फलों को पेड़ से तोड़ने के बाद उन्हें सुरक्षित रखना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती है। टूटने के कुछ ही दिनों में फल खराब होने लगते हैं। ऐसे में उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित और ताज़ा बनाए रखने के लिए एक तकनीक विकसित की गई है, जिसे राइपनिंग तकनीक (Ripening Technique) नाम दिया गया है। इस तकनीक के इस्तेमाल पर सरकार किसानों को सब्सिडी भी देती है।
क्या है राइपनिंग तकनीक (Fruit Ripening)
अक्सर पके हुए फल ट्रांसपोर्टेशन और भंडारण के दौरान खराब हो जाते हैं, जिससे बागवानों को भरी नुकसान झेलना पड़ता है, लेकिन राइपनिंग तकनीक में फलों को पकने से पहले ही पेड़ से तोड़ लिया जाता है, जिसके बाद लंबे समय तक इनका भंडारण किया जा सकता है और इन्हें ट्रांसपोर्ट करने में भी कोई समस्या नहीं होती है।
राइपनिंग तकनीक से फलों को पकाने के लिए चैंबर बनाए जाते हैं, जो कोल्ड स्टोरेज के जैसे होते हैं। इन चैंबरों में एथिलीन गैस छोड़ी जाती है, जो फलों को पकने में मदद करती है। इस तकनीक से पके फलों का रंग अच्छा रहता है, और ये ताज़े पके फलों की तरह ही दिखते हैं। इस तकनीक को आम,पपीता, केला, सेब जैसे कई फलों को पकाने में इस्तेमाल किया जाता है।
राइपनिंग तकनीक (Fruit Ripening) से फल कितने समय में पकते हैं?
राइपनिंग विधि से फलो को पकने मे करीब 4-5 दिन लगते हैं, और इनकी गुणवत्ता भी अच्छी बनी रहती है।
राइपनिंग तकनीक (Fruit Ripening) से फल पकाने के फायदे
फल जब पक जाते हैं, तो वो पेड़ से टूटकर गिर जाते हैं। ऊंचाई से ज़मीन पर गिरने के कारण अक्सर फलों की क्वालिटी खराब हो जाती है। इसके अलावा, फलों को ट्रांसपोर्टेशन के माध्यम से मंडी पहुंचाने में भी काफी समय लगता है, जिससे पके फल खराब होने लग जाते हैं, और किसानों की सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है। कई बार फलों पर दाग पड़ने या ज्यादा पकने के कारण किसान उन्हें बहुत ही कम दामों में बेचने के लिए मज़बूर हो जाते हैं।
लेकिन इस फ्रूट राइपनिंग तकनीक के माध्यम से किसान फलों को बिना सड़े-गले लंबे समय तक स्टोर करके रख सकते हैं। जब मंडी में अच्छे दाम लग रहे हों तो किसान फलों को 3 से 5 दिन के अंदर पकाकर बिक्री के लिए ले जा सकते हैं।
राइपनिंग तकनीक (Fruit Ripening) के लिए सरकार दे रही सब्सिडी
किसान आधुनिक ढंग और नई तकनीकों से खेती करें, इसके सरकार समय समय पर कई योजनाएं चलाती रहती है, जिसके अंतर्गत किसानों एवं कृषि उद्यमियों को आर्थिक सहायता दी जाती है। इसी प्रकार फ्रूट राइपनिंग के लिए कोल्ड स्टोरेज बनाने पर भी सरकार 35 से 50 प्रतिशत तक की आर्थिक मदद देती है। इसके अलावा किसान या बागवान चाहें तो खेती के साथ-साथ एग्री बिजनेस या फिर एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड स्कीम से सब्सिडी लेकर भी अपना कोल्ड स्टोरेज खोल सकते हैं। इसका फायदा देश के हर किसान ले सकते हैं।
फलों को पकाने की पुरानी तकनीक
पहले फलों को पकाने के लिए घरेलू और पारंपरिक तरीके अपनाए जाते थे। आज भी कुछ लोग फलों को बोरे, पुवाल और भूसे में दबाकर पकाते हैं। ये तरीका सुरक्षित और कम खर्चीला तो होता है, लेकिन इसमें समय बहुत अधिक लगता है।
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