की खेती के बारे में विस्तार से जानने के लिए ये ब्लॉग पढ़ें। 

मक्का (Maize)

मक्का का हरा भाग, जिसे “मक्का का हरा चारा” कहते हैं, भी पशुओं के लिए बहुत पौष्टिक होता है। यह विशेष रूप से दुधारू पशुओं के लिए लाभदायक है। मक्का का हरा चारा ऊर्जा और प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत होता है, और इसमें पाचनशक्ति को बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। ग्रामिक पर कई उन्नत किस्म के मक्का बीज उपलब्ध हैं, आप उन्हें बेहद किफायती मूल्य में ऑर्डर कर सकते हैं। 

हरे चारे की खेती मक्का

मक्का की खेती का तरीका

मक्का की बुवाई के लिए गर्मियों का मौसम सबसे अच्छा होता है। इसके बीजों को 3-5 सेमी गहराई पर बोया जाता है, और पौधों के बीच की दूरी 20-25 सेमी रखी जाती है। मक्का की फसल को नियमित सिंचाई और निराई की आवश्यकता होती है। हरे चारे के लिए मक्का की कटाई तब की जाती है जब पौधे में दूधिया अवस्था में दाने होते हैं।

मक्का की खेती के बारे में विस्तार से जानने के लिए ये ब्लॉग पढ़ें। 

जई (Oats)

जई भी हरे चारे का एक अच्छा विकल्प है। यह ठंडे मौसम में उगाया जा सकता है और इसमें बड़ी मात्रा में ऊर्जा होती है। जई का हरा चारा विटामिन ए, डी, और ई से भरपूर होता है, और यह पशुओं के स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है।

हरे चारे की खेती जई

जई की खेती का तरीका

जई की बुवाई के लिए अक्टूबर से नवंबर का समय सबसे उपयुक्त होता है। इसके बीजों को 2-3 सेमी गहराई पर बोया जाता है, और पौधों के बीच की दूरी 15-20 सेमी रखी जाती है। जई की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है, और यह फसल 60-70 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

हरे चारे की खेती की प्रक्रिया 

भूमि की तैयारी

हरे चारे की खेती के लिए मिट्टी की गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसके लिए भूमि को अच्छी तरह से जोतना और उसमें खाद मिलाना चाहिए। भूमि की पीएच स्तर को संतुलित रखना भी आवश्यक है ताकि पौधों को उचित पोषक तत्व मिल सकें। वहीं भूमि की उर्वरता को बढ़ाने के लिए जैविक खाद का उपयोग किया जा सकता है।

बीज का चयन और बुवाई

हरे चारे की किस्मों के अनुसार बीज का चयन करना चाहिए। हर तरह के बीज की बुवाई का समय विशेष महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए, बरसीम की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है, जबकि नेपियर घास की बुवाई मानसून के मौसम में की जाती है। बीज को बोने से पहले उपचारित करना चाहिए ताकि अंकुरण अच्छा हो और बीमारियों का खतरा कम रहे।

सिंचाई और जल प्रबंधन

हरे चारे की फसलों को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। जल प्रबंधन में ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर सिस्टम का उपयोग किया जा सकता है। इससे पानी की बचत होती है और पौधों को आवश्यक मात्रा में जल मिलता है। मृदा की नमी बनाए रखना महत्वपूर्ण है, खासकर सूखे के मौसम में।

कीट और रोग प्रबंधन

हरे चारे की फसलों को कीट और रोगों से बचाने के लिए जैविक और रासायनिक उपायों का उपयोग किया जा सकता है। जैविक उपायों में नीम का तेल, गंधक और अन्य प्राकृतिक कीटनाशक शामिल हैं। कीट और रोगों की नियमित निगरानी आवश्यक है ताकि समय पर नियंत्रण किया जा सके।

हरे चारे को खिलाने के लाभ

भरपूर पोषण 

हरे चारे में प्रोटीन, विटामिन, और खनिजों की उच्च मात्रा होती है जो पशुओं के लिए आवश्यक होते हैं। यह उनकी विकास दर को बढ़ाता है और उन्हें स्वस्थ बनाए रखता है। हरे चारे का सेवन पशुओं की मांसपेशियों के विकास में मदद करता है और उनके स्वास्थ्य को सुधारता है।

दूध उत्पादन में वृद्धि

दुधारू पशुओं के लिए हरा चारा विशेष रूप से फायदेमंद होता है। यह दूध उत्पादन को बढ़ाता है और दूध की गुणवत्ता में सुधार करता है। हरे चारे के सेवन से दूध में फैट और प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है, जो कि उच्च गुणवत्ता वाले दूध के लिए आवश्यक है।

पाचन में सुधार

हरे चारे में पाया जाने वाला फाइबर पशुओं के पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद होता है। यह पाचन को सुधारता है और पशुओं को कब्ज जैसी समस्याओं से बचाता है। हरे चारे में मौजूद फाइबर पशुओं की आंतों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है और उन्हें स्वस्थ बनाए रखता है।

स्वास्थ्य समस्याओं में कमी

हरे चारे का नियमित सेवन पशुओं को कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से बचाता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो उनकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। 

आर्थिक लाभ

हरे चारे की खेती से पशुपालकों को आर्थिक लाभ भी होता है। हरे चारे की फसलें उगाना आसान होता है और इससे पशुओं के चारे में आने वाली लागत कम होती है। इसके अलावा, हरे चारे से प्राप्त अधिक दूध और स्वस्थ पशुओं के कारण पशुपालकों की आय में वृद्धि होती है।

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हरे चारे की खेती के लिए कौन-कौन सी फसलें उपयुक्त हैं?

हरे चारे के लिए नेपियर घास, बरसीम, जई, मक्का, लोबिया, ज्वार आदि फसलें उपयुक्त होती हैं। 

हरे चारे की खेती के लिए कौन-सा समय सबसे अच्छा होता है?

हरे चारे की खेती का समय फसल की प्रकार पर निर्भर करता है। जैसे, बरसीम की बुवाई रबी सीजन (अक्टूबर-नवंबर) में की जाती है, जबकि नेपियर घास को गर्मियों में उगाया जा सकता है।

हरे चारे की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त होती है?

हरे चारे की खेती के लिए दोमट मिट्टी, बलुई दोमट मिट्टी, और जलोढ़ मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं। अच्छी जल निकासी और उपजाऊ मिट्टी हरे चारे की बेहतर पैदावार के लिए आवश्यक होती है।

हरे चारे की कटाई कब और कैसे करनी चाहिए?

हरे चारे की फसल की कटाई उस समय करनी चाहिए जब फसल पूरी तरह से विकसित हो जाए लेकिन उसमें फूल न आया हो। नेपियर घास की कटाई 60-75 दिनों के अंतराल पर की जा सकती है, जबकि बरसीम की कटाई 40-45 दिन के बाद की जाती है।

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