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Soybean Crop Diseases: सोयाबीन की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग व उनसे बचाव!

Written by Gramik

दोस्तों नमस्कार, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है।

भारत में सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) बडे़ क्षेत्र में होती है, जिसमे मध्य प्रदेश पहले स्थान पर है, उसके बाद,महाराष्ट्र सहित कई राज्य  शमिल है। सोयाबीन से तेल निकाला जाता है, जिस  वजह से  किसानों की आर्थिक स्थिति काफी हद तक इस फसल पर निर्भर करती है। सोयाबीन की फसल से अच्छी आमदनी के लिए उन्नत किस्म के सोयाबीन बीज का चुनाव करना बहुत महत्वपूर्ण है।

सोयाबीन एक अहम तिलहन फसल है। इस समय देश में 135 लाख टन के उत्पादन के साथ क़रीब औसतन 120 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन का उत्पादन किया जाता है। बात इसके फायदे की करें तो सोयाबीन से सोया बड़ी, सोया दूध, सोया पनीर, और तेल जैसे मुख्य खाने की चीजें हमे मिलती हैं। 

आपको बता दे कि,मध्यप्रदेश के इंदौर सिटी में सोयाबीन रिसर्च सेंटर बना है। मध्यप्रदेश में सोयाबीन की खेती काफ़ी बड़े पैमाने पर होती है, साथ ही बिहार जैसे कई अन्य राज्यों में भी किसान इसकी खेती पर काफ़ी ज़ोर दे रहे हैं। यही कारण है आज भारत में लगभग 12 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन होता है। 

तो चलिए आज अपने लेख के माध्यम से आपको सोयाबीन और उसकी फसल को कैसे कीट-रोगों से बचा सकते हैं, उसकी जानकारी देते हैं-

सोयाबीन की फसल में लगने वाला पीला मोजैक रोग (Yellow Mosaic Virus Disease in Soyabean)

सोयाबीन में अगर रोग की बात करें, तो एक पीला मौजेक (Yellow Mosaic) रोग होता है, जिसके लगने पर पेड़ों की पत्तियां पीली पड़ना शुरू हो जाती हैं। जिस वजह से पत्तियां खुरदुरी हो जाती है, साथ ही उन पर सिकुड़न आ जाती है। इसकी वजह से पत्तियां सुर्ख हरे रंग की हो जाती हैं,और पत्तियों पर भूरे और सलेटी रंग का दाग पड़ना शुरू हो जाता है। 

Soybean Crop Diseases

सोयाबीन की फसल में लगने वाले अन्य रोग कीट (Soybean Crop Diseases)

इसके साथ ही एक रोग और है, जो अधिकतर सोयाबीन की फसल में पाया जाता है, वो है एन्थ्राक्नोज रोग, जो की एक फंगल वायरस है। जो फसलों की किस्म को बर्बाद करने मे पूरा सहयोग देता है। वहीं इस वक्त गर्डल बीटल जैसे कीट की भी आशंका बनी रहती है। इस कीट को किसान सोयाबीन तना छेदक के नाम से भी जानते है। इस कीट की सुंडियां सफेद रंग की मुलायम शरीर और काले सिर वाली होती हैं, इसकी सुंडी तने में घुसकर अंदर के हिस्से को खाती है, जिस वजह से इसकी पत्तियां और पौधे का मुख्य तना भी सूखकर अपने आप गिर जाता है।

इंदौर के सोयाबीन अनुसंधान केंद्र,के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि यदि इस फ़सल में पीला मोजैक वायरस रोग के ज़रा सा भी लक्षण देखने को मिले,तो शुरू में ही उस पौधे को फौरन खेत से उखाड़ कर दूर फेक दें, साथ ही खेत में अलग-अलग जगह पर पीला स्ट्रिकी ट्रेप लगा दें। इससे वायरस का वाहक कीट एफिड और सफेद मक्खी कीट चिपक कर वही खत्म हो जाएंगे।

अन्य फंगल वायरस के लिए किसी कृषि विभाग की देख रेख में उत्तम कीटनाशक वा दवाओं का प्रयोग करके इस समस्य से निजात पा सकते हैं। इसके अलावा कीटनाशक दवाओं या किसी अन्य कृषि परामर्श के लिए आप ग्रामिक के कृषि विशेषज्ञ से भी सलाह ले सकते हैं।

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