आलू का सब्जियों में अपना महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी उत्पादन क्षमता अन्य फसलों से अधिक है। इसलिए इसे अकाल नाशक फसल भी कहा जाता है। यह एक सस्ती और आर्थिक फसल है, जिस कारण इसे गरीब आदमी का मित्र भी कहा जाता है। यह फसल दक्षिणी अमरीका की है और इस में कार्बोहाइड्रेट और विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आलू लगभग सभी राज्यों में उगाए जाते हैं। यह फसल सब्जी के लिए और चिप्स बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। यह फसल स्टार्च और शराब बनाने के लिए भी प्रयोग की जाती है। भारत में ज्यादातर उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, कर्नाटक, आसाम और मध्य प्रदेश में आलू उगाए जाते हैं।
बुवाई का समय – सामान्यतः अगेती फसल की बुवाई मध्य सितम्बर से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक, मुख्य फसल की बुवाई मध्य अक्टूबर के बाद हो जानी चाहिए।
बुवाई का तरीका – बुवाई के लिए ट्रैक्टर से चलने वाली सीडड्रिल का प्रयोग करें।
बीज की मात्रा – बुवाई के लिए छोटे आकार के आलू 8-10 क्विंटल, दरमियाने आकार के 10-12 क्विंटल और बड़े आकार के 12-18 क्विंटल प्रति एकड़ के लिए प्रयोग करें।
बीज का उपचार – बुवाई के लिए अच्छे और सेहतमंद आलू ही चुने। बीज के तौर पर दरमियाने आकार वाले आलू, जिनका भार 25-125 ग्राम हो, प्रयोग करें। बुवाई से पहले आलुओं को कोल्ड स्टोर से निकालकर 1-2 सप्ताह के लिए छांव वाले स्थान पर रखें ताकि वे अंकुरित हो जायें। आलुओं के सही अंकुरन के लिए उन्हें जिबरैलिक एसिड 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर एक घंटे के लिए उपचार करें। फिर छांव में सुखाएं और 10 दिनों के लिए हवादार कमरे में रखें। फिर काटकर आलुओं को मैनकोजेब 0.5 प्रतिशत घोल (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) में 10 मिनट के लिए भिगो दें। इससे आलुओं को शुरूआती समय में गलने से बचाया जा सकता है। आलुओं को गलने और जड़ों में कालापन रोग से बचाने के लिए साबुत और काटे हुए आलुओं को 6 प्रतिशत मरकरी के घोल (टैफासन) 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) में डालें। जलवायु – आलू उन क्षेत्रों में सबसे अच्छा बढ़ता है जहाँ शांत मौसम, पर्याप्त वर्षा और गहरी उपजाऊ मिट्टी के साथ समशीतोष्ण जलवायु होती है। आलू उत्तर में एक गर्म मौसम की फसल है, ठंढ और हल्की ठंड के लिए निविदा है, और दक्षिण और पश्चिम में एक ठंड के मौसम की फसल है।
भूमि – आलू की फसल के लिए भूमि की तो आलू की फसल विभिन्न प्रकार की भूमि, जिसका पी.एच. मान 6 से 8 के मध्य हो, उगाई जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट तथा दोमट उचित जल निकास की भूमि उपयुक्त होती है।
खेत की तैयारी – आलू की खेती के लिए खेत की 3-4 जुताई डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से करें। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाने से ढेले टूट जाते हैं तथा नमी सुरक्षित रहती है। वर्तमान में रोटावेटर से भी खेत की तैयारी शीघ्र व अच्छी हो जाती है। आलू की अच्छी फसल के लिए बोने से पहले पलेवा करना चाहिए।
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