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लंपी त्वचा रोग क्या है ?

Written by Gramik

कोविड से जूझ रही दुनिया में मंकी पॉक्स के बाद अब एक और दुर्लभ संक्रमण के उभरने से वैज्ञानिक चिंतित हैं। गुजरात में इस समय एक खतरनाक बीमारी की वजह से करीब 1000 गायों और भैंसों की मौत हो गई है। मवेशियों में फैलने वाले इस रोग का नाम लंपी त्वचा रोग बताया जा रहा है। हालांकि भारत में पहली बार इस रोग के मामले दर्ज किए गए हैं। आइए जानते हैं आखिर क्या है ये रोग और कैसे फैल रहा है।

लम्पी त्वचा रोग कैसे फैलता है –

मंकी पॉक्स की तरह वायरस से फैलने वाला लम्पी त्वचा रोग मक्खियों, मच्छरो, जूं एवं ततैयों के कारण फैलता है। जिसे ‘गांठदार त्वचा रोग वायरस’ कहते हैं। यह मवेशियों के सीधे संपर्क में आने और दूषित भोजन एवं पानी के माध्यम से फैलती है। बीमारी को फैलने से रोकने के लिए 2.68 लाख पशुओं को टीका लगाया गया है। 

लम्पी त्वचा रोग की प्रजातियां :-  


लम्पी त्वचा रोग की मुख्यतः तीन प्रजातियां होती हैं। बताया जाता है कि पहली और सबसे मुख्य प्रजाति ‘कैप्रिपॉक्स वायरस’ है। इसके अलावा गोटपॉक्स वायरस और शीपपॉक्स वायरस दो अन्य प्रजातियां हैं।

लम्पी त्वचा रोग के लक्षण-

  • जानवरों में बुखार आना
  • आंखों एवं नाक से पानी आना, मुंह से लार निकलना
  • पूरे शरीर में गांठों जैसे नरम छाले पड़ना
  • दूध उत्पादन में कमी आना 
  • भोजन करने में कठिनाई इस बीमारी के लक्षण हैं।

इसके अलावा इस लम्पी त्वचा रोग में शरीर पर गांठें बन जाती हैं। गर्दन और सिर के पास इस तरह के गांठें ज्यादा दिखाई देते हैं। कई बार तो ये भी देखा जाता है कि इस रोग के चलते मादा मवेशियों में बांझपन, गर्भपात, निमोनिया और लंगड़ापन झेलना पड़ जाता है।

लम्पी त्वचा रोग कहां फैला है –

गुजरात के 14 जिलों – कच्छ, जामनगर, देवभूमि द्वारका, राजकोट, पोरबंदर, मोरबी, सुरेंद्रनगर, अमरेली, भावनगर, बोटाद, जूनागढ़, गिर सोमनाथ, बनासकांठा और सूरत में इसके मामले पाए गए हैं। राज्य के कृषि एवं पशुपालन मंत्री राघवजी पटेल ने कहा, 880 गांवों में इस बीमारी के मामले पाए गए हैं। तालुका स्तर की महामारी विज्ञान रिपोर्ट के अनुसार, लम्पी त्वचा रोग के कारण अब तक 67,000 मवेशियों की मौत हो चुकी है।

लम्पी त्वचा रोग से बचाव कैसे करे?

लम्पी त्वचा रोग से अपनी गाये और भैसो का बचाव ऐसे करे:

  • गाय के संक्रमित होने पर दूसरे पशुओं को उससे अलग रखें.
  • मक्खी,मच्छर,जूं आदि को मार दें
  • पशु की मृत्यु होने पर शव को खुला न छोड़ें
  • पूरे क्षेत्र में कीटाणुनाशक दवाओं का छिड़काव करें

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