गेहूँ मध्य पूर्व के लेवांत क्षेत्र से आई एक घास है, जिसकी खेती दुनिया भर में की जाती है। विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली धान्य फसलों मे मक्का के बाद गेहूं दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है, गेहूँ की उपज लगातार बढ रही है। यह वृध्दि गेहूँ की उन्नत किस्मों तथा वैज्ञानिक विधियों से हो रही है। भारत गेहूं का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है केरल, मणिपुर व नागालैंड राज्यों को छोड़ कर अन्य सभी राज्यों में इस की खेती की जाती है उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व पंजाब सर्वाधिक रकबे में गेहूं की पैदावार करने वाले राज्य हैं।
यह प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेटस का प्रमुख स्त्रोत है और संतुलित भोजन प्रदान करता है। रूस, अमरीका और चीन के बाद भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा गेहूं का उत्पादक है। विश्व में पैदा होने वाली गेंहूं की पैदावार में भारत का योगदान 8.7 फीसदी है।
उन्नत किस्में –
गेहूं की उन्नत खेती के लिए किसान भाई एचडी 3226, एचडीसीएसडब्ल्यू 18, डीबीडब्ल्यू 187, एचडी 3086 और डीबीडब्ल्यू किस्मों की बुवाई कर सकते हैं
बुआई का समय एवं तरीका –
1. असिंचित (Unirrigated) – असिंचित गेहूँ ही बुआई का समय 15 अक्टूबर से 31 अक्टूबर है इस अवधि में बुआई तभी संभव है जब सितम्बर माह में पर्याप्त वर्षा हो जाती हैं। इससे भूमि में आवश्यक नमी बनी रहती हैं। यदि बोये जाने वाले बीज के हजार दानों (1000 दानों) का वजन 38 ग्राम है तो 100 किलो प्रति हेक्टेयर बीज प्रयोग करें। हजार दानों का वजन 38 ग्राम से अधिक होने पर प्रति ग्राम 2 किलो प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा बढ़ा दें।
2. सिंचित (Irrigated) – सामयिक बोनी जिसमें नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा उत्तम होता है, 15-25 नवम्बर तक सिंचित एवं समय वाली जातियों की बोनी आवश्यक कर लेना चाहिये। बीज को बोते समय 2-3 से.मी. की गहराई में बोना चाहिये जिससे अंकुरण के लिये पर्याप्त नमी मिलती रहे। कतार से कतार की दूरी 20 से.मी. रखना चाहिये। इस हेतु बीज की मात्रा औसतन 100 कि.ग्राम/ हे. रखना चाहिये या बीज के आकार के हिसाब से उसकी मात्रा का निर्धारण करें तथा कतार से कतार की दूरी 18 से.मी. रखें।
3. सिंचित एवं देर से बोनी हेतु – पिछैती बोनी जिसमें दिसम्बर का पखवाड़ा उत्तम हैं। 15 से 20 दिसम्बर तक पिछैती बोनी अवश्य पूरी कर लेना चाहिये। पिछैती बुवाई में औसतन 125 किलो बीज प्रति हे. के हिसाब से बोना उपयुक्त रहेगा (देर से बोनी के लिये हर किस्म के बीज की मात्रा 25 प्रतिशत बढ़ा दें) तथा कतार की दूरी 18 से.मी. रखें।
जलवायु :-
गेहूँ की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है, इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त माना जाता है, गेहूँ की खेती मुख्यत सिंचाई पर आधारित होती है गेहूँ की खेती के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है, लेकिन इसकी खेती बलुई दोमट,भारी दोमट, मटियार तथा मार एवं कावर भूमि में की जा सकती है। साधनों की उपलब्धता के आधार पर हर तरह की भूमि में गेहूँ की खेती की जा सकती है।
भूमि का चुनाव/तैयारी :-
गेहूँ की बुवाई अधिकतर धान की फसल के बाद ही की जाती है, पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताईयां करके खेत को समतल करते हुए भुरभुरा बना लेना चाहिए, डिस्क हैरो से धान के ढूंठे कट कर छोटे छोटे टुकड़ों में हो जाते हैं: इन्हें शीघ्र सड़ाने के लिए 20-25 कि०ग्रा० यूरिया प्रति हैक्टर कि दर से पहली जुताई में अवश्य दे देनी चाहिए। इससे ढूंठे, जड़ें सड़ जाती हैं ट्रैक्टर चालित रोटावेटर से एक ही जुताई द्वारा खेत पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है।
बीज उपचार :-
बुवाई से पूर्व बीज को टेबुकोनाज़ोल 2% डी.एस. या थिरम 2 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
खाद एवं रासायनिक खाद प्रबंधन :-
गेहूँ की खेती में बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय वर्मी कम्पोस्ट या हरी खाद का प्रयोग करने से उप्तादन में वृद्धि होती है। रासायनिक उर्वरक में यूरिया 110 कि.ग्रा., डी.ए.पी. 55 कि.ग्रा.पोटाश 20 कि. ग्रा. प्रति एकड़ की दर से प्रयोग कर सकते है। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही प्रयोग में लाये।
सिंचाई प्रबंधन :-
गेहूँ की बौनी किस्मों को 30-35 हेक्टेयर से.मी. और देशी किस्मों को 15-20 हेक्टेयर से.मी. पानी की कुल आवश्यकता होती है। उपलब्ध जल के अनुसार गेहूँ में सिंचाई क्यारियाँ बनाकर करनी चाहिये। प्रथम सिंचाई में औसतन 5 सेमी. तथा बाद की सिंचाईयों में 7.5 सेमी. पानी देना चाहिए। सिंचाईयों की संख्या और पानी की मात्रा मृदा के प्रकार, वायुमण्डल का तापक्रम तथा बोई गई किस्म पर निर्भर करती है। फसल अवधि की कुछ विशेष क्रान्तिक अवस्थाओं पर बौनी किस्मों में सिंचाई करना आवश्यक होता है।
गेहूँ की खेती में सिंचाई –
● पहली सिंचाई बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद दी जानी चाहिए ।
● बुवाई के 40 से 45 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए ।
● बुवाई के 60 से 65 दिन बाद तीसरी सिंचाई करनी चाहिए ।
● बुवाई के 80 से 85 दिन बाद चौथी सिंचाई करनी चाहिए ।
● बुवाई के 100 से 105 दिन बाद पाँचवी सिंचाई करनी चाहिए ।
● बुआई के 105 से 120 दिन बाद छठवीं सिंचाई करनी चाहिए ।
खरपतवार नियंत्रण :-
● बुवाई के बाद पेंडीमेथालिन 30% ईसी (स्टोम्प), 1 लीटर/एकड़ के हिसाब से छिड़क दें.
● इसके साथ ही बुवाई के लगभग 30 दिनों बाद चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 2,4-डी 58% एसएल (वीडमार), 400-500 मिली/एकड़ या मेट्सल्फ्यूरॉन मिथाइल 20% डब्ल्यूपी (एल्ग्रिप), 10 ग्राम/एकड़ के हिसाब से छिड़क दें.
● इसके अलावा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार और घास, दोनों के लिए सल्फोसल्फ्यूरॉन 75% डब्ल्यू जी (लीडर), 13 मिली/एकड़ छिड़क दें.
● घास कुल वाले खरपतवारों के लिए क्लोडिनोफॉप-प्रोपेगिल 15% डब्ल्यू पी (टॉपिक) 165 ग्राम/एकड़ से छिड़क दें.
● इसके अलावा जंगली जई और फेलारिस माइनर (गेहूं का मामा): फेनोक्साप्रोप-पी-एथिल 10% ईसी (प्यूमा सुपर) 400 मिली/एकड़ के हिसाब से छिड़क सकते हैं
फसल संबंधी रोग नियंत्रण :-
1- गेहूं का करनाल बंट
● जैविक नियंत्रण – इस रोग कि रोकथाम के लिए बीज को थाइरम 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बोयें | उन्नत प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें
● रासायनिक नियंत्रण – रोकथाम हेतु खड़ी फसल में प्रोपिकोनोजोल 25 ई.सी. 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव डफ अवस्था में करें |
2- माहू
● जैविक नियंत्रण – गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए। समय से बुवाई करें। खेत की निगरानी करते रहना चाहिए। 5 किलो गंधपाश (फेरोमैन ट्रैप) प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए।
● रासायनिक नियंत्रण – एजाडिरैक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली0 प्रति हे. की दर से 500-600 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. ली. प्रति हे. की दर से 500-600 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।मिथाइल-ओ-डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. 1 ली. प्रति हे. की दर से 500-600 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. 750 मिली प्रति हे. की दर से से 500-600 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।
3- दीमक
● जैविक नियंत्रण – खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हे0 की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है। भूमि शोधन हेतु विवेरिया बैसियाना 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 50-60 किग्रा0 अध सडे गोबर में मिलाकर 8-10 दिन रखने के उपरान्त प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए
● रासायनिक नियंत्रण – फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 2.5 ली0 प्रति हे0 की दर से प्रयोग करें।
4- पीला रतुआ
● जैविक नियंत्रण – बुआई के लिए अच्छे और स्वस्थ बीज का ही प्रयोग करें| रतुआ निरोधक किस्में 4 से 5 वर्ष के बाद रोग प्रतिरोधक रह जाती हैं| ऐसी स्थिति रतुआ कवकों में परिवर्तन होने पर आती है, अत: नवीनतम सहनशील किस्मों को प्रयोग में लायें| नाइट्रोजन प्रधान उर्वरकों की अत्याधिक मात्रा रतुआ रोगों को बढ़ाने में सहायक होती है, इसलिए उर्वरकों के संतुलित अनुपात में पोटाश की उचित मात्रा प्रयोग करें|
● रासायनिक नियंत्रण – छिड़काव के लिए प्रॉपीकोनेशेल 25 ई सी या टेबूकोनेजोल 25 ई सी (फोलिकर 250 ई सी) या ट्राईडिमिफोन 25 डब्ल्यू पी (बेलिटॉन 25 डब्ल्यू पी) का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें| 2. एक एकड़ खेत के लिए 200 मिलीलीटर दवा 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें| 3. पानी की उचित मात्रा का प्रयोग करें, फसल की छोटी अवस्था में पानी की मात्रा 100 से 120 लिटर प्रति एकड़ रखी जा सकती है| 4. गेहूं का पीला रतुआ रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 15 से 20 दिन के अंतराल पर करें|
फसल की कटाई :-
जब गेहूँ के पौधे पीले पड़ जाये तथा बालियां सूख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिये| जब दानों में 15 से 20 प्रतिशत नमी हो तो कटाई का उचित समय होता है| कटाई के पश्चात् फसल को 3 से 4 दिन सूखाना चाहिये। इसके बाद गेहूँ की आधुनिक यंत्रो जैसे ट्रैक्टर चलित थ्रेशर या बैलों द्वारा गहाई कर सकते है।
उपज एवं भंडारण :-
उन्नत तकनीक से खेती करने पर सिंचित अवस्था में गेहूँ की बौनी किस्मो से लगभग 50-60 क्विंटल दाना के अलावा 80-90 क्विंटल भूसा/हेक्टेयर प्राप्त होता है। जबकि देशी लम्बी किस्मों से इसकी लगभग आधी उपज प्राप्त होती है। देशी किस्मो से असिंचित अवस्था में 15-20 क्विंटल प्रति/हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है। सुरक्षित भंडारण हेतु दानों में 10-12% से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए। भंडारण के पूर्ण कठियों तथा कमरो को साफ कर लें और दीवालों व फर्श पर मैलाथियान 50% के घोल को 3 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिड़कें। अनाज को बुखारी, कोठिलों या कमरे में रखने के बाद एल्युमिनियम फास्फाइड 3 ग्राम की दो गोली प्रति टन की दर से रखकर बंद कर देना चाहिए।
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