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गोभी की खेती को नुकसान पहुंचा सकते हैं ये रोग! जानें बचाव के उपाय!

गोभी की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है।

गोभी वर्गीय फसलें यानि कि बंदगोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, गाँठगोभी और ब्रुसेल्स स्प्राउट ठंड के मौसम की प्रमुख सब्जियां हैं। गोभी की खेती को नुकसान पहुंचाने वाले रोगों की बात करें तो मृदुरोमिल आसिता, आर्द्र पतन, काले सड़न या ब्लैक रूट, विगलन, स्क्लेरोटिनिया तना सड़न रोग एवं अल्टरनेरिया काला धब्बा रोग जैसी कई बीमारियां होती हैं।

1. गोभी की खेती में मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्डयू)

डाउनी मिल्डयू एक कवक रोग है, जो पैरोनोस्पोरा पैरासिटिका के कारण होता है। इस रोग के लक्षण की बात करें तो पत्तिायों की निचली सतह पर बैंगनी या भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इन धब्बों के ऊपर के हिस्से में भूरे या पीले धब्बे दिखाई देते हैं। यह नर्सरी में लगे पौधों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है।

गोभी की खेती में मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्डयू)

प्रबंधन

  • डाउनी मिल्डयू बीज जनित रोग है, इसी कारण बीज की बुआई से पहले एप्रन 35 एसडी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की मात्रा में बीज को उपचारित कर लें।
  • गोभी वर्गीय फसलों में ध्यान रखें कि नर्सरी में खरपतवार निस्तारण समय पर होता रहे, क्योंकि खरपतवार के कारण पौधों में कोमल फफूंदी फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है।
  • किसान साथी गोभी की फसल में सुबह-सुबह नर्सरी में पानी न डालें, क्योंकि उस समय पत्तों पर ओस पड़ी रहती है। इससे फफूद के बीजाणु स्वस्थ अंकुरों पर फैलने लगते हैं। 
  • जब रोग के लक्षण दिखाई देने लगें तब नर्सरी क्षेत्र में 15 दिनों के अंतराल पर मैंकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें।

2. गोभी की खेती में आर्द्र गलन

आर्द्र गलन रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नाम के कवक से फैलता है और नर्सरी क्षेत्र में इसका ख़तरा ज़्यादा होता है। इस रोग से प्रभावित अंकुर का ज़मीन के पास का तना लाल भूरे रंग का दिखाई देता है, और ये अंकुर अंत में सूख जाता है, जब मिर्च की पौध घनी होती है, तब ये बीमारी ज़्यादा तेज़ी से फैलती है।

प्रबंधन

  • गोभी वर्गीय फसलों के बीज को ज़्यादा घना न बोएं।
  • बुआई से पहले बीज को मैंकोजेब  2 ग्राम प्रति किलोग्राम के अनुपात में उपचारित कर लें।

3. गोभी की खेती में तना सड़न (स्टेम राट)

यह रोग स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोशिओरम नाम के कवक से फैलता है। रोग की शुरुआत में पौधे की पत्तियां लटक जाती हैं, और रात के समय ये ठीक दिखाई देती हैं। तने के निचले भाग पर जल सिक्त धब्बे दिखाई देते हैं। और रोग से प्रभावित भाग पर धीरे-धीरे सफेद कवक दिखने लगते हैं, और तना सड़ने लगता है। इस रोग को सफेद सड़न भी कहा जाता है।

प्रबंधन

  • तना सड़न के प्रबंधन के लिये प्रति किलोग्राम बीज को बाविस्टीन 2 ग्राम की मात्रा से उपचारित कर लें।
  • डायथेन एम. 45, 2.0 ग्राम व बाविस्टीन 1 ग्राम को मिलाकर 15 दिन के अन्तराल पर जब फूल बनना प्रारभ हो 3 छिड़काव करें।
  • इस रोग के प्रबंधन करने के लिए खेत में डालने से पूर्व गोबर की खाद में 10 किलोग्राम प्रति टन की दर से ट्राइकोडर्मा नामक जैविक खाद मिला लेनी चाहिए।
  • यह बीमारी अधिकतर नजदीक रोपाई तथा फसल के पत्ताों के आपस में मिलने के कारण फैलती है,
  • अत: बीमारी को रोकने के लिए फसल को 45×45 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपित करें और अधिक मात्रा में नत्रजन का प्रयोग ना करें।

4. गोभी की खेती में अल्टरनेरिया काला धब्बा रोग

यह रोग अल्टरनेरिया ब्रेसीकोला नामक कवक से फैलता है। पतियों पर गोल-गोल धब्बे इस रोग की पहचान है।

गहरे रंग के धब्बे पत्ताों पर बनते हैं, जो आपस में मिलकर पत्ताों को रोगग्रस्त कर देते हैं।

जिससे पत्तो मर जाते हैं एवं अधपके ही गिर जाते हैं। किसानों को फूल आने के समय काला धब्बा रोग के लक्षणों को पुरानी पत्तिायों पर देखना चाहिए।

गोभी की खेती में अल्टरनेरिया काला धब्बा रोग

प्रबंधन

  • गोभी वर्गीय फसलों में सुबह-सुबह संक्रमित पुरानी पत्तियों को तोड़कर जला दें।
  • इन फसलों में काला धब्बा रोग के लक्षण दिखाई दें, तब क्लोरोथलोनिल या डाइथेन एम- 45, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

5. गोभी की खेती में काला सड़न रोग

काला सड़न रोग जैथोमोनास कम्पेस्ट्रिस पी.वी. कम्पेस्ट्रिस नाम के जीवाणु से फैलता है। यह रोग बंदगोभी व फूलगोभी में सबसे खतरनाक होता है।

इस रोग के कारण गोभी वर्गीय फसलों में रोग ग्रस्त होने पर पत्तियों के बाहरी किनारों पर अंग्रेजी के ‘ट’ अक्षर के आकार के पानी में भीगे निशान जैसे दिखाई देते हैं।

बाद में रोगी पत्तियों की शिरायें काली हो जाती हैं, इस रोग का प्रकोप ज़्यादा बढ़ने पर गोभी के अन्य भाग भी प्रभावित होने लगते हैं, जिससे फूल के डंठल अन्दर से काले होकर सड़ने लगते हैं।

प्रबंधन

  • गोभी वर्गीय फसलों में बंदगोभी की पूसा मुक्ता तथा पूसा कैबेज हाइब्रिड-1 प्रतिरोधी किस्में उगाये।
  • बीजों को बुवाई से पूर्व स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 250 मि.ग्रा. या एवं बाविस्टीन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 2 घंटे उपचारित कर छाया में सुखाकर बुवाई करें।
  • पौध रोपण से पूर्व जडों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एवं बाविस्टीन के घोल में 1 घंटे तक डुबाकर लगावें तथा फसल में रोग के लक्षण दिखने पर उपरोक्त दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।
  • पौधों के अधिक पास-पास होने के कारण बारिश के समय, काले सड़न फैलने का अधिक खतरा रहता है।
  • इसलिए पौधे से पौधे और पंक्ति से पंक्ति में 45 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए।
  • पौधों की अधिक वृध्दि ना हो इसके लिये अतिरिक्त नाइट्रोजन के प्रयोग करने से बचना चाहिये।
  • गोभी वर्गीय फसलों में रोग के नियन्त्रण के लिए शुरुवात में ही स्ट्रेप्टोसाएक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 3 ग्राम प्रति लीटर पानी का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।

6. गोभी की खेती में विगलन

यह एक जीवाणु रोग है, जो अर्विनिया केरोटोवोरा के कारण होता है। बंदगोभी की संक्रमित पत्तिायों पर घावों में पानी तथा बूंदें, सड़ाध और ऊतकों के गिरने के रूप में रोग आरंभ होता है।

पौधे के संक्रमित भाग जो बदबू उत्पन्न करते हैं, रोग के लक्षणों का संकेत देते हैं। दिसम्बर से जनवरी के महीने में बंद पूर्ण रूप से तैयार होने और परिपक्व बंद की अवस्था में हो और जब अधिक पाला एवं बर्फवारी हो तब किसानों इस रोग के लक्षण देख सकते है।

प्रबंधन

  • रोपाइ के 20 दिन बाद 10 दिनके अंतराल पर स्पाइनोसेड 45 प्रतिशत एस.सी. को 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है।
  • संक्रमित पत्तिायों को हटा दें तथा स्ट्रेप्टोसाएक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्य.ूपी. 3 ग्राम प्रति लीटर पानी का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें और जरूरी हो तो दुबारा स्ट्रेप्टोसाएक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव किया जा सकता है।
  • पूरी तरह संक्रमित गोभी को गहरी मिट्टी डालकर उसे ब्लाइटोक्स के घोल से गीला कर के मिट्टी में दबाकर नष्ट कर दें। संक्रमित फसल को कभी भी खाद के गङ्ढों में न डालें, नहीं तो यह दोबारा खाद के साथ पूरे खेत में फैल जाएगा।
  • किसान साथी, अपनी किसी भी फसल से जुड़ी समस्या या सलाह के लिये 9151333965 पर कॉल करें। ग्रामिक के अनुभवी कृषि विशेषज्ञों की टीम आपकी निःशुल्क सहायता करेगी।

FAQs

  • फूलगोभी की फसल कितने महीने की होती है?

    फूलगोभी तैयार होने का औसत समय 60 से 75 दिनों का होता है।

  • गोभी कब लगानी चाहिए?

    गोभी की अगेती किस्मों कि बुआई अगस्त के अंतिम सप्ताह से 15 सितम्बर तक कर देना चाहिए। मध्यम और पिछेती किस्मों कि बुआई सितम्बर के मध्य से पूरे अक्टूबर तक कर देना चाहिए। 

  • गोभी में कौन सा खाद डालना चाहिए?

    गोभी की खेती के लिए खेत की तैयारी के समय मिट्टी में 250 से 300 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिला दें। इसके अलावा 120 से 150 किलो नत्रजन, 80 किलो फॉस्फोरस तथा 60 से 80 किलो पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डालें । नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की मिट्टी में पौध लगाने के समय मिलायें।

  • गोभी की खेती में पशु खाद डालने से क्या लाभ होता है?

    गोभी की खेती में यदि किसान साथी पशु खाद का प्रयोग करते हैं, तो यह मिट्टी की संरचना में सुधार करता है, पौधों को स्वस्थ रखता है, और उचित विकास करता है और सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है। इसलिए मिट्टी तैयार करने से पहले 30 टन/हेक्टेयर से 50 टन/हेक्टेयर तक खेत में पशु खाद ज़रूर डालें।

  • 1 एकड़ में गोभी के कितने पौधे लगते हैं?

    एक एकड़ में 18 से 20 हज़ार पौधे लगते हैं।

  • गोभी का सबसे अच्छा बीज कौन सा है?

    गोभी की उन्नत किस्में हैं, पूसा मेघना, पूसा अश्विनी, पूसा कार्तिक, पूसा कार्तिक संकर. इन किस्मों को लगाकर किसान फूल गोभी से अच्छी कमाई कर सकते हैं. इन किस्मों को अगेती फूल गोभी कहा जाता है।

  • गोभी के लिए कौन सी सिंचाई प्रणाली सबसे अच्छी है?

    सिंचाई विधियों की बात करें तो ड्रिप सिंचाई गोभी की फसल के लिए सबसे बेहतर हो सकती है। इससे किसान साथी अच्छी उपज ले सकते हैं।

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आलू की खेती की अधिक जानकारी के लिए दिए गये लिंक पर क्लिक करें – आलू की खेती

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