`मानसून सीजन (Monsoon 2023) में बारिश और गंदगी के कारण जानवरों में कई तरह के संक्रमण (Animal Disease) फैलने लगते हैं। चाहे वो मंकीपॉक्स (Monkey Pox)हो या लंपी वायरस(Lumpy Skin Virus)। हाल ही में राजस्थान में लंपी वायरस (lumpy Virus in Rajasthan) फिर से फैलने लगा है। ऐसे में दुधारु पशुओं की साफ-सफाई, देखभाल और ज़रूरत पड़ने पर जांच करवाना बहुत आवश्यक हो जाता है, ताकि समय पर बीमारी के लक्षण पता चल सकें, और पशुओं की देखभाल व इलाज संभव हो सके।
चलिए आज के इस ब्लॉग में जानते हैं-
- लंपी त्वचा रोग क्या है?(what is lumpy dermatitis?)
- लंपी रोग के लक्षण (symptoms of lumpy disease)
- लंपी वायरस की रोकथाम कैसे करें (how to prevent lumpy virus)
- कैसे समझें कि दुधारू पशु बीमार है? (Signs of Disease in Dairy Animals)
- पशुओं में रोगों की रोकथाम कैसे करें (Preventive Measures for Sick Animals
लंपी त्वचा रोग क्या है? (what is lumpy dermatitis?)
लंपी एक त्वचा रोग है जो वायरस (Lumpy Virus) से फैलता है और गाय-भैंसों में इसका अधिक प्रभाव होता है। यह वीषाणु जनित संक्रामक रोग है, इसीलिए बेहद खतरनाक होने के साथ ही पशुओं में यह वायरस बहुत तेजी से फैलता है। अगर कोई पशु लंपी वायरस से संक्रमित हो जाए तो उसके शरीर पर परजीवी कीट, किलनी, मच्छर, मक्खियों से और दूषित जल, दूषित भोजन और लार के संपर्क में आने से यह रोग अन्य पशुओं में भी फैल सकता है। इस रोग से ग्रसित पशुओं को उचित इलाज व देखरेख मिलने पर वे सामान्य तौर पर 2 से तीन हफ्ते में स्वस्थ हो जाते हैं। लंपी बीमारी जूनॉटिक नहीं है, इसलिए पशुओं से इंसानों में नहीं फैलती है।
लंपी रोग के लक्षण (symptoms of lumpy disease)
- जो पशु लंपी वायरस से संक्रमित होते हैं, उन्हें हल्का बुखार आ सकता है।
- संक्रमण होने पर पशुओं के मुंह से लार ज़्यादा निकलती है और आंख-नाक से पानी बहता है। इसके अलावा पशुओं के लिंफ नोड्स और पैर सूज जाते हैं।
- संक्रमित दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन भी कम हो जाता है।
- गर्भित पशुओं में गर्भपात का खतरा रहता है और पशु की मौत भी हो सकती है।
- पशु के शरीर पर त्वचा में कठोर गांठें बन जाती हैं।
लंपी वायरस की रोकथाम कैसे करें (how to prevent lumpy virus)
- संक्रमित पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग बांधे, ताकि बाक़ी पशुओं में संक्रमण न फैले।
- कीटनाशक और बिषाणुनाशक का प्रयोग करके पशुओं के परजीवी कीट, किल्ली, मक्खी व मच्छरों को ख़त्म कर दें।
- पशु जिस बाड़े में रहते हैं, समय-समय पर उसकी साफ-सफाई करते रहें।
- जिस क्षेत्र में लंपी वायरस का संक्रमण फैला है, उस क्षेत्र में स्वस्थ पशुओं को न जाने दें।
- अगर पशु में लंपी वायरस के लक्षण दिखाई दें तो जल्द से जल्द पशुओं के डॉक्टर से संपर्क करें।
- स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण कराएं, ताकि भविष्य में वे हर तरह के संक्रमण से सुरक्षित रहें।
कैसे समझें कि दुधारू पशु बीमार है? (Signs of Disease in Dairy Animals)
- पशुओं में संक्रमण या किसी भी रोग की शुरुआत में पशुओं के चलने का तरीका अजीब हो जाता है।
- अगर पशुओं को खड़े होने में समस्या हो रही हो या चलने में लड़खड़ाने लगे तो समझें कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, और तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
- पशुओं में सुस्ती भी रोग या किसी संक्रमण का लक्षण है। अगर दुधारु पशु ज्यादा सोने लगें या कम सक्रिय रहें, तो भी संभावना है कि वो स्वास्थ्य संबंधी समस्या से जूझ रहे हैं।
- बीमार पशुओं का तापमान जरूरत से ज्यादा गर्म या ठंडा हो जाता है। इसलिए पशुपालक समय समय पर खुद या पशु चिकित्सक के ज़रिए जांच करवाएं, और जल्द से जल्द इलाज शुरु करवायें।
- रोग ग्रस्त पशुओं के खाने में कमी आना भी मुख्य लक्षण है। जब पशु हमेशा की तुलना में कम आहार लेने लगें या धीरे-धीरे चारे को चबायें तो हो सकता है कि आपका पशु स्वस्थ न हो।
पशुओं में रोगों की रोकथाम कैसे करें (Preventive Measures for Sick Animals)
- मानसून की शुरुआत में ही पशुओं के लिये साफ-सुथरे और बिना नमी वाले बाड़े का इंतजाम करें, क्योंकि ज्यादातर बीमारियां नमी के कारण फैलती हैं।
- पशुओं को साफ-सुथरा रखें, क्योंकि इस मौसम में गंदगी के कारण मच्छरों और मक्खियों जैसे खून चूसने वाले पनपने लगते है, जिनसे पशुओं में रोग फैलने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
- अधिकतर बीमारियां दूषित पानी, लार व चारे से फैलती हैं, ऐसे में पशुओं को नमीमुक्त और शुद्ध चारा खिलायें और साफ पानी पिलाएं।
- बीमार और कमजोर पशुओं को अलग रखें और उनके खाने- पीने की व्यवस्था भी अलग ही रखें, ताकि बीमारी दूसरे पशुओं में न फैले।
- विशेषकर नवजात पशु और जिन पशुओं ने हाल ही में बच्चे दिए हैं, उनके लिये अलग पशु बाड़े की व्यवस्था करें, क्योंकि इस समय पशुओं की सेहत नाजुक अवस्था में होती है।
- मौसम बदलते समय पशुओं को टीके (Animal Vaccination) लगवायें और उन्हें संतुलित आहार (Healthy Feed to Animals) भी खिलायें, जिससे पशुओं की रोगों से लड़ने की क्षमता मजबूत हो सके।
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