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दोस्तों, आज के समय में आधुनिक तकनीक की मदद से खेती उस मुकाम पर पहुंच चुकी है, जिसमें अब उपज लेने के लिए मिट्टी और खेत तक की भी ज़रूरत नहीं रह गई है। अब खेत की जगह हाईटेक नर्सरी और लैब में खेती करने का चलन अन्य देशों की जगह भारत में भी अपनाया जा रहा है। इसके तहत बिना मिट्टी के केवल पानी की सहायता से हाईटेक नर्सरी में की जा रही खेती को हाइड्रोपोनिक फार्मिंग कहते है। इसी तरह मिट्टी के बिना, पोषक तत्वों से युक्त धुंध की मदद से हवा में की जाने वाली खेती को एयरोपोनिक फार्मिंग कहा जाता है।
एयरोपोनिक फार्मिंग तकनीक (Airoponic Farming) कहां विकसित की जा रही है?
हवा में उपज देने वाली एयरोपोनिक फार्मिंग की पहली लैब (Airoponic Farming Lab) MP ग्वालियर में बनाई जाएगी। ग्वालियर में हाईटेक नर्सरी और एयरोपोनिक लैब बनाने की इस योजना पर पिछले साल ही काम शुरू होना था, लेकिन किन्हीं कारणों से ये योजना पिछले एक साल से लंबित थी। मध्य प्रदेश के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री भारत सिंह कुशवाह ने आदेश जारी किए हैं कि इसका निर्माण कार्य जल्द शुरू किया जाए।
आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो आलू उगाने के मामले में MP, देश के सभी राज्यों में छठे नंबर पर है। राज्य में आलू की फसल में कई मिट्टी जनित रोग लगने के कारण आलू का उत्पादन लगातार गिरता जा रहा था, इसलिए एमपी सरकार (MP Government) ने तकनीक की मदद से इस समस्या का समाधान निकाला, और एयरोपोनिक तकनीक की से उच्च गुणवत्ता वाले आलू के बीज उपजाने के लिए ग्वालियर में प्रदेश की पहली एयरोपोनिक लैब और हाईटेक नर्सरी बनाने का फैसला किया।
कुशवाह ने कहा कि इस लैब के निर्माण का काम अब जल्द शुरू कर दिया जाएगा। उन्होंने ये भी कहा कि उम्मीद है अगले फसली सीजन में राज्य के किसानों को एयरोपोनिक तकनीक से उपजाए गए आलू के बीज मुहैया कराए जाने लगेंगे। यह लैब बनाने के लिए MP की शिवराज सरकार का कृषि तकनीक से जुड़ी अग्रणी कंपनी एग्रीनोवेट इंडिया लिमिटेड के साथ करार किया जा चुका है।
एयरोपोनिक फार्मिंग की ज़रूरत क्यों हुई?
सरकार का मानना है कि राज्य के आलू की खेती करने वाले किसानों को मांग के अनुसार आलू के बीज की आपूर्ति नहीं हो पाती है। एयरोपोनिक तकनीक से बीज के उत्पादन में 10 से 12 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है। राज्य सरकार का दावा है कि ग्वालियर में एयरोपोनिक लैब बनने से बीज की भरपूर सप्लाई हो सकेगी। इस तकनीक से उपजे बीज के इस्तेमाल से फसल की गुणवत्ता व उत्पादकता दोनों में सुधार आएगा।
एयरोपोनिक फार्मिंग तकनीक का उपयोग कैसे किया जायेगा?
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शिमला स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने हवा में आलू का बीज तैयार करने वाली इस अनूठी तकनीक का अविष्कार किया है। इसके अंतर्गत पौधे की जड़ों को मिट्टी से मिलने वाले पोषक तत्वों का पानी की फुहार के माध्यम से जड़ों पर छिड़काव किया जाता है। इससे पहले बीज को नमी युक्त अंधेरे बॉक्स में रख कर पौध तैयार की जाती है। बीज से निकला पौधा बॉक्स से बाहर आकर हवा में रहता है, जबकि पौधे की जड़ें अंधेरे बॉक्स में होती हैं।
इन पर पोषक तत्वों का स्प्रे किया जाता है जड़ों को पोषक तत्व और हवा में मौजूद पौधे का विकास तेज़ी से होता है। इन जड़ों पर पोषक तत्वों के लगातार स्प्रे होने से एक जड़ से आलू के 35 से 60 बीज निकलते हैं। वैज्ञानिक दावा करते हैं कि इस विधि में मिट्टी का इस्तेमाल नहीं होता है, इसलिए इस तकनीक से उगाए गए बीज में मिट्टी जनित रोगों का ख़तरा नहीं होता है।
कुशवाह ने कहा कि एमपी में ‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ODOP योजना के अंतर्गत ग्वालियर जनपद के विशिष्ट उत्पाद के रूप में आलू को शामिल किया गया है, यही वजह है कि ग्वालियर में हाईटेक नर्सरी और एयरोपोनिक लैब बनाने का फैसला किया गया है। उन्होंने कहा कि MP में हर वर्ष लगभग 4 लाख टन आलू के बीजों की आवश्यकता होती है। इस ज़रूरत को 10 लाख मिनी ट्यूबर क्षमता वाली एयरोपोनिक लैब से पूरा किया जायेगा।
आलू की खेती करने वाले प्रमुख क्षेत्र
मध्य प्रदेश के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री ने कहा कि MP में मालवा संभाग आलू का का उत्पादन करने वाला प्रमुख क्षेत्र है। इसके अलावा ग्वालियर, देवास, शाजापुर, और भोपाल जनपदों में भी आलू की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। वहीं छिंदवाड़ा, सीधी, सतना, रीवा, राजगढ़, सागर, दमोह, जबलपुर, पन्ना, मुरैना, छतरपुर, विदिशा, बैतूल और रतलाम जिलों के कुछ क्षेत्रों में भी काफ़ी किसान आलू की खेती करते हैं।
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