इस बार पहले से ही इस बात का अनुमान लगाया जा रहा था कि साल 2023 का मॉनसून शुरू होने में देरी हो सकती है और आने वाला दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून इस बार छोटा हो सकता है। कई जानकार इसे एल-नीनो से भी जोड़ कर देख रहे हैं।
आज के इस लेख में जानिए कि एल-नीनो क्या है, और इससे भारत की कृषि पर क्या असर हो सकता है? इसके अलावा एल- नीनो की स्थिति से कैसे निपटा जाए, इस बारे में ‘ग्रामिक’ के फाउंडर ‘राज यादव’ सहित कई विशेषज्ञों ने सलाह दी है, जिसपर हम इस लेख में चर्चा करेंगे।
सन् 1600 में एल-निनो का पहला मामला सामने आया था. आमतौर पर नीनो की स्थिति तब बनती है, जब एक जगह से दूसरे जगह पर जाने वाली हवाएं कमजोर पड़ जाती हैं। ऐसा होने के कारण तापमान में बढ़ोत्तरी होती है, और इससे मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य से ऊपर बढ़ जाता है।
इस घटना को ही एल- नीनो कहा जाता है। एल नीनो का असर केवल मौसम पर ही नहीं, बल्कि समुद्री जीव-जन्तुओं पर भी होता है। मछलियों की कई प्रजातियां इस बढ़ते हुए तापमान को सहन न कर पाने के कारण मर जाती हैं।
कुछ जगहों पर एल-नीनो का असर तुरंत दिखने लगता है, लेकिन कुछ जगहों पर इसका प्रभाव देर से दिखता है। शारदा यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ एनवायरनमेंट साइंस के हेड ऑफ डिपार्टमेंट, प्रमोद के सिंह कहते हैं कि वैश्विक तापमान पर एल-नीनो का असर तुरंत नहीं होता है, इसमें समय लगता है।
EL- Nino को लेकर इस साल क्या चेतावनी जारी की गई है?
अभी हाल ही में इंडियन मेट्रोलोजिकल डिपार्टमेंट (IMD) द्वारा एल-नीनो (EL-Nino) को लेकर एक चेतावनी जारी की गई है। IMD ka कहना है कि इस मानसून में एल नीनो के विकसित होने की लगभग 70 प्रतिशत आशंका है।
वहीं अमेरिका के नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने इस बात पर की पुष्टि की है कि एल- नीनो के बनने की उम्मीद 80-90 फीसदी है। अगर IMD की ये भविष्यवाणी सच साबित हुई तो भारत के खरीफ की फसल उत्पादन पर इसका खतरनाक असर हो सकता है।
भारतीय मानसून पर कैसा होगा EL-Nino का असर?
भारत का मौसम एल नीनो का नकारात्मक असर पहले भी कई बार झेल चुका है, इस लिए एक बार फिर से इस खतरनाक स्थिति की चेतावनी से देश की चिंता बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि एल नीनो के असर के कारण मानसून में कमी आ सकती है, जिससे फसलों की पैदावार बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।
भारत में करीब 52 प्रतिशत क्षेत्र खेती करने के लिए बारिश पर ही निर्भर हैं, और पूरी तरीके से मानसून पर निर्भर खेती देश के कुल फसल उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत है, जो देश के फूड सिक्योरिटी के लिए काफी महत्वपूर्ण है। अतः अगर एल नीनो की स्थिति से सही से न निपटा जाए तो मानसून में कमी के कारण फसल की पैदावार में भारी कमी आ सकती है, और इससे कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
वैश्विक स्तर पर EL- Nino का क्या असर होगा?
वैज्ञानिक एल-नीनो की ताकत का अंदाजा ओसियन नीनो इंडेक्स यानि ONI से लगाते हैं। अगर इस इंडेक्स पर माप 0.5 से 0.9 के बीच आता है तो इसको कमजोर एल-नीनो माना जाता है, और अगर ये माप 1 के उपर होता है, तो इसे मध्यम एल-नीनो की स्थिति माना जाता है। लेकिन अगर यही इंडेक्स 1.5 व 1.9 के बीच रहता है तो इसे एक मजबूत एल-नीनो माना जाता है।
NIO ने इस बार 1.5 से ज़्यादा के इंडेक्स की चेतावनी जारी की है। द क्लाइमेट रियल्टी प्रोजेक्ट के इंडिया और साउथ एशिया ब्रांच के डायरेक्टर, आदित्य पुंडीर का कहना है, कि एल-नीनो प्राकृतिक रूप से होने वाले वैश्विक मौसम पैटर्न का एक हिस्सा है, जो हर 2 से 7 साल के अंतराल पर दोहराता है।
यह आमतौर पर पेरू व चिली जैसे पश्चिमी अमेरिकी देशों के मानसून को प्रभावित करता है, जिससे ये देश भारी बारिश और बाद में बाढ़ जैसी स्थिति का सामना करते हैं। वहीं इंडोनेशिया व ऑस्ट्रेलिया स्थिति इसके विपरीत होती है। ये देश शुष्क मौसम, कम बारिश और सूखे का सामना करते हैं।
EL- Nino भारत को पहले भी कर चुका है प्रभावित
एल नीनो से भारत कई बार प्रभावित हो चुका है। बीते सालों में जब इसके कारण कम बारिश हुई थी, तब सरकार को कुछ अनाजों का निर्यात कम करना पड़ा था। बारिश कम होने के कारण भारत में चावल, गेहूं, गन्ना, सोयाबीन और मूंगफली जैसी फसलें प्रभावित होती हैं।
सन् 2001 और 2020 के बीच, भारत को सात बार एल-नीनो की स्थिति का सामना करना पड़ा है। इस दौरान खरीफ या गर्मियों में बोए फसलों के उत्पादन में भारी कमी देखी गई थी।
EL- Nino के प्रभाव से भारत कैसे बच सकता है?
केंद्रीय मौसम विभाग राज्यों को एल नीनो के प्रभाव से निपटने के लिए पहले से ही तैयार रहने के लिए कहा है। एक रिपोर्ट की मानें तो IMD इस साल मौसम पर नजर रखते हुए भारत के 700 जिलों में से प्रत्येक के लिए कृषि-मौसम संबंधी सलाहकार सेवाएं और फॉरकास्ट उपलब्ध कराएगा। ज़ाहिर सी बात है कि भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए कई ठोस कदम उठाने होंगे।
गोदरेज एंड बॉयस में एनवायरनमेंट सस्टेनबलिटी हेड तेजश्री जोशी कहती हैं कि मौसम की सटीक भविष्यवाणी, आपदा आने से पहले इसकी चेतावनी, जल संरक्षण को बढ़ावा देना, सूखा प्रतिरोधी फसलें और किसानों की क्रेडिट और बीमा विकल्पों तक पहुंच बढ़ाने से देश में जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
वहीं, एग्री स्टार्टअप ग्रामिक (Gramik) के फाउंडर राज यादव का कहना है कि सब्सिडी पर फोकस करना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। क्योंकि छोटे और सीमांत किसानों के पास उतने वित्तीय संसाधन नहीं होते हैं, इसलिए सब्सिडी के बचे हुए पैसों का उपयोग वह सिंचाई और मशीनरी के इस्तेमाल आदि में कर सकते हैं, जिससे ग्रॉस प्रोडक्शन में बढ़ोतरी होगी और एल-नीनो का असर कम होगा।
FAQ
1.एल नीनो का मतलब क्या होता है?
एल नीनो मौसम की एक घटना है, जो तब होती है जब मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य से ऊपर बढ़ जाता है। इस बड़े हुए तापमान के कारण वायुमंडलीय पैटर्न में बदलाव होता है, जिसके कारण भारतीय प्रायद्वीपों में मानसून चक्र कमजोर पड़ जाता है। ऐसी स्थिति में बारिश भी कम होती है।
2.अल नीनो की खोज किसने की?
आमतौर पर 20वीं सदी के मौसम विज्ञान के दो दिग्गजों, गिल्बर्ट वॉकर और जैकब बजेर्कनेस को अल नीनो-दक्षिणी दोलन घटना की खोज का श्रेय दिया जाता है।
3.एल नीनो का दूसरा नाम क्या है?
एल नीनो को अल नीनो-दक्षिणी दोलन, या ENSO चक्र भी कहा जाता है।
4.पहला एल नीनो कब हुआ था?
“एल नीनो” की पहली रिकॉर्डिंग 1578 में हुई की गई थी। ये घटना हर दो से सात साल के बीज होती है।
5.एल नीनो भारत को कैसे प्रभावित कर सकता है?
मौसम वैज्ञानिकों ने इस साल एल नीनो की स्थिति बनने की चेतावनी जारी की है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश पर इसका चिंताजनक असर देखने को मिल सकता है। एल नीनो के कारण भारत में रिकॉर्ड स्तर पर गर्मी और सूखे की मार झेलनी पड़ सकती है।
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